नई दिल्ली। हिंदू धर्म में Chandra Grahan 2021 ग्रहण का एक अहम स्थान होता है। लेकिन अगर इस ग्रह पर कोई विशेष योग बन जाए तो इसे और अधिक रोचक हो जाता है। जी हां जानकारों की मानें तो इस साल का आखिरी चंद्र यानि 19 नवंबर 2021 को लगने वाले ग्रहण में ऐसी स्थितियों में आ रहा है जो करीब 580 वर्ष बाद बन रही हैं। इस अवसर पर हम आपको बताते हैं ग्रहण से जुड़ी कुछ रोचक बातें।
सबसे बड़ा चंद्र ग्रहण-
ज्योतिषाचार्य पंडित रामगोविन्द शास्त्री के अनुसार 19 नवंबर को लगने वाला यह चंद्र ग्रहण सदी का सबसे बड़ा चंद्र ग्रहण है। ऐसा इसकी अवधि के आधार पर बताया जा रहा है।
इस राशि और नक्षत्र में लगेगा –
19 नवंबर को लगने वाला साल का यह आखिरी चंद्र ग्रहण वृषभ राशि के साथ कृतिका नक्षत्र में लगेगा। वृषभ राशि के स्वामी ग्रह शुक्र और कृतिका नक्षत्र के स्वामी ग्रह सूर्यदेव हैं।
ग्रहण का समय-
भारतीय समयानुसार 19 नवंबर को यह चंद्रग्रहण सुबह 11:34 मिनट से प्रारंभ हो जाएगा। जो शाम 5:33 मिनट तक रहेगा।
साल का आखिरी चंद्र ग्रहण-
19 नवंबर 2021 को लगने वाला चंद्र ग्रहण साल का आखिरी चंद्र ग्रहण है। इसके बाद अगला चंद्र ग्रहण वर्ष 2022 में 16 मई को लगेगा।
भारत में मान्य नहीं होगा सूतक काल —
भारत में यह उपछाया ग्रहण होने के कारण सूतक काल मान्य नहीं होगा। इस ग्रहण को आंशिक ग्रहण कहा जा रहा है।
भारत में कहां दिखेगा चंद्र ग्रहण-
चंद्र ग्रहण केवल उन्हीं जगहों पर दिखाई देता है, जहां चंद्रमा आसमान के घेरे में यानी क्षितिज के ऊपर होता है। असम और अरुणाचल प्रदेश सहित भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों को यह दिखाई दे सकता है।
ये हैं पौराणिक मान्यताएं
पौराणिक मान्यता के संबंध में चर्चा करें तो मत्स्य पुराण और स्कंद पुराण में देव और दानवों के द्वारा समुद्र मंथन का उल्लेख आता है। मत्स्य पुराण के 291 अध्याय के श्लोक क्रमांक 1 से 15 के बीच में देवता बनकर अमृत पी रहे राहु के सिर को काटे जाने का उल्लेख मिलता है। इस कथानुसार समुद्र मंथन के दौरान अंत में भगवान धन्वंतरि अपने कमंडल में अमृत लेकर प्रकट हुए और इस अमृतपान को लेकर देवों और दानवों के बीच विवाद हुआ।
इसको सुलझाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया और भगवान विष्णु ने देवताओं और असुरों को अलग-अलग पंक्ति में बैठा दिया। लेकिन राहु छल से देवताओं की पंक्ति में आकर बैठ गए और अमृत पान कर लिया। देवों की पंक्ति में बैठे चंद्रमा और सूर्य ने राहू को ऐसा करते हुए देख लिया। इस बात की जानकारी उन्होंने भगवान विष्णु को दी। जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहू का सर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन राहू ने अमृत पान किया हुआ था, जिसके कारण उसकी मृत्यु नहीं हुई और उसके सर वाला भाग राहू और धड़ वाला भाग केतू के नाम से जाना गया।
इसी कारण राहू और केतु, सूर्य और चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हैं और पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को ग्रस लेते हैं। इसलिए चंद्र ग्रहण होता है। पंडित अनिल कुमार पाण्डेय के अनुसार मुस्लिम धर्म ग्रंथों में भी ग्रहण का उल्लेख मिलता है। हदीस में कहा गया है कि जब भी सूरज और चांद ग्रहण लगे तो घर में रहो नमाज पढ़ो और दुआ करते रहो। यह भी कहा गया है कि यह ग्रहण खुदा द्वारा अपनी ताकत बताए जाने के लिए किया जाता है। ऐसा बुखारी साहब ने अपने हदीस के खंड 2 में तथा पैरा 1240 में लिखा है।
ईसाई धर्म में चंद्र ग्रहण को ईश्वर के गुस्से का प्रतीक बताया है। हिंदू धर्म के मूल ग्रंथ वेद में भी ग्रहण के बारे में उल्लेख है। वैदिक काल के ऋषि अत्री ग्रहण विज्ञान के पहले शोधकर्ता ऋषि थे। ऋषि अत्री ने ही सर्वप्रथम ग्रहण के बारे में वेदों में अपनी ऋचाएं लिखी हैं। ऋग्वेद के पांचवें मंडल के 40 वें सूक्त में बताया गया है कि ऋषि अत्री ने देवताओं को ग्रहण से मुक्ति दिलाई अर्थात उन्होंने देवताओं को ग्रहण से मुक्ति के समय को गणना कर बताया। ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में राहु और केतु का उल्लेख नहीं है। लेकिन अथर्ववेद में केतु का उल्लेख मिलता है। केतु का स्वरूप पुच्छल तारे से मिलता जुलता है। महाभारत की जयद्रथ वध कथा में सूर्य ग्रहण का उल्लेख मिलता है।
यह चंद्र ग्रहण वृश्चिक राशि पर लग रहा है ।अतः सबसे ज्यादा असर वृश्चिक राशि पर ही होगा ।
वर्जित है ये
चंद्र ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं को घर से निकलना वर्जित है। इसका कारण संभवत यह है कि उस समय निकलने वाली किरणें बच्चे के ऊपर प्रतिकूल असर डाल सकती हैं। चंद्र ग्रहण का असर पशु—पक्षियों पर भी पड़ता है और वे इस समय अजीब—अजीब व्यवहार करते हैं। जैसे ग्रहण के दौरान मकड़िया अपने जाले को तोड़ना प्रारंभ कर देती है तथा ग्रहण समाप्त होते ही फिर से बनाना प्रारंभ कर देती हैं। पक्षी अचानक अपने घोसले की तरफ लौटने लगते हैं।