Bilaspur High Court News: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक नाबालिग छात्रा से छेड़छाड़ करने वाले शिक्षक की सजा को बरकरार रखते हुए उसकी सजा के खिलाफ अपील (Criminal Appeal) को खारिज कर दिया है। न्यायमूर्ति संजय के अग्रवाल (Justice Sanjay K Agrawal) की एकलपीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि आरोपी ने पीड़िता की गरिमा को ठेस पहुंचाई है, और यह गंभीर अपराध है।
क्या है पूरा मामला?
यह मामला मुंगेली जिले (Mungeli District) के एक शासकीय हाईस्कूल से जुड़ा है, जहां आरोपी अमित सिंह (Teacher Amit Singh) व्याख्याता के पद पर कार्यरत था। घटना 25 अगस्त 2022 की है, जब 13 साल की एक छात्रा की मां ने थाने में शिकायत दर्ज कराई थी कि स्कूल के शिक्षक ने उसकी बेटी के साथ छेड़छाड़ (Molestation of Minor Girl) की है। पुलिस ने छात्रा के SC/ST समुदाय (SC/ST Act) से होने के आधार पर भारतीय दंड संहिता की धारा 354, POCSO Act 2012 Section 10, और SC/ST Act Section 3(1) के तहत अपराध दर्ज किया।
दोष सिद्ध होने पर निचली अदालत ने दी थी 5 साल की सजा
ट्रायल के दौरान पेश सबूतों के आधार पर निचली अदालत ने आरोपी शिक्षक को 5 वर्ष का कारावास (5 Years Imprisonment) और ₹2000 के जुर्माने की सजा सुनाई थी। इसके खिलाफ आरोपी ने बिलासपुर हाईकोर्ट (Bilaspur High Court) में अपील दायर की थी। उसकी ओर से यह तर्क दिया गया कि घटना वाले दिन वह स्कूल में उपस्थित नहीं था और आकस्मिक अवकाश पर था।
कोर्ट ने दस्तावेज को नहीं माना विश्वसनीय
हाईकोर्ट ने आरोपी द्वारा प्रस्तुत छुट्टी का दस्तावेज सिर्फ प्राचार्य के हस्ताक्षर (Principal’s Signature Only) वाला होने के कारण उसे साक्ष्य के रूप में अस्वीकार कर दिया। कोर्ट ने यह भी माना कि छात्रा के साथ आरोपी ने 25 अगस्त के अलावा अन्य दिनों में भी यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment of Minor) किया था।
हाईकोर्ट ने अपील खारिज कर जेल अधीक्षक को भेजा आदेश
जस्टिस संजय के अग्रवाल ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपील को पूरी तरह खारिज कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि पीड़िता की गरिमा को ठेस पहुंचाना समाज में शिक्षक जैसे जिम्मेदार पद पर बैठे व्यक्ति के लिए बेहद निंदनीय है। साथ ही कोर्ट ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि इस निर्णय की प्रति संबंधित जेल अधीक्षक (Jail Superintendent) को भेजी जाए, जहां आरोपी अपनी सजा काट रहा है।
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मामला बना मिसाल, लोगों में बढ़ा भरोसा
यह फैसला POCSO मामलों में न्याय प्रक्रिया (POCSO Justice Process in India) की गंभीरता और पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा का प्रतीक बन गया है। आम लोगों ने सोशल मीडिया पर इस निर्णय का समर्थन करते हुए न्यायपालिका की प्रशंसा की है। यह निर्णय भविष्य में ऐसे मामलों में सख्त रुख अपनाने की दिशा में अहम कदम माना जा रहा है।