Bhopal Gas Tragedy : भोपाल गैस कांड़ (Bhopal Gas Tragedy) दुनिया के इतिहास का सबसे बड़ा कांड़ है। बात साल 1984 की है। भोपाल के वाशिंदे रोजाना की तरह सुबह अपने काम से निकले थे। महिलाएं अपने घरों के कामों जुटी थी, बच्चे खेलकूद और अपनी पढ़ाई में जुटे थे, लेकिन किसी को क्या पता था की वो अगले दिन का सूरज नहीं देख पाएंगे, परिवार को पालने पोसने वाले, घर की जिम्मेदारियां उठाने वाले कामकाज से लौटकर अपने परिवार के साथ चैंन की निंद सोए, सोए तो ऐसे की अगली सुबह नहीं देख सके। जिन्होंने अगली सुबह का जो मंजर देखा, उनका दिल दहल उठा। बीबी, बच्चे, मां-बाप सब मौत की नींद से जागे नहीं थे, कुछ ऐसी थी वो काली रात…
तीन दिसंबर साल 1984 की आधी रात को यूनियन कार्बाइड के प्लांट से निकली जहरीली गैस (Bhopal Gas Tragedy) ने हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया था। इतना कहना पर्याप्त नहीं होगा की मरने वालों की संख्या हजारों में थी, बल्कि लाखों लोग इस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) से प्रभावित हो चुके थे, जो आज भी उस काली रात का दंश झेल रहे है। तीन दिसंबर की सुबह प्लांट से निकली मौत हवा के साथ पूरे शहर में फैलते हुए लोगों को मौत की नींद सुलाती जा रही थी। चारो ओर चीख पुकार मची थी, लोग शहर छोड़कर भाग रहे थे। लोगों को सांस लेने में तो किसी को आंखों में परेशानी हो रही थी। तो किसी के फैंफड़ों में गैस जमा होने के चलते भगवान को प्यारे हो चुके थे। बड़ा खौफनाक थो वो मंजर…
कुछ ही घंटो में 3 हजार की मौत
मौतों का सिलसिला कुछ यू था की कुछ ही घंटों में करीब तीन हजार लोग काल के गाल में समा चुके थे। यह तो सरकारी आंकड़े बताते है, लेकिन गैर सरकारी संस्थाओं की माने तो मरने वालों की संख्या करीब तीन गुना अधिक थी। उस रात से मौत का जो सिलसिला शुरू हुआ जो बरसो तक चलता रहा। आज भी कई परिवार ऐसे है जो जहरीली गैस का दंश झेल रहे है।
ऐसे फैली मौत की गैस
इंटरनेट डाटा के अनुसार कार्बाइड फैक्टरी (Bhopal Gas Tragedy) से करीब 40 टन गैस का रिसाव हुआ था और इसका कारण यह था कि फैक्टरी के टैंक नंबर 610 में जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस (Bhopal Gas Tragedy) से पानी मिल गया था। इस घटना के बाद रासायनिक प्रक्रिया हुई और इसके परिणामस्वरूप टैंक में दबाव बना, और टैंक खुल गया, गैस वायुमंडल में फैल गई। गैस ने सबसे पहले अपना शिकार कारखाने के पास बनी झुग्गी बस्ती में रहने वाले लोगों को बनाया। शहर तो शहर दूर दराज से रोजी रोटी कमाने के लिए राजधानी आने वाले लोग भी मौत की गैस से बच नहीं सके। मौत का ऐसा मंजर था कि मरने के लिए एक मिनट ही काफी था।
दो दिन में 50 हजार लोगों का इलाज
जहरीली गैस (Bhopal Gas Tragedy) से प्रभावित लोगों को सांस लेने में तकलीफ होने लगी थी। लोग आंखों की जल और सांस की समस्या लेकर अस्पताल पहुंचने लगे, डॉक्टरों को भी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार कैसे करें इसका इलाज? अस्पतालों में मरीजों की संख्या इतनी थी की लोगों को भर्ती करने की जगह तक नहीं बची थी। बताया जाता है कि पहले दो दिनों में करीब 50 हजार लोगों का इलाज किया गया था।
मिथाइल आइसोसाइनेट क्या है?
मिथाइल आइसोसायनेट एक रंगहीन तरल है। इसका इस्तेमाल कीटनाशक बनाने में होता है। सुरक्षित स्टोरेज का बंदोबस्त किया जाए तो मिथाइल आइसोसाइनेट (Bhopal Gas Tragedy) सुरक्षित है, लेकिन रसायन गर्मी मिलने पर ये काफी तेजी से फैसला है। पानी के संपर्क में आने पर, एमआईसी में रिएक्ट करता है। गर्मी का रिएक्शन होने पर हालात जानलेवा हो जाते हैं। गंभीरता को देखते हुए अब मिथाइल आइसोसाइनेट का उत्पादन नहीं होता, हालांकि यह अभी भी कीटनाशकों में प्रयोग किया जाता है। वर्तमान में, अमेरिका के वेस्ट वर्जीनिया में बायर क्रॉपसाइंस प्लांट इंस्टीट्यूट दुनिया भर में एक मात्र ऐसी जगह है, जहां एमआईसी का भंडारण होता है।
विकास जैन
बंसल न्यूज, डिजिटल