Chhattisgarh Freedom Fighter: छत्तीसगढ़ का महात्मा गांधी से गहरा नाता है। आजादी की लड़ाई के दौरान गांधी जी ने छत्तीसगढ़ का दौरा किया था और आदिवासी इलाकों से कई लोगों ने उनका साथ दिया था। हाल ही में सरगुजा क्षेत्र के 39 स्वतंत्रता संग्रामी सेनानियों की खोज हुई है, जिनमें से कुछ को गांधी जी ने आजादी के बाद आजीविका चलाने के लिए मदद की थी।
इन सेनानियों ने गांधी जी से चरखा चलाना सीखा और चरखे से धागा निकालकर कपड़े बनाए, जिन्हें उन्होंने गांधी जी को भेंट किया। ऐसे ही तीन स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महली भगत, मांझीराम गोंड और राजनाथ भगत हैं।
बिहार में जन्मे थे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महली भगत
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महली भगत का जन्म 1 जनवरी 1914 को बिहार के रांची जिले के घाघरा थाना के गुनिया ग्राम में हुआ था। उनके पिता लोहरा उरांव और माता किसी बाई थीं। महली चार भाइयों में सबसे छोटे थे। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा गुनिया में और माध्यमिक शिक्षा 1930 में लोहरदगा के मिशन इंग्लिश मीडियम स्कूल से पूरी की।
बचपन में ही पिता की मौत और परिवार की आर्थिक स्थिति के कारण आगे की पढ़ाई नहीं कर सके। उन्होंने घर पर खेती कार्य में जुड़ गए, लेकिन 16 साल की उम्र में घर छोड़ दिया और आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए।
महात्मा गांधी की प्रेरणा से स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महली भगत ने चरखा प्रशिक्षण केंद्र में प्रशिक्षण लिया और आत्मनिर्भर बने। उन्होंने गांधी जी के सहयोग से चरखे से कपड़ा बनाया और उन्हें भेंट किया। महली भगत गांधी जी के राष्ट्रीय आन्दोलन और ताना भगत आंदोलन से प्रभावित थे और आजादी की लड़ाई में शामिल होकर देश को आजाद कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
आर्थिक स्थिति के कारण पढ़ नहीं पाए थे मांझीराम गोंड
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मांझीराम गोंड का जन्म 1928 में फुन्दुरडिहरी पटेल पारा, अंबिकापुर में हुआ था। उनके पिता जयराम गोंड एक किसान थे। आर्थिक स्थिति के कारण मांझीराम ने पढ़ाई नहीं की, लेकिन वे देश प्रेमी, संघर्षशील, मृदुभाषी, और सहयोगी थे। महात्मा गांधी के आंदोलन से प्रभावित होकर, मांझीराम ने देश सेवा के लिए कूद पड़े।
उन्होंने तिरंग लेकर गांव-गांव जाकर लोगों को आजादी के लिए जागरूक किया, जिस कारण उन्हें अंग्रेजों ने जेल की सजा दी। मांझीराम ने 1940 में 3 दिन और 1942 में 21 दिन अंबिकापुर जेल में बिताए। वे गांधी जी को अपना गुरु मानते थे।
ताना भगत आंदोलन से प्रेरित थे राजनाथ भगत
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राजनाथ भगत ताना भगत आंदोलन से प्रेरित होकर देश सेवा में शामिल हुए। ताना भगत आंदोलन 1914 में उरांव आदिवासियों द्वारा शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य सामाजिक बुराइयों को दूर करना और शोषण से बचाना था। इस आंदोलन का नेतृत्व जतरा उरांव ने किया और इसका प्रभाव झारखंड के कई क्षेत्रों में फैला था।
1920 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में ताना भगत के आंदोलनकारी शामिल हो गए। राजनाथ भगत पर ताना भगत आंदोलन का गहरा प्रभाव पड़ा और उन्होंने देश सेवा की चुनौती को आत्मसात किया। आजादी के बाद भी वे कांग्रेस से जुड़े रहे और 1950 में महली भगत से मुलाकात कर कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की।
गुमनामी की जिंदगी जी रहे थे स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार
आजादी के बाद कई स्वतंत्रता सेनानियों को भुला दिया गया, जिसके कारण उनके परिवार गुमनामी की जिंदगी जीने के लिए मजबूर हो गए। सरगुजा के शोधकर्ता अजय चतुर्वेदी दूरस्थ इलाकों में बसे गांवों में जाकर स्वतंत्रता सेनानियों से मिल रहे हैं और उनके परिजनों से बातकर जानकारी जुटा रहे हैं। अजय चतुर्वेदी का यह प्रयास स्वतंत्रता सेनानियों की यादों को संजो कर रखने और उनके योगदान को पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण है।
सरगुजा में 39 स्वतंत्रता सेनानियों का पता चला, जिनमें से 3 जनजातीय समाज से थे। शोधकर्ता अजय चतुर्वेदी ने इनके गांव घर तक जाकर परिवार के सदस्यों से बातचीत की और दस्तावेज, ताम्रपत्र जैसी निशानियां एकत्र कीं। उनका कहना हा कि परिवार से बातचीत करने पर कई कहानियों का पता चला, जिनमें से एक मांझी राम गोंड़ का जन्म सरगुजा में हुआ था, जबकि महली भगत और राजनाथ भगत का जन्म झारखंड में हुआ था, लेकिन उन्होंने अपना जीवन सरगुजा में बिताया। महली भगत ने अपने हाथों से चरखा चलाकर गांधी जी के लिए वस्त्र बनाए थे।
इस किताब में भी मिला है इन तीनों सेनानियों को स्थान
सेंट्रल यूनिवर्सिटी बिलासपुर छत्तीसगढ़ के कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार चक्रवाल, कुलसचिव प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार, और इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर प्रवीण कुमार मिश्रा ने मिलकर एक पुस्तक लिखी है, जिसमें 39 लेखकों के आलेख शामिल हैं।
इस पुस्तक में अजय कुमार चतुर्वेदी का आलेख “स्वतंत्रता संग्राम में सरगुजा अंचल के जनजातियों का योगदान” भी शामिल है, जिसमें बलरामपुर जिले के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महली भगत, राजनाथ भगत और सरगुजा जिले के माझीराम गोड़ की जीवन कथा है। सरगुजा के तीन जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की जीवन गाथा को राष्ट्रीय स्तर की पुस्तक में स्थान मिला है। इस पुस्तक को जनजातीय कार्य मंत्रालय भारत सरकार ने अगस्त 2022 में प्रकाशित किया था।
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