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भोपाल गैस त्रासदी की बरसी: 40 साल बाद भी पीड़ित न्याय के लिए कर रहे संघर्ष, 16 साल की स्टडी में हुए नए खुलासे

Bhopal Gas Tragedy Victims: भोपाल ग्रुप फॉर इनफार्मेशन एंड एक्शन की संचालक रचना ढींगरा ने बताया कि गैस त्रासदी से पहले यूनियन कार्बाइड परिसर में गड्ढे खोदकर जहरीला रासायनिक कचरा दबा दिया जाता था।

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Rohit Sahu
भोपाल गैस त्रासदी की बरसी: 40 साल बाद भी पीड़ित न्याय के लिए कर रहे संघर्ष, 16 साल की स्टडी में हुए नए खुलासे

Bhopal Gas Tragedy Victims : भोपाल गैस कांड की आज 40वीं बरसी है। इससे एक दिन पहले, सोमवार को गैस पीड़ितों से जुड़े संगठनों ने मशाल रैली और श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया। यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के पास स्थित स्मारक पर गैस पीड़ित एकत्रित हुए और मृतकों को श्रद्धांजलि दी। इस दौरान वे लोग भी वहां मौजूद थे, जिन्होंने गैस त्रासदी के दौरान अपने प्रियजनों को खोया और खुद भी गंभीर बीमारियों से ग्रसित हैं। 40 साल बाद भी इस भीषण त्रासदी के जख्म कायम हैं।

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फैक्ट्री का कचरा जमीन में दफन

भोपाल ग्रुप फॉर इनफार्मेशन एंड एक्शन की संचालक रचना ढींगरा ने बताया कि गैस त्रासदी से पहले यूनियन कार्बाइड परिसर में गड्ढे खोदकर जहरीला रासायनिक कचरा दबा दिया जाता था। इसके साथ ही, तीन तालाबों में पाइपलाइन के जरिए जहरीले अपशिष्ट को डाला जाता था। आज भी यह कचरा जमीन के भीतर मौजूद है और जल स्रोतों को प्रदूषित कर रहा है। सरकार ने कारखाने में मौजूद कचरे को नष्ट करने के लिए 126 करोड़ रुपये का बजट मंजूर किया है, जिसे पीथमपुर में जलाने की योजना है। हालांकि, इस प्रक्रिया में देरी और पारदर्शिता की कमी के कारण अब तक कोई ठोस समाधान नहीं निकल पाया है।

सरकार की पुनर्वास नीतियां नहीं हुईं सफल

भोपाल गैस पीड़ितों के पुनर्वास के लिए 2010 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर 272 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत की गई थी। लेकिन 14 साल बाद भी इस राशि का बड़ा हिस्सा खर्च नहीं हो पाया है। आर्थिक पुनर्वास के लिए मिले 104 करोड़ रुपये में से केवल 18 करोड़ रुपये स्वरोजगार प्रशिक्षण पर खर्च किए गए। सामाजिक पुनर्वास के लिए आवंटित 40 करोड़ रुपये में विधवाओं को पेंशन देने का प्रावधान है, लेकिन इसे बढ़ाने या नए लाभार्थियों को शामिल करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है।

पीड़ितों का संघर्ष जारी

भोपाल गैस त्रासदी के 40 साल बाद भी पीड़ितों का संघर्ष जारी है। गैस पीड़ितों के लिए काम कर रहे संगठन और सामाजिक कार्यकर्ता लगातार सरकार से उनकी समस्याओं का समाधान करने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि जहरीले कचरे का निस्तारण और प्रदूषित भूजल की नए सिरे से जांच प्राथमिकता होनी चाहिए। पीड़ित अपने स्वास्थ्य और जीविका के लिए जूझ रहे हैं, और सरकारी योजनाओं और न्याय की लड़ाई में भी खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं।

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गैस प्रभावित लोगों में ज्यादा फैल रही बीमारियां

भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) के पीड़ितों से जुड़े संगठनों ने बताया कि गैस प्रभावित लोगों में बीमारियां ज्यादा फैल रही हैं। संभावना ट्रस्ट के 16 साल के अध्ययन के अनुसार, गैस प्रभावितों में श्वसन, मानसिक बीमारियां, मधुमेह, उच्च रक्तचाप और गुर्दे की बीमारियां अप्रभावित लोगों से अधिक पाई गईं। गैस प्रभावित महिलाओं में रजोनिवृत्ति के मामले भी ज्यादा थे। हृदय और तंत्रिका तंत्र पर भी अधिक प्रभाव पड़ा है। संभावना ट्रस्ट के संस्थापक सतिनाथ सारंगी ने कहा कि गैस पीड़ितों को अब भी विशेष स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरत है।

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क्या थी भोपाल गैस त्रासदी

2 और 3 दिसंबर 1984 की रात भोपाल में हुई गैस त्रासदी ने हजारों लोगों की जान ले ली। यूनियन कार्बाइड कंपनी से रिसी मिथाइल आइसोसायनाइड गैस ने आस-पास के गांवों को अपनी चपेट में ले लिया। गैस लीक होने से उल्टी, आंखों में जलन और सांस की समस्या जैसी कठिनाइयां होने लगीं। सायरन बजते ही अफरा-तफरी मच गई और अस्पतालों में हजारों लोग पहुंचे, लेकिन इलाज की व्यवस्था नाकाफी साबित हुई। हजारों लोग जान गंवा बैठे, जिनमें बच्चे और बुजुर्ग भी थे। 40 साल बाद भी इसके दुष्प्रभावों का असर आज भी देखा जा रहा है।

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सीरीज में दिखाई गैस त्रासदी की कहानी

नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज द रेलवे मेन,  (The Railway Man) जो भोपाल गैस त्रासदी और रेलवे स्टेशन पर अपने प्राणों की परवाह किए बिना लोगों की जान बचाने वाले नायकों को श्रद्धांजलि देती है, ने Filmfare OTT Awards में 6 अवॉर्ड्स जीते। डेब्यू डायरेक्टर शिव रवैल ने इस सफलता पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि इस प्रोजेक्ट को मिली सराहना उनके लिए बेहद भावुक क्षण है। उन्होंने बताया कि उनकी टीम का उद्देश्य एक जरूरी कहानी सुनाना था और यह सीरीज उन अनसुने नायकों को सलाम करती है, जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना हजारों जिंदगियां बचाईं।

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