Brain Research:आज कल भूलने की बीमारी की शिकायत अधिकतर सुनंने में आ रही है। लेकिन न्यूरोसाइंटिस्ट कहते हैं कि भूलना कोई बीमारी नहीं है बल्कि भूलना सीखने का एक प्रकार हो सकता है।
इससे डायनामिक वातावरण के लचीले बर्ताव का लाभ मिल सकते हैं। उनका कहना है कि याद्दाश्त पूरी तरह से कभी खत्नम नहीं होता है, बल्कि ‘एनग्राम’ में जा कर जमा हो जाती है। यानि यादों को प्राकृतिक और कृत्रिम दोनों तरीकों से हासिल किया जा सकता है।
बता दें कि यादों और याद्दाश्त को लेकर nerve वैज्ञानिकों के प्रयोगों से खुलासा हुआ है कि भूलने की अवधारणा खराब बात नहीं होती है और वे एक तरह से सीखने का ही स्वरूप को प्रदर्शित कर सकते हैं।
इससे पहले इन वैज्ञानिकों ने प्रस्ताव दिया था कि कुछ यादों को वापस लाने की क्षमता में होने वाल बदालव का पर्यावरणीय फीडबैक और अनुमान लागने की क्षमता पर निर्भर करते हैं।
उनकी दलील थी कि किसी खामी होने की जगह भूलना दिमाग की जानबूझ कर करने वाला गुण हो सकता है। इससे दिमाग को हमेशा बदलते वातावरण में ढलने का मौका मिलता है।
भूलने की प्रक्रिया बर्ताव में लचीलापन ला सकता है
बदलती दुनिया में इंसान और अन्य बहुत सारे जीवों के लिए कुछ यादों को भूल जाना अच्छी बात हो सकती है। शोधकर्ताओं है कि इससे निर्णय लेने की क्षमता और बर्ताव में लचीलापन आ सकता है।
यदि यादें ऐसे हालात में वापस आएं जिनका वर्तमान से कोई लेना देना नहीं है। तो वे हमारी सेहत के लिए सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।
शोधकर्ताओं ने भूलने की एक प्रक्रिया का किया अध्ययन
शोधकर्ताओं ने भूलने के एक प्रकार का अध्ययन किया जिसे रेट्रोएक्टिव इंटरफेरेंस कहते हैं। जहां समय के बहुत पास हुए अलग-अलग अनुभव हाल में बनी कुछ यादों को भुला देती हैं।
अध्ययन में चूहों को खास संदर्भ के निश्चित वस्तु से खुद को जोड़ने के लिए प्रेरित किया गया और बाद में उस संदर्भ से हटाकर उस वस्तु को दूसरी जगह पर रखकर पहचानने के लिए रखा गया। इस अध्ययन में पाया गया कि चूहे पिछली यादों के संदर्भों को भूलने लगते हैं।
इसके अलावा जब चूहों को पुरानी भूली यादों से संबंधित नए नए अनुभव दिए गए तो गुम हुए एनग्राम प्राकृतिक तौर पर पुनर्जीवित से हो गए।
यहां जाकर जमा हो जाती हैे यादें
पुरानी सभी यादें एनग्राम कोशिकाओं नाम के न्यूरॉन्स के समूह में जमा होती हैं और इन्हें सफलता पूर्वक वापस याद करने से ये समूह सक्रिय होते हैं।
जब एनग्राम कोशिकाओं को पुनःसक्रिय नहीं कर पाते हैं तो हम कहते हैं कि हम भूल गए हैं। जबकि ऐसा कुछ नहीं है।
इस अध्ययन से साफ़ हो गया है कि यादें बनी रहती हैं।
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