CG Pastor Funeral Case: सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को एक व्यक्ति ने याचिका दायर की, जिसमें उसने अपने पिता को दफनाने की अनुमति मांगी थी। याचिका में बताया गया कि उसके पिता सुभाष पादरी थे, और 7 जनवरी को बीमारी के कारण उनका निधन हो गया था।
वह अपने पिता का शव गांव के कब्रिस्तान में दफनाना चाहता था, लेकिन गांववाले इसका विरोध कर रहे थे। उनका कहना था कि वे किसी भी ईसाई को गांव में दफनाने नहीं देंगे। इसके साथ ही, ग्रामीण उसे अपनी जमीन पर भी दफनाने की अनुमति नहीं दे रहे थे।
यह भी पढ़ें: छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने बनाया टिकट वितरण फॉर्मूला: निकाय और पंचायत चुनाव में ऐसे तय किए जाएंगे उम्मीदवार, पढ़ें खबर
कोर्ट ने राज्य सरकार और हाईकोर्ट की असफलता पर कड़ी प्रतिक्रिया दी
रमेश बघेल नामक याचिकाकर्ता ने पहले छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, लेकिन 9 जनवरी को हाईकोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।
अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को लेकर चिंता व्यक्त की और कहा कि यह दुखद है कि किसी व्यक्ति को अपने पिता का अंतिम संस्कार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख करना पड़ रहा है।
कोर्ट ने राज्य सरकार और हाईकोर्ट की असफलता पर कड़ी प्रतिक्रिया दी और राज्य सरकार से जवाब मांगा। अगली सुनवाई बुधवार को होगी।
गांव का कब्रिस्तान केवल हिंदू आदिवासियों के लिए निर्धारित: सॉलिसिटर जनरल
सुप्रीम कोर्ट में सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि शव को राज्य सरकार के खर्च पर गांव से बाहर दफनाया जा सकता है, जहां ईसाईयों के लिए अलग कब्रिस्तान है।
गांव का कब्रिस्तान केवल हिंदू आदिवासियों के लिए निर्धारित है और यह नियमों के तहत है। हालांकि, याचिकाकर्ता के वकील कॉलिन गोंसाल्वेस ने इसे धर्मनिरपेक्षता से जोड़ते हुए कहा कि राज्य ने खुद माना था कि याचिकाकर्ता के परिवार के सदस्य पहले भी गांव के कब्रिस्तान में दफनाए गए थे।
रमेश के पूर्वजों ने अपना लिया था ईसाई धर्म
बस्तर के दरभा निवासी रमेश बघेल का परिवार आदिवासी समुदाय से संबंधित है, और उनके पूर्वजों ने ईसाई धर्म को अपना लिया था। रमेश के पिता पादरी थे और 7 जनवरी को लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया। परिवार ने उन्हें चिंदवाड़ा गांव के कब्रिस्तान में, जो ईसाईयों के लिए आरक्षित था, दफनाने की योजना बनाई थी।
लेकिन जैसे ही यह बात गांव के लोगों को पता चली, उन्होंने इसका विरोध करना शुरू कर दिया। गांववालों ने साफ कह दिया कि वे किसी भी ईसाई को गांव में दफनाने की अनुमति नहीं देंगे, चाहे वह गांव का कब्रिस्तान हो या किसी की निजी जमीन।
अफसरों से मदद नहीं मिलने पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट गए थे रमेश
रमेश बघेल ने इस मामले में अफसरों से मदद मांगी थी, लेकिन मदद नहीं मिलने पर वह छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट गए थे।
सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने कहा कि गांव में ईसाईयों के लिए अलग कब्रिस्तान नहीं है, लेकिन अगर शव को 20-25 किलोमीटर दूर दफनाया जाए तो कोई आपत्ति नहीं होगी।
राज्य सरकार ने यह भी कहा कि नजदीकी गांव करकापाल में ईसाईयों के लिए कब्रिस्तान है, जहां शव दफनाया जा सकता है। इस पर हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के जवाब को आपत्तिजनक बताया
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के जवाब को आपत्तिजनक बताया और कहा कि यह मामला मृत व्यक्ति की गरिमा से संबंधित है। कोर्ट ने यह भी सवाल किया कि जब पहले से ही ईसाई आदिवासियों को दफनाया गया था, तो अब ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता।
यह भी पढ़ें: छत्तीसगढ़-ओडिशा सीमा पर नक्सलियों से मुठभेड़: सुरक्षाबलों ने दो माओवादियों को मार गिराया, एक जवान घायल