इस मामले में अनिल टूटेजा, अनवर ढेबर, अरुण पति त्रिपाठी और निरंजन दास पर आरोप है कि उन्होंने 2,200 करोड़ रुपये के शराब सिंडिकेट का संचालन किया, जो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कार्यकाल के दौरान छत्तीसगढ़ में सक्रिय था।
इस घोटाले में टेंडर प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं हुईं, खासकर नोएडा की एक कंपनी से जुड़े मामलों में, जिसने छत्तीसगढ़ आबकारी विभाग को होलोग्राम्स की आपूर्ति की थी। ये होलोग्राम्स शराब की बोतलों पर आबकारी शुल्क की ट्रैकिंग के लिए महत्वपूर्ण थे।
अनिल टूटेजा के अधिवक्ता ने कोर्ट में दिया ये तर्क
अनिल टूटेजा का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने कोर्ट में तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा ईडी की अभियोजन शिकायत खारिज करने के बाद इस आपराधिक मामले को भी रद्द कर दिया जाना चाहिए।
हालांकि, उत्तर प्रदेश सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता पीके गिरी ने यह दलील दी कि उत्तर प्रदेश में दर्ज एफआईआर भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी), 468 (जालसाजी), 471 (जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल) और 120-बी (आपराधिक साजिश) के तहत संज्ञेय अपराधों को दर्शाती है।
आरोपियों के खिलाफ उत्तर प्रदेश में कानूनी प्रक्रिया आगे बढ़ेगी
अदालत ने माना कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आरोप गंभीर हैं और जांच को जारी रखने के लिए पर्याप्त आधार हैं। इस फैसले के बाद, सभी आरोपियों, जिसमें अनवर ढेबर भी शामिल हैं, के खिलाफ उत्तर प्रदेश में कानूनी प्रक्रिया आगे बढ़ेगी।
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