Chhattisgarh Chironji: छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के घने जंगलों में उगने वाली चिरौंजी अब सिर्फ एक फल नहीं रह गई है, बल्कि यह यहां के ग्रामीणों की आर्थिक रीढ़ बन चुकी है। जो इलाके पहले रोजगार की कमी और गरीबी से जूझ रहे थे, वहां अब चिरौंजी ने नई संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं। पहाड़ी और दूरदराज के गांवों में रहने वाले लोग अब इसी फल की बदौलत आत्मनिर्भर बनते जा रहे हैं।
अप्रैल से मई तक खिलती है किस्मत
हर साल अप्रैल से मई के आखिर तक चिरौंजी के पेड़ फलों से लद जाते हैं। यह समय बहुत सीमित होता है — लगभग डेढ़ महीने का। लेकिन इतने कम समय में भी यहां के ग्रामीण पेड़ों से बीज तोड़कर बाजार में बेचते हैं और लाखों रुपये की आमदनी कर लेते हैं। यही नहीं, यह आमदनी इतनी स्थायी हो चुकी है कि अब यह लोगों की स्थायी आय का स्रोत बन चुकी है।
300 रुपये किलो बिक रहा है बीज
जशपुर (Chhattisgarh Chironji) के जंगलों में मिलने वाली चिरौंजी की बाजार में भारी मांग है। स्थानीय स्तर पर इसके बीज 200 से 300 रुपये प्रति किलो तक बिकते हैं, लेकिन जब यही बीज दिल्ली, मुंबई या कोलकाता जैसे बड़े शहरों में पहुंचते हैं, तो इनकी कीमत 3500 से 4000 रुपये प्रति किलो तक पहुंच जाती है। यह दिखाता है कि जंगल से निकली यह उपज अब राष्ट्रीय बाजार में अपनी मजबूत पहचान बना चुकी है।
‘चार’ बना गांववालों की जिंदगी का सहारा
स्थानीय लोग चिरौंजी को ‘चार’ के नाम से जानते हैं। एक पेड़ को फल देने लायक बनने में लगभग पांच साल लगते हैं, लेकिन जब यह तैयार होता है तो हर साल किसानों के लिए स्थायी आय का साधन बनता है। एक पेड़ से लगभग 10 किलो बीज मिलते हैं, जिनकी सफाई, छिलाई और सुखाई ग्रामीण मेहनत से करते हैं। यही मेहनत आज उनके चेहरे की मुस्कान बन चुकी है।
बारिश और ओलावृष्टि से उत्पादन पर असर
इस साल बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने चिरौंजी की फसल को थोड़ा नुकसान जरूर पहुंचाया, जिससे फूल झड़ गए और उत्पादन में गिरावट आई। फिर भी ग्रामीणों का उत्साह कम नहीं हुआ, क्योंकि उन्हें पता है कि यह फल फिर लौटेगा और उनके जीवन की गाड़ी को फिर गति देगा।
ग्रामीणों को नहीं मिल रही मेहनत के मुताबिक कीमत
हालांकि यह भी एक कड़वा सच है कि चिरौंजी की खेती और संग्रहण में जान लगाकर काम करने वाले गांववालों को कभी-कभी उनकी मेहनत के अनुसार सही कीमत नहीं मिल पाती। बड़े व्यापारी गांव में आकर कम दामों पर बीज खरीद लेते हैं और शहरी बाजार में भारी मुनाफा कमाते हैं। बावजूद इसके, यह जंगल की दौलत उन गरीब परिवारों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है जो दूरदराज के इलाकों में रहते हैं और जिनके पास आय का दूसरा साधन नहीं है।
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आत्मनिर्भरता की मिसाल बना जंगल का यह फल
जशपुर की चिरौंजी (Chhattisgarh Chironji) अब केवल जंगल का उत्पाद नहीं रह गई है, बल्कि यह गांवों की आर्थिक आज़ादी और आत्मनिर्भरता की एक मिसाल बन चुकी है। यह कहानी बताती है कि यदि संसाधनों का सही उपयोग हो और मेहनत की कीमत मिले, तो कोई भी समाज अपने दम पर आगे बढ़ सकता है।