CG Bison Death: छत्तीसगढ़ के वन्यजीव संरक्षण पर एक गंभीर मामला सामने आया है, जहां 25 जनवरी को बरनावापारा अभ्यारण्य से गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व भेजी गई मादा सब एडल्ट बाइसन की 12 घंटे की ट्रक यात्रा के बाद मौत हो गई।
वन विभाग के दस्तावेजों से खुलासा हुआ है कि बाइसन की मौत प्राकृतिक नहीं थी, बल्कि वह एक बड़ी लापरवाही का शिकार हुई।
बाइसन को बेहोश करने के लिए दी गई थी कैपटीवान दवा
बड़े वन्यजीवों को ट्रांसलोकेट करने से पहले बेहोश करने के लिए एक शक्तिशाली दवा दी जाती है। इसके प्रभाव को समाप्त करने के लिए एंटीडोट का इंजेक्शन लगाया जाता है।
दुर्भाग्य से, इस बाइसन को बेहोश करने के लिए “कैपटीवान” नामक अत्यंत ताकतवर दवा दी गई, जो मोर्फिन से तीन से आठ हजार गुना ज्यादा शक्तिशाली होती है।
लेकिन उसे होश में लाने के लिए जो “एक्टिवोन” दवा दी गई, वह 10 महीने पहले ही एक्सपायर हो चुकी थी। इस कारण से कैपटीवान का प्रभाव खत्म नहीं हो पाया और बाइसन की मौत कई घंटों तक बेहोशी की स्थिति में रहने से हो गई।
लंबे समय तक बेहोश रहने पर श्वसन दर हो जाती है धीमी
यदि किसी वन्यजीव को होश में लाने के लिए उपयुक्त दवा नहीं दी जाती है या वह अप्रभावी हो जाती है, तो गंभीर परिणाम हो सकते हैं। लंबे समय तक बेहोशी की स्थिति में रहने से उसकी श्वसन दर धीमी हो जाती है, जिससे दम घुटने की संभावना बढ़ जाती है।
इसके अलावा, रक्तचाप और हृदय गति में अनियमितता आ सकती है, जिससे हृदयाघात तक हो सकता है। इस प्रकार की परेशानियों के कारण मादा बाइसन की मृत्यु हुई होगी।
दक्षिण अफ्रीका की वाइल्डलाइफ फार्मास्युटिकल्स से मंगवाई गई थीं दवाएं
बेहोश करने वाली “कैपटीवान” और होश में लाने वाली “एक्टिवोन” दोनों ही दवाएं दक्षिण अफ्रीका की वाइल्डलाइफ फार्मास्युटिकल्स से दिसंबर 2022 में मंगवाई गई थीं।
“एक्टिवोन” का बैच नंबर 123040 था, जिसकी चार शीशियां जंगल सफारी प्रबंधन को प्राप्त हुई थीं। कंपनी के अनुसार, इनकी एक्सपायरी मार्च 2024 थी, लेकिन जंगल सफारी प्रबंधन ने इसमें से दो शीशियां दिसंबर 2024 में बलौदाबाजार वनमंडल भेज दीं, जहां से 25 जनवरी 2025 को बाइसन को ट्रांसलोकेशन के दौरान इन्हीं एक्सपायर हो चुकी दवाओं का इस्तेमाल किया गया।
वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने बाइसन को न्याय दिलाने की मांग की
वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने इस मामले में दस्तावेज सरकार को भेजकर मृत बाइसन को न्याय दिलाने की मांग की है। उन्होंने प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) से पूछा है कि एक्सपायर दवा का इस्तेमाल क्यों किया गया? वह कौन अधिकारी था जिसने जंगल सफारी से यह दवा बलौदाबाजार वनमंडल भेजी? वह डॉक्टर कौन था जिसने बाइसन को यह कालातीत दवा दी?
सिंघवी ने यह भी सवाल उठाया कि 2018 में बरनावापारा अभ्यारण्य से गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व में 40 बाइसन भेजने की अनुमति मिली थी, लेकिन इस पर चार साल तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई? फिर जनवरी 2023 में किस अधिकारी ने इसे अपना “ड्रीम प्रोजेक्ट” बनाया, जिसके चलते बाइसन की जान गई?