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CG News: पद्मश्री कवि डॉ. सुरेंद्र दुबे अब नहीं रहे: हार्टअटैक से निधन, कोरोना काल में लिखी कविता बनी थी लोगों की उम्मीद

Surendra Dubey Passes Away: पद्मश्री कवि डॉ. सुरेंद्र दुबे अब नहीं रहे: हार्टअटैक से निधन, कोरोना काल में लिखी कविता बनी थी लोगों की उम्मीद

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Harsh Verma
CG News: पद्मश्री कवि डॉ. सुरेंद्र दुबे अब नहीं रहे: हार्टअटैक से निधन, कोरोना काल में लिखी कविता बनी थी लोगों की उम्मीद

Surendra Dubey Passes Away: छत्तीसगढ़ ही नहीं, पूरे देश को अपनी हास्य और व्यंग्य से हंसाने वाले वरिष्ठ कवि डॉ. सुरेंद्र दुबे (Dr. Surendra Dubey) अब इस दुनिया में नहीं रहे। 26 जून को रायपुर के एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट (Advanced Cardiac Institute) में दिल का दौरा (Heart Attack) पड़ने से उनका निधन हो गया। वे 72 वर्ष के थे। उनके निधन से साहित्य, संस्कृति और हास्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई है।

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आयुर्वेदाचार्य से कवि बनने तक का सफर

डॉ. सुरेंद्र दुबे पेशे से एक आयुर्वेदिक डॉक्टर (Ayurvedic Doctor) थे, लेकिन पहचान उन्हें एक हास्य कवि के रूप में मिली। उनका जन्म 8 जनवरी 1953 को छत्तीसगढ़ के बेमेतरा (Bemetara) जिले में हुआ था। उन्होंने पांच किताबें लिखीं और देश के कई प्रमुख कवि सम्मेलनों एवं टीवी कार्यक्रमों में हिस्सा लिया।

उनकी कविताएं व्यंग्य के साथ गहरे सामाजिक संदेश भी देती थीं। वे ऐसे कवि थे जो चुटकुलों और हल्के लहजे में गंभीर बातें कह जाते थे। उन्होंने अपनी कविताओं से लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाने का काम किया।

कोरोना काल में लिखी कविता बनी लोगों की उम्मीद

कोरोना काल (Corona Pandemic) में जब पूरा देश तनाव और डर के माहौल से गुजर रहा था, तब डॉ. दुबे ने एक प्रेरणादायक हास्य कविता लिखी थी जिसमें उन्होंने कहा—

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"हम हंसते हैं, लोगों को हंसाते हैं, इम्यूनिटी बढ़ाते हैं, चलिए एंटीबॉडी बनाते हैं..."

उनकी यह कविता सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुई थी और लोगों ने इसे एक सकारात्मक संदेश की तरह लिया।

पद्मश्री और अंतरराष्ट्रीय पहचान

वर्ष 2010 में भारत सरकार ने डॉ. सुरेंद्र दुबे को पद्मश्री (Padma Shri) से सम्मानित किया था। इसके अलावा अमेरिका में भी उन्हें "छत्तीसगढ़ रत्न" (Chhattisgarh Ratna) से नवाजा गया था। उन्होंने अमेरिका (USA) में एक दर्जन से अधिक स्थानों पर हिंदी काव्य पाठ कर छत्तीसगढ़ और भारत की संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत किया।

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मंचों पर नहीं, दिलों में जिंदा रहेंगे डॉ. दुबे

उनकी कविताओं का अंदाज ऐसा था जो हर पीढ़ी को जोड़ता था। वे जब मंच पर आते थे तो केवल ठहाके नहीं, बल्कि सोचने की दिशा भी दे जाते थे। अब जब वे नहीं हैं, उनकी रचनाएं और यादें हमेशा लोगों को प्रेरित करती रहेंगी।

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