नई दिल्ली। देश कोरोना की दूसरी लहर भले ही कमजोर पड़ती दिख रही हो, लेकिन लोग अब कोरोना के साथ-साथ ब्लैक फंगस, व्हाइट फंगस और येलो फंगस से भी डरने लगे हैं। देश में फंगस का खतरा बढ़ता ही जा रहा है। इसी कड़ी में अब एक और नया खुलासा हुआ है। पहले जहां कहा जा रहा था कि ब्लैक फंगस उन्हें ही हो रहा है जो कोरोना से संक्रमित थे या फिर जिन मरीजों के इलाज में स्टेरॉयड का ज्यादा इस्तेमाल किया गया है। लेकिन पंजाब में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जिन्हें कभी भी कोरोना नहीं हुआ। लेकिन वो ब्लैक फंगस के चपेट में आ गए।
1885 में आया था ब्लैक फंगसा का पहला मामला
मालूम हो कि पंजाब में अब तक ब्लैक फंगस के 158 से ज्यादा मरीज सामने आ चुके हैं। इनमें से 32 मरीज ऐसे हैं जिन्हें कभी भी कोरोना संक्रमण नहीं हुआ है। डॉक्टरों ने पाया कि ऐसे जिन मरीजों में ब्लैक फंगस के मामले सामने आए हैं, उन्हें कभी पूर्व में किसी दूसरी बीमारी में स्टेरॉयड दिया गया था। बता दें कि ब्लैक फंगस के मामले कोई नए नहीं हैं। लेकिन इस बार इतने मामले एक साथ सामने आ रहे हैं कि लोग इस पर बात करने लगे हैं। पहली बार ये 1855 में सामने आया था, उस वक्त इस बीमारी को जिगोमाइकोसिस कहते थे। इसी तरह साल 2004 और 2011 के सुनामी और बवंडर के बाद भी ब्लैक फंगस के मामले तेजी से सामने आए थे।
समय रहते इलाज संभव
पंजाब के नोडल अधिकारी डॉ. गगनदीप सिंह के मुताबिक जिस किसी व्यक्ति की इम्युनिटी कमजोर है, उसे ये बीमारी होने का खतरा है। उन्होंने कहा कि अगर समय रहते इसकी पहचान कर ली जाए तो इसका इलाज हो सकता है। मालूम हो कि ब्लैक फंगस कोरोना की तरह छूने से नहीं फैलता है। इसलिए लोगों को इससे ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है। डॉक्टर के अनुसार ब्लैक फंगस का सबसे ज्यादा खतारा उन्हें हैं जिन्हें ज्यादा स्टेरॉयड दिया गया है।
ब्लैक फंगस के बचाव के लिए क्या करें
डॉक्टर ब्लैक फंगस से बचाव के लिए कहते हैं कि सबसे पहले मरीज में शुगर लेवल को कंट्रोल किया जाए। क्योंकि डायबिटीज वाले मरीजों में प्रितरोधक क्षमका रम हो जाती है। इससे ब्लैक फंगस का खतरा बढ़ जाता है। अगर हॉस्पिटल अपने यहां भर्ती मरीज के शुगर लेवल को कंट्रोल कर लेते हैं तो ब्लैक फंगस के खतरे को कम किया जा सकता है।