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CG High Court: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का सख्त संदेश, मासूम की गरिमा से खिलवाड़ करने वाले आरोपी की याचिका खारिज, जानें मामला

CG High Court: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 2 साल 10 माह की मासूम के साथ छेड़छाड़ करने वाले आरोपी की सजा को बरकरार रखते हुए उसकी अपील खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा- मासूमों की गरिमा सर्वोपरि, गवाही पूरी तरह विश्वसनीय।

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Shashank Kumar
Chhattisgarh CG High Court

CG High Court

Chhattisgarh (CG) High Court: छत्तीसगढ़ में दो साल दस माह की मासूम बच्ची की गरिमा को ठेस पहुंचाने के प्रयास के आरोपी की अपील को हाईकोर्ट ने सख्ती से खारिज कर दिया है। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की एकलपीठ में हुई, जहां विचारण न्यायालय द्वारा आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 363 और पॉक्सो एक्ट के तहत सुनाई गई पांच साल की सजा को बरकरार रखा गया है।

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चीफ जस्टिस ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से कहा कि “उत्कृष्ट गवाह बहुत उच्च गुणवत्ता और क्षमता वाला होना चाहिए और न्यायालय को ऐसे गवाह के बयान पर बिना किसी हिचकिचाहट के विश्वास करना चाहिए।” कोर्ट ने मासूम, उसकी मां और प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों को पूर्णतः विश्वसनीय मानते हुए आरोपी की दलीलों को खारिज कर दिया।

पीड़िता की गवाही बनी मजबूत आधार

दरअसल, यह मामला 28 नवंबर 2021 का है, जब शिकायतकर्ता की 2 साल 10 माह की बेटी अपनी मौसी के घर के सामने खेल रही थी। शाम करीब 5 बजे आरोपी वहां पहुंचा और बच्ची को चॉकलेट व बिस्किट खरीदने के लिए 2 रुपये दिए। थोड़ी देर बाद वह वापस आया और पीड़िता को उठाकर अपने घर की ओर ले जाने लगा। पीड़िता की मौसी ने जब इसका विरोध किया, तो आरोपी ने उसे अनदेखा कर दिया।

चूंकि आरोपी और उसकी बहन पहले भी बच्ची को अपने घर ले जाते थे, इसलिए ज्यादा संदेह नहीं हुआ। लेकिन शाम करीब 6 बजे पड़ोसी ने पीड़िता को गोद में उठाकर वापस लाया और बताया कि उसने आरोपी को बच्ची के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देखा था।

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आरोपी ने हाईकोर्ट में अपील की

आरोपी के इस घिनौनी वारदात के बाद परिजनों ने आरोपी के खिलाफ थाने में शिकायत दर्ज कराई। पुलिस ने मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच शुरू की और आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 363, 354(ए)(बी) व पॉक्सो एक्ट की धारा 7/8, 9(डी)(पी)/10, 11 के तहत चालान पेश किया।

विचारण न्यायालय ने आरोपी को दोषी पाते हुए 5 वर्ष के कारावास और अर्थदंड की सजा सुनाई। इसके खिलाफ आरोपी ने हाईकोर्ट में अपील की और खुद को झूठा फंसाए जाने की बात कही। उसने यह भी दलील दी कि पीड़िता की कोई मेडिकल रिपोर्ट नहीं है जिससे यह सिद्ध हो कि उसकी गरिमा को ठेस पहुंचाने का प्रयास किया गया था।

पीड़िता का बयान दोबारा दर्ज

हाईकोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया और जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (District Legal Services Authority) के माध्यम से पीड़िता का बयान दोबारा दर्ज कराने का निर्देश दिया। 3 अप्रैल 2025 को पीड़िता अपनी मां के साथ उपस्थित हुई और आपत्ति दर्ज कराई।

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कोर्ट ने विचार करते हुए कहा कि मुख्य प्रश्न यह है कि क्या पीड़िता की गवाही विश्वसनीय और स्वीकार्य है और क्या अभियोजन पक्ष ने आरोपी के अपराध को संदेह से परे सिद्ध किया है। पीड़िता की मां, निरीक्षक और विधिक सेवा प्राधिकरण से मिली जानकारी के आधार पर अदालत ने आरोपी की अपील खारिज कर दी और निचली अदालत द्वारा दी गई सजा को बरकरार रखा।

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हाईकोर्ट का सख्त रुख, पीड़िता की गरिमा सर्वोपरि

हाईकोर्ट (CG High Court) ने अपने फैसले में कहा कि “पीड़िता की गवाही स्वीकार्य है और अभियोजन पक्ष ने आरोपी के खिलाफ संदेह से परे मामला सिद्ध किया है।” कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मासूम बच्चों की गरिमा से खिलवाड़ करने वालों के प्रति समाज में सख्त संदेश देना जरूरी है। यह फैसला अन्य मामलों में भी उदाहरण बनेगा कि पीड़िता की दृढ़ गवाही और न्यायिक दृढ़ता से न्याय सुनिश्चित किया जा सकता है।

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