CG Bilaspur High Court: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट से समाज कल्याण विभाग की एक सेवानिवृत्त महिला अधिकारी को न्याय मिला है, जो अपने हक के लिए बीते 20 वर्षों से कानूनी लड़ाई लड़ रही थीं। हाईकोर्ट ने साफ कहा है कि अधीक्षिका मंगला शर्मा को वर्ष 2007 की डीपीसी में जानबूझकर पदोन्नति से वंचित किया गया। न्यायमूर्ति एनके चंद्रवंशी की एकलपीठ ने इस फैसले में विभाग की कार्यप्रणाली पर सख्त टिप्पणी करते हुए इसे “दुर्भावनापूर्ण कृत्य” बताया है।
20 साल बाद मिला न्याय
हाईकोर्ट (Bilaspur High Court) ने समाज कल्याण विभाग के सचिव को निर्देशित किया है कि वे 2007 की विभागीय पदोन्नति समिति (DPC) की तर्ज पर समीक्षा डीपीसी आयोजित कर निर्णय लें और मंगला शर्मा को उसी पद के अनुरूप रिटायरमेंट ड्यूज और पेंशन का भुगतान किया जाए। अदालत ने कहा कि 90 दिनों के भीतर यह पूरी प्रक्रिया पूरी की जाए।
पदोन्नति में नहीं दिया गया मौका
मंगला शर्मा, जो कि 2017 में सेवानिवृत्त हुई थीं, उन्होंने अदालत को बताया कि 2007 की डीपीसी में उनकी एसीआर (वार्षिक गोपनीय प्रविष्टि) मौजूद होने के बावजूद उन्हें प्रमोशन से वंचित किया गया। अधिवक्ता संदीप दुबे ने कोर्ट को बताया कि संबंधित अधिकारियों को समय पर उनकी एसीआर भेजी गई थी, लेकिन विभाग ने जानबूझकर प्रमोशन नहीं दिया और कनिष्ठ अधिकारियों को आगे बढ़ा दिया गया।
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कोर्ट के पूर्व निर्देशों का पालन नहीं किया
हाईकोर्ट (Bilaspur High Court) ने पूर्व में भी 2017 और 2018 में विभाग को इस मामले में निर्णय लेने के निर्देश दिए थे, लेकिन विभाग ने आदेश की अवहेलना करते हुए याचिकाकर्ता का आवेदन खारिज कर दिया। कोर्ट ने अब उस खारिज आदेश को रद्द कर दिया है।
कोर्ट ने कहा कि प्रमोशन न देना एक जानबूझकर की गई गलती है, जिससे न केवल याचिकाकर्ता को मानसिक पीड़ा हुई, बल्कि उसका आर्थिक नुकसान भी हुआ। अदालत ने साफ कहा कि जिस तिथि से उनके कनिष्ठों को प्रमोशन मिला, उसी तिथि से मंगला शर्मा को भी पदोन्नति मानकर सेवानिवृत्ति लाभ दिए जाएं।