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बस्तर में पत्‍थरगढ़ी की वापसी: आदिवासी समुदाय की चेतावनी ग्रामसभा के बिना कुछ लागू नहीं होगा, सरकार ने कही ये बड़ी बात

Bastar Patthargadhi custom: दरभा और तोकापाल इलाकों में बड़ी-बड़ी चट्टानों पर ग्रामसभा के अधिकार दर्ज कर ‘पथरगढ़ी’ गाड़े जाने का क्रम फिर शुरू हो गया है।

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Sanjeet Kumar
Bastar Patthargadhi custom

Bastar Patthargadhi custom

Bastar Patthargadhi custom: छत्‍तीसगढ़ के जगदलपुर से सटे बस्तर के बास्तनार, दरभा और तोकापाल इलाकों में बड़ी-बड़ी चट्टानों पर ग्रामसभा के अधिकार दर्ज कर ‘पथरगढ़ी’ (Bastar Patthargadhi custom) गाड़े जाने का क्रम फिर शुरू हो गया है। पहले यह रिवाज सरगुजा में दिखाई देता था। लेकिन अब भाजपा सरकार के दोबारा सत्ता में आने के बाद बस्तर में भी ग्रामीण वही तरीका अपनाने लगे हैं।

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यहां के निवासी बताते हैं कि ये पत्थर सिर्फ सीमा चिन्ह नहीं, स्थानीय आदिवासी समुदाय (Bastar Patthargadhi custom) की चेतावनी है। हमारे बिना कोई फैसला नहीं। ग्रामवासी कहते हैं कि अब हर योजना- सरकारी हो या निजी- ग्रामसभा की सहमति के बिना लागू नहीं होगी। पत्थरगढ़ी से ये साफ संदेश जाता है कि बस्तर के लोग अपनी जमीन और संसाधनों पर किसी भी तरह का अवैध दखल बर्दाश्त नहीं करेंगे।

CG Bastar Patthargadhi custom

कानून को अपना ढाल बनाते आदिवासी

ग्रामीणों का हवाला PESA (पंचायती राज संस्थाओं का विस्तार अनुसूचित क्षेत्र (Bastar Patthargadhi custom) अधिनियम, 1996) कानून पर है, जो पाँचवीं अनुसूची के तहत आदिवासी क्षेत्रों को विशेष अधिकार देता है। इस कानून के मुताबिक ग्रामसभा सर्वोच्च स्थानीय इकाई है और वह किसी भी परियोजना की अनुमति दे या रोक सकती है। बस्तर के आदिवासी अब इस कानून को अपना ढाल बनाकर संवैधानिक रूप से अपनी ताकत दिखा रहे हैं।

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CM Vishnudeo Sai

संविधान और कानून सर्वोपरी

इधर मुख्यमंत्री विष्णु देव साय (Bastar Patthargadhi custom) ने कहा कि संविधान और कानून की व्यवस्था सर्वोपरि है। हमें इस बारे में जानकारी मिली है, जल्द ही सभी पक्षों से बातचीत करेंगे। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंह देव ने भी भरोसा जताया कि मुख्यमंत्री खुद बस्तर जाकर ग्रामीणों की बात सुनेंगे और समस्या का हल निकालेंगे।

विपक्ष ने इस मसले पर क्‍या कहा?

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने भाजपा पर हमला बोला। उन्‍होंने कहा कि कांग्रेस ने PESA कानून लागू किया था, लेकिन भाजपा सरकार ने इसे नजरअंदाज कर रखा है। बैज का कहना है कि अब बस्तर की जनता अपनी जमीन और खनिज संसाधनों को बचाने के लिए मजबूर हैं। उनका यह भी दावा है कि इस आंदोलन को वे संवैधानिक संवाद से समाधान की दिशा में ले जाना चाहते हैं।

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