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CG High Court: गर्भवती को अबॉर्शन कराने हाईकोर्ट ने दी अनुमति, पीड़िता की सुरक्षा को लेकर फैसला, अफसरों को ये निर्देश

Chhattisgarh (CG) Girl Rape Victim Abortion Case Update; छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक नाबालिग रेप पीड़िता के गर्भपात की अनुमति दे दी है। यह आदेश गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले की 16 वर्षीय छात्रा के मामले में दिया

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Sanjeet Kumar
CG Rape Victim Abortion Case

CG Rape Victim Abortion Case

CG Rape Victim Abortion Case: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक नाबालिग रेप पीड़िता के गर्भपात (CG Rape Victim Abortion Case) की अनुमति दे दी है। यह आदेश गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले की 16 वर्षीय छात्रा के मामले में दिया गया है, जो करीब ढाई महीने की गर्भवती है। कोर्ट ने पीड़िता की सुरक्षा, स्वास्थ्य और गोपनीयता को प्राथमिकता देते हुए यह फैसला सुनाया है।

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मामला करीब एक साल पुराना है। पीड़िता जब स्कूल जा रही थी, उस दौरान एक युवक ने उसे अपने प्रेमजाल में फंसाकर बहला-फुसलाकर अपने साथ ले गया और उसके साथ दुष्कर्म किया। परिजनों द्वारा गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराने के बाद पुलिस ने खोजबीन शुरू की और दोनों को बरामद कर लिया। छात्रा के बयान और मेडिकल जांच के बाद यौन शोषण की पुष्टि हुई।

मेडिकल रिपोर्ट में हुई गर्भावस्था की पुष्टि

छात्रा का मेडिकल कराने पर यह सामने आया कि वह 10 सप्ताह और 4 दिन की गर्भवती है। उसकी उम्र और केस के कानूनी (CG Rape Victim Abortion Case) पहलुओं को देखते हुए डॉक्टरों ने पहले गर्भपात की अनुमति नहीं दी थी। मगर गर्भावस्था बढ़ने से पीड़िता को स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याएं होने लगीं, जिससे उसकी जान को खतरा था।

हाईकोर्ट में दाखिल की गई याचिका

परिजन और छात्रा ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। कोर्ट ने मेडिकल रिपोर्ट (CG Rape Victim Abortion Case) पेश करने को कहा, जिसके बाद सीएमएचओ की ओर से रिपोर्ट पेश की गई। इसमें बताया गया कि गर्भपात किया जा सकता है और इससे पीड़िता को राहत मिलेगी।

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डीएनए नमूना रहेगा सुरक्षित

हाईकोर्ट ने जिला अस्पताल को आदेश दिया है कि पीड़िता को उसकी मां या कानूनी अभिभावक के साथ बुलाया जाए। डॉक्टरों की टीम उसकी दोबारा जांच करेगी। यदि मानसिक और शारीरिक रूप से वह ऑपरेशन के लिए सक्षम पाई जाती है, तो गर्भपात की प्रक्रिया की जाएगी। साथ ही भ्रूण से डीएनए नमूना लेकर उसे पॉक्सो एक्ट 2020 की धारा 6(6) के तहत सुरक्षित रखा जाएगा, ताकि यह आरोपी के खिलाफ सबूत के रूप में इस्तेमाल किया जा सके।

गोपनीयता का विशेष ध्यान रखने का आदेश

कोर्ट ने यह भी कहा है कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 की धारा 5ए के तहत पीड़िता की पहचान पूरी तरह गोपनीय रखी जाए। सीएमएचओ को पूरे मामले की व्यक्तिगत निगरानी करने का भी निर्देश दिया गया है, ताकि प्रक्रिया में कोई देरी न हो।

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