CG Pastor Funeral Controversy: छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में एक पादरी के शव को दफनाने को लेकर 22 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट ने सवाल उठाया कि अगर सालों से ईसाई और हिंदू आदिवासियों को एक साथ दफनाने पर किसी ने आपत्ति नहीं जताई, तो अब अचानक हिंदू आदिवासियों की ओर से आपत्तियां क्यों आ रही हैं?
कोर्ट ने राज्य सरकार से मांगा जवाब
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस नागरत्ना ने टिप्पणी की कि यह एक नई घटना है कि ग्रामीण इस मुद्दे पर आपत्ति जता रहे हैं। कोर्ट ने राज्य सरकार से कब्रिस्तान के बारे में जानकारी मांगी और संबंधित पक्षों को पादरी के शव को दफनाने का मामला सुलझाने का निर्देश दिया।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने पादरी के बेटे रमेश बघेल की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया। रमेश बघेल ने हाईकोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद 20 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।
15 दिनों से मेडिकल कॉलेज की मॉर्च्युरी में रखा हुआ है पादरी का शव
पादरी का शव 15 दिनों से मेडिकल कॉलेज की मॉर्च्युरी में रखा हुआ है। शव को दफनाने को लेकर गांव में विवाद चल रहा है, और ग्रामीण इस शव को दफनाने से मना कर रहे हैं। उनका कहना है कि वे गांव में किसी ईसाई को दफन नहीं होने देंगे।
रमेश ने सोमवार को दायर की थी याचिका
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को रमेश ने याचिका दायर की, जिसमें उसने अपने पिता को दफनाने की अनुमति मांगी थी। याचिका में बताया गया कि उसके पिता सुभाष पादरी थे, और 7 जनवरी को बीमारी के कारण उनका निधन हो गया था।
वह अपने पिता का शव गांव के कब्रिस्तान में दफनाना चाहता था, लेकिन गांववाले इसका विरोध कर रहे थे। उनका कहना था कि वे किसी भी ईसाई को गांव में दफनाने नहीं देंगे। इसके साथ ही, ग्रामीण उसे अपनी जमीन पर भी दफनाने की अनुमति नहीं दे रहे थे।
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