Chandrayaan-3 Landing: भारतीय स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेश (ISRO) ने भारत के तीसरे मून मिशन (India Lunar Mission) चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) को 14 जुलाई को लॉन्च किया था.
भारत के चंद्रयान-3 मिशन ने पिछले वर्ष 23 अगस्त को ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की थी। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सफलतापूर्वक लैंडिग करने वाला भारत दुनिया का चौथा देश बना था।
23 अगस्त को चांद पर इसकी लैंडिंग हुई थी . इस लम्हे का देशवासियों को बेसब्री से इंतजार था. चंद्रयान-3 शाम 6:04 बजे चांद के साउथ पोल पर उतरा था .
चांद पर बहता था गर्म लावा का समंदर
दुनिया में ISRO की शान बढ़ाने वाले Chandrayaan-3 के डेटा से नया खुलासा हुआ है. पता चला है कि चंद्रमा पर गर्म लावा का समंदर था. पूरे चंद्रमा पर पिघले हुए गर्म पत्थरों का महासागर था. ये कई तरह के केमिकल की जांच के बाद पता चला है. इन रसायनों का डेटा चंद्रयान-3 ने भारतीय वैज्ञानिकों को दिया.
यह स्टडी हाल ही में nature जर्नल में प्रकाशित हुई है. पूरे चंद्रमा पर गर्म लावा (Magma) का सागर था. यह चंद्रमा के बनने के कुछ करोड़ साल बाद की बात है. खुशी की बात ये है कि यह स्टडी उस समय आई है, जब पूरा देश चंद्रयान-3 की चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफल लैंडिंग की वर्षगांठ मनाने जा रहा है.
चंद्रयान-3 के रोवर प्रज्ञान ने ढूंढा चांद का इतिहास
चंद्रयान-3 के रोवर प्रज्ञान की तरफ से की गईं खोजों पर हुए अध्ययन में इस बात के अहम सुराग मिले हैं कि आखिर चांद बना कैसे होगा। इस महत्वपूर्ण खोज ने चंद्रयान-3 की उपलब्धियों के मुकुट में एक और मणि जोड़ दिया है।
अहमदाबाद स्थित फीजिकल रिसर्च लैबोरेटरी (PRL) और इसरो के वैज्ञानिकों की टीम रोवर पर लगे पेलोड में से एक अल्फा पार्टिकुलर एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (APXS) के जरिए जुटाए आंकड़ों का इस्तेमाल करके दक्षिणी ध्रुव के पास चांद की मिट्टी की बनावट का अध्ययन किया है।
आज है पहला नेशनल स्पेस डे
भारत सरकार ने शनिवार को 23 अगस्त को ‘ राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस ‘ घोषित किया, ताकि चंद्रयान-3 मिशन की सफलता का जश्न मनाया जा सके, जिसमें विक्रम लैंडर की लैंडिंग और प्रज्ञान रोवर की चांद की सतह पर तैनाती शामिल है।
भारत ने एक बड़ी छलांग लगाई, क्योंकि इसरो का चंद्रयान-3 23 अगस्त को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक उतरा, जिससे वह यह ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करने वाला पहला देश बन गया और पाँच साल पहले चंद्रयान-2 की क्रैश लैंडिंग को लेकर निराशा खत्म हुई।
इससे पहले चांद के इस हिस्से की मिट्टी की जांच कभी नहीं हुई थी क्योंकि दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला भारत ही पहला देश है।
इसरो ने चंद्रयान-2 की नाकामी से क्या सबक लिया
चंद्रयान-2 में लैंडर को खतरे का पता लगाने के लिए कैमरे नहीं थे. लेकिन इसरो ने गलती को सुधारते हुए चंद्रयान-3 के लैंडर में 2 बचाव कैमरे लगाए थे.
इसरो ने चंद्रयान-3 को मजबूती देने के लिए इसके लैंडर लेग मैकेनिज्म परर्फोर्मस की टेस्टिंग भी की थी. चंद्रयान-2 में ये सिस्टम नहीं था.
इसके अलावा लैंडिंग की स्पीड को 2 मीटर प्रति सेकेंड से बढ़ाकर 3 मीटर प्रति सेकेंड कर दिया गया था . इसका मतलब है कि लैंडिंग के दौरान 3 मीटर प्रति सेकेंड की स्पीड पर भी क्रैश नहीं होगा.
चंद्रयान 3 चाहे किसी भी तरह से लैंड करे, इसे एनर्जी देने के लिए अलग से सोलर पैनल लगाए गए हैं. इसरो ने इसकी लैंडिंग को हेलिकॉप्टर और क्रेन के जरिए टेस्ट किया था.