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Chandrayaan 3: चांद की सतह के और नजदीक आया चंद्रयान-3, पढ़े विस्तार से

Chandrayaan 3: भारत का महत्वाकांक्षी तीसरा चंद्र मिशन 'चंद्रयान-3' को कक्षा घटाए जाने की एक और सफल प्रक्रिया से नजदीक आ गया। '

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Chandrayaan 3: चांद की सतह के और नजदीक आया चंद्रयान-3, पढ़े विस्तार से

Chandrayaan 3: भारत का महत्वाकांक्षी तीसरा चंद्र मिशन 'चंद्रयान-3' बुधवार को कक्षा घटाए जाने की एक और सफल प्रक्रिया से गुजरने के साथ ही चांद की सतह के और नजदीक आ गया। 'चंद्रयान-3' का प्रक्षेपण 14 जुलाई को किया गया था और पांच अगस्त को इसने चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया था। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘चंद्रमा की सतह के और नजदीक। आज की गई प्रक्रिया के बाद चंद्रयान-3 की कक्षा घटकर 174 किमी x 1437 किमी रह गई है।’’

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इसरो ने ट्वीट करते हुए कहा है, ''चंद्रयान-3 चंद्रमा की तीसरी ऑर्बिट में पहुंच गया है। वह चांद के और करीब आ गया है। आज की गई प्रक्रिया के बाद चंद्रयान-3 की कक्षा घटकर 174 किमी x 1437 किमी रह गई है।''

https://twitter.com/isro/status/1689192034916265984?s=20

जारी की थीं चांद की तस्वीरें
इसरो ने बताया कि चंद्रयान का अगला ऑपरेशन 14 अगस्त 2023 को होगा। इतना ही नहीं, महत्वाकांक्षी मिशन के आगे बढ़ने के साथ ही चंद्रयान-3 की कक्षा को धीरे-धीरे कम करने और इसकी स्थिति चंद्र ध्रुवों के ऊपर करने के लिए इसरो सिलसिलेवार कवायद कर रहा है। इससे पहले जब 5 अगस्त को चंद्रयान-3 चंद्रमा की पहली कक्षा में पहुंचा था तो उसने चांद की तस्वीरें जारी की थीं।

14 जुलाई को लॉन्च हुआ था चंद्रयान-3
बता दें कि चंद्रयान-3 को 14 जुलाई को लॉन्च किया गया था। इसे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपण यान मार्क-3 के जरिए लॉन्च किया गया था। उस समय अधिकारियों ने बताया था कि प्रणोदक मॉड्यूल ‘लैंडर’ और ‘रोवर’ को 100 किलोमीटर तक चंद्रमा की कक्षा में ले जाएगा। इसमें चंद्रमा की कक्षा से पृथ्वी के ध्रुवीय मापन का अध्ययन करने के लिए एक ‘स्पेक्ट्रो-पोलरमेट्री’ पेलोड भी जोड़ा गया है।

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चंद्रयान-2 की नहीं हो पाई थी लैंडिंग
गौरतलब है कि 7 सितंबर 2019 को भारत के दूसरे चंद्र मिशन 'चंद्रयान-2' की चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग नहीं हो सकी थी। इसे चंद्रमा की सतह के दक्षिण ध्रुव के पास उतरना था। वह जब चंद्रमा की सतह पर उतरने वाला था तभी लैंडर विक्रम से उसका संपर्क टूट गया था। प्रधानमंत्री मोदी भी उस समय ऐतिहासिक क्षण के गवाह बनने के लिए बेंगलुरु स्थित इसरो के मुख्यालय में पहुंचे थे।

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