Parliamentary Committee: केंद्र सरकार ने 24 संसदीय समितियां बनाई हैं। इन समितियों में राहुल गांधी, दिग्विजय सिंह, शशि थरूर, कंगना रनौत, राधा मोहन सिंह जैसे कई नेताओं को जगह मिली है। राहुल गांधी को रक्षा मामलों की समिति का सदस्य बनाया गया है। शशि थरूर विदेश मामलों की समिति के अध्यक्ष होंगे। रामगोपाल यादव को स्वास्थ्य समिति की कमान सौंपी गई है। राधा मोहन सिंह को रक्षा मामलों की समिति का अध्यक्ष बनाया गया है। मध्यप्रदेश से दिग्विजय सिंह को महिला, शिक्षा, युवा और खेल मामलों की संसदीय समिति का अध्यक्ष बनाया गया है। सोनिया गांधी का नाम किसी भी समिति में नहीं है।
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MP से दिग्विजय सिंह को इस समिति की कमान
बीजेपी नेता राधा मोहन दास अग्रवाल को गृह मामलों की संसदीय समिति का अध्यक्ष बनाया गया है। वित्त मामलों की संसदीय समिति की जिम्मेदारी बीजेपी सांसद भर्तृहरि महताब को सौंपी गई है। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह को महिला, शिक्षा, युवा और खेल मामलों की संसदीय समिति का अध्यक्ष बनाया गया है। बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे को संचार और आईटी समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है, जबकि कंगना रनौत को इसी समिति की सदस्य बनाया गया है। राम का किरदार निभा चुके अरुण गोविल को विदेश मामलों की समिति का सदस्य बनाया गया है। बीजेपी नेता सी एम रमेश को रेल मामलों की समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।
समितियों की जरूरत क्यों ?
संसद के पास कई काम होते हैं और समय की कमी भी होती है। इसलिए जब कोई मामला संसद में आता है, तो वह उस पर पूरी तरह से विचार नहीं कर पाती। इस स्थिति में कई काम समितियों द्वारा निपटाए जाते हैं, जिन्हें संसदीय समितियां कहा जाता है। इन समितियों का गठन संसद द्वारा किया जाता है।
2 तरह की समितियां
ये समितियां संसद के अध्यक्ष के आदेश पर काम करती हैं और अपनी रिपोर्ट संसद या अध्यक्ष को देती हैं। ये दो तरह की होगी हैं स्थायी समितियां और तदर्थ समितियां। स्थायी समितियों का कार्यकाल एक साल होता है और इनका काम निरंतर चलता रहता है। वित्तीय समितियां, विभागों से जुड़ी समितियां और कुछ अन्य प्रकार की समितियां स्थायी होती हैं। वहीं तदर्थ समितियां कुछ खास मामलों के लिए बनाई जाती हैं। जब इनका काम खत्म हो जाता है तो इन समितियों का अस्तित्व भी खत्म हो जाता है।
क्या होता है समितियों का काम ?
संसद की स्थायी समितियों का मुख्य कार्य सरकार की गतिविधियों में सहायता करना होता है। चूंकि संसद के पास कई जिम्मेदारियां होती हैं, इसलिए ये समितियां उन पर ध्यान देती हैं और सुझाव देती हैं। इन समितियों का एक और महत्वपूर्ण कार्य सरकार के कामकाज पर नजर रखना होता है। हर समिति का अपना विशेष कार्य होता है। उदाहरण के लिए, वित्तीय समितियों का कार्य सरकार के खर्चों की निगरानी करना है। उन्हें यह देखना होता है कि क्या सरकार ने समय पर खर्च किया है या नहीं, या कहीं ऐसा तो नहीं हुआ कि खर्च करने से नुकसान हुआ हो, या फिर खर्च में कोई अनियमितता या लापरवाही तो नहीं हुई है।
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मामलों की जांच और कार्रवाई की सिफारिश
वित्तीय समितियां इन गतिविधियों पर ध्यान देती हैं। यदि कोई गड़बड़ी पाई जाती है, तो विभाग से जानकारी मांगी जाती है और यह पूछा जाता है कि गड़बड़ी को रोकने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं। संसदीय समितियों को यह अधिकार होता है कि वे किसी भी मामले से संबंधित दस्तावेज मांग सकती हैं, किसी को भी बुला सकती हैं और विशेषाधिकार हनन की रिपोर्ट तैयार कर सकती हैं। इसके अलावा, संसद के सदस्यों के विशेषाधिकारों और सुविधाओं के दुरुपयोग के मामले भी सामने आते हैं। संसदीय समितियां इन मामलों की जांच करती हैं और कार्रवाई की सिफारिश करती हैं।
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