जगदलपुर से रजत वाजपेयी की रिपोर्ट।
जगदलपुर। CG News: छत्तीसगढ़ के बस्तर बस्तर दशहरे का विशेष आकर्षण है लकड़ी से बने लगभग 20 फुट चौड़े, 40 फुट लंबे, 50 फुट ऊंचे दो मंजिला 5 टन से अधिक वजनी रथ की नगर परिक्रमा, जिसे आदिवासी अपने प्राचीन परंपरागत औजारों से बनाते हैं।
भक्तिभावना से जुड़ा है यह पर्व
शक्ति पूजा के रूप में इस पर्व की शुरुआत बस्तर के तत्कालीन चालुक्यवंशी राजा पुरूषोत्तम देव ने 1408 में अपने राज्याभिषेक के साथ की थी। उन्होंने अपनी कुलदेवी मणिकेश्वरी की प्रतिरूपा मांई दंतेश्वरी को बस्तर के जन-जन की आराध्य बनाते हुए यहां निवासरत सभी जातियों की निष्ठा और भक्तिभावना को इस पर्व से जोड़ दिया।
उन्होंने बस्तर के वनवासियों की अशिक्षा, अंधविश्वास, क्षेत्रीय एकता के अभाव आदि के निराकरण की कामना से विशेष मुद्रा में जगन्नाथपुरी की यात्रा की, जहां उन्हें रथपति की उपाधि और 16 पहियों वाला रथ मिला।
मां दंतेश्वरी को अर्पित है विशाल काष्ठ रथ
16 पहियों में से 4 पहियों का रथ बनाकर गोंचा पर्व में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा की शोभायात्रा निकाली जाने लगी। शेष 12 पहियों का विशाल काष्ठ रथ मां दंतेश्वरी को अर्पित किया गया। तब से यह पर्व लगातार चलता आ रहा है।
फूलरथ की परिक्रमा
इस विशालकाय रथ को भलीभांति फूलों से सजा कर पूरे नगर की परिक्रमा की जाती है। मां दंतेश्वरी इस फूल रथ पर सवार होकर अगले पांच दिनों तक नगर भ्रमण करती हैं, ताकि वह अपने भक्तों का सुख-दुख जान सकें।
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