भोपाल। राजधानी में मध्य प्रदेश भाजपा मंत्री राहुल कोठारी के तत्वावधान में 2 से 8 अप्रैल तक श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया गया है। श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिन देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज (Bhopal Devkinandan Thakur) ने विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ शुरूआत की। इसके बाद महाराज ने सभी भक्तगणों को “पत्ता-पत्ता डाली-डाली मेरी श्याम वसदा” भजन श्रवण कराया।
महाराज ने पूछा ये सवाल ?
देवकीनंदन ठाकुर महाराज ने कहा कि 25 साल बाद देश सेक्यूलर नहीं रहेगा। मथुरा, काशी और जनसंख्या कानून बनवाना है। राम की तरह कृष्णजी को भी आजाद करना होगा। जल्द मथुरा में कृष्ण मंदिर को लेकर आंदोलन चलाएंगे। वहीं पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने एक बार फिर हिन्दू राष्ट्र की मांग दोहराई। उन्होंने देवकीनंदन ठाकुर महाराज का समर्थन करते हुए कहा कि राम मंदिर तो झांकी है, काशी और मथुरा बाकी है।
लोगों ने हाथ उठाकर समर्थन दिया
आगे धीरेंद्र शास्त्री ने कहा कि वक्ता को मत पकड़ो.. वक्ता के वक्तव्य को पकड़ो वक्तव्य को पकड़ोगे तो निखर जाओगे।हनुमान जी दुनिया के सबसे बढ़िया वक्ता हैं। राम जी की शरण में जो रहते हैं, उनकी पूंछ बढ़ जाती है। मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि के लिए हम देवकीनंदन जी के साथ हैं, जो नहीं हैं उनकी ठटरी.. वहीं धीरेंद्र शास्त्री ने भक्तों से पूछा कि जन्मभूमि आंदोलन में कौन कौन साथ हैं. तो लोगों ने हाथ उठाकर समर्थन दिया।
पगड़ी पहनाकर सम्मानित किया
कथा में मुख्य अतिथि के रूप में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने महाराज से आशीर्वाद प्राप्त किया। संयोजक राहुल कोठारी ने महाराज को पगड़ी पहनाकर सम्मानित किया।
गलत मार्ग की दिशा दिखाती हैं
देवकीनंदन ठाकुर महाराज ने कहा कि पुराणों एवं वेदों की कथाएं हमें सही और गलत मार्ग की दिशा दिखाती हैं। अच्छे समय का सदुयोग करो अच्छा समय बहुत जल्दी भाग जाता है अच्छा समय जाते हुए देर नहीं लगाता। इसलिए अच्छे समय का सदुपयोग करो हमारे आयोजकों ने जिस तरीके से ये दिव्य आयोजन कराया इसकी चर्चा दूर -दूर तक हो रही है। हर सनातनी इतनी तेज़ राधे राधे बोले कि जो सनातन को नहीं मानते हैं उनकी छाती फट जाए।
प्रेम का सबूत देना पड़ता है
देवकीनंदन ठाकुर महाराज ने कहा कि आजकल तो प्रेम का सबूत देना पड़ता है यह प्रेमी नहीं होगी यह तुम्हारे रूप पर लट्टू है तुम्हारे तुमसे प्रेम नहीं उनको जिनका मुख मंडल सुंदर है उसके चाहने वाले थोड़े ज्यादा होते हैं उज्जैन का मुख्य मंडल थोड़ा ठीक-ठाक है वह बेचारा अपने आप ही पीछे पड़ा रहता है कोई तो हमें देख ले प्रेम नहीं है यह तो कामना है अगर प्रेम होना है तो सही हो सकता है। धर्मो रक्षति रक्षिता अगर हम और आप अपने धर्म की रक्षा करेंगे तो इसमें कोई संशय नहीं कि ठाकुर जी हमारा बाल भी बांका नहीं होने देंगे।+
नाना उग्रसेन को कारागार से मुक्त कराया
देवकीनंदन ठाकुर महाराज ने कहा कि जिसके जीवन में धर्म नहीं है उसी को राक्षस कहा जाता है वही राक्षस है इसलिए हम सबके जीवन में धर्म का होना और धर्म की रक्षा होना परम आवश्यक है।
भगवान श्री कृष्ण ने जब अवतार लिया 11 वर्ष 56 दिन भगवान ब्रज में रहे और उसके बाद श्री कृष्णा मथुरा चले गए और मथुरा में जाकर आतताई कंस का वध किया और अपनी माता देवकी पिता वासुदेव और नाना उग्रसेन को कारागार से मुक्त कराया।
श्री कृष्ण मथुरा से गोकुल को छोड़ दिया जाए छोड़ दी।
देवकीनंदन ठाकुर महाराज ने कहा कि कारागार से मुक्त बहुत समय तक मथुरा की व्यवस्था करते हुए श्री कृष्ण मथुरा में रहे और श्री कृष्णा मथुरा से ब्रज नहीं लौटे जब श्री कृष्ण मथुरा से ब्रज नहीं लौटे तो बृजवासी उनकी याद करते मां यशोदा बाबा नंद बृजवासी वाल वाल ब्रज की गोपी बंदूक छोड़ दीजिए गाय भी याद करते हैं बड़े भी याद करते हैं यमुना भी याद करती है लता पता भी याद करते बड़ा सुंदर भाव है श्री कृष्ण मथुरा से गोकुल को छोड़ दिया जाए छोड़ दी।
दुर्दशा का जीवन व्यतीत कर रहा था
देवकीनंदन ठाकुर महाराज ने कहा कथा का क्रम सुनाते हुए श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता की कथा श्रोताओं के श्रवण कराई। सुदामा एक गरीब ब्राह्मण था। वह और उसका परिवार अत्यंत गरीबी तथा दुर्दशा का जीवन व्यतीत कर रहा था। कई-कई दिनों तक उसे बहुत थोड़ा खाकर ही गुजारा करना पड़ता था। कई बार तो उसे भूखे पेट भी सोना पड़ता था। सुदामा अपने तथा अपने परिवार की दुर्दशा के लिए स्वयं को दोषी मानता था। उसके मन में कई बार आत्महत्या करने का भी विचार आया।
अपने विचार व्यक्त किया करता था
देवकीनंदन ठाकुर महाराज ने कहा दुखी मन से वह कई बार अपनी पत्नी से भी अपने विचार व्यक्त किया करता था। उसकी पत्नी उसे दिलासा देती रहती थी। उसने सुदामा को एक बार अपने परम मित्र श्रीकृष्ण, जो उस समय द्वारका के राजा हुआ करते थे, की याद दिलाई।
आज भोपाल में पूज्य देवकीनंदन ठाकुर जी के मुखारविंद से श्रीमद्भागवत कथा का रसपान किया एवं व्यासपीठ का दर्शन और अर्चन कर पुण्यलाभ अर्जित किया।
इस अवसर पर @bageshwardham सरकार पू. धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री जी का आशीर्वाद मिला।
भगवान श्रीकृष्ण की कृपा सभी पर सदा बनी रहे। pic.twitter.com/WyX94HkcnX
— Neha Bagga – नेहा बग्गा (@BaggaNeha) April 8, 2023
एक गरीब ब्राह्मण हूं
बचपन में सुदामा तथा श्रीकृष्ण एक साथ रहते थे तथा सांदीपन मुनि के आश्रम में दोनों ने एक साथ शिक्षा ग्रहण की थी। सुदामा की पत्नी ने सुदामा को उनके पास जाने का आग्रह किया और कहा, “श्रीकृष्ण बहुत दयावान हैं, इसलिए वे हमारी सहायता अवश्य करेंगे।’ सुदामा ने संकोच-भरे स्वर में कहा, “श्रीकृष्ण एक पराक्रमी राजा हैं और मैं एक गरीब ब्राह्मण हूं।
सुदामा श्रीकृष्ण के पास जाने को राजी हो गया
मैं कैसे उनके पास जाकर सहायता मांग सकता हूं ?’ उसकी पत्नी ने तुरंत उत्तर दिया, “तो क्या हुआ ? मित्रता में किसी प्रकार का भेद-भाव नहीं होता। आप उनसे अवश्य सहायता मांगें। मुझसे बच्चों की भूख-प्यास नहीं देखी जाती।’ अंत: सुदामा श्रीकृष्ण के पास जाने को राजी हो गया।
दर्शन किए बिना वहां से नहीं जाएगा
उसकी पत्नी पड़ोसियों से थोड़े-से चावल मांगकर ले आई तथा सुदामा को वे चावल अपने मित्र को भेंट करने के लिए दे दिए। सुदामा द्वारका के लिए रवाना हो गया। महल के द्वार पर पहुंचने पर वहां के पहरेदार ने सुदामा को महल के अंदर जाने से रोक दिया। सुदामा ने कहा कि वह वहां के राजा श्रीकृष्ण का बचपन का मित्र है तथा वह उनके दर्शन किए बिना वहां से नहीं जाएगा।
दोनों के आदर-सत्कार में लगी रहीं
देवकीनंदन ठाकुर महाराज ने कहा श्रीकृष्ण के कानों तक भी यह बात पहुंची। उन्होंने जैसे ही सुदामा का नाम सुना, उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। वे नंगे पांव ही सुदामा से भेंट करने के लिए दौड़ पड़े। दोनों ने एक-दूसरे को गले से लगा लिया तथा दोनों के नेत्रों से खुशी के आंसू निकल पड़े। श्रीकृष्ण सुदामा को आदर-सत्कार के साथ महल के अंदर ले गए। उन्होंने स्वयं सुदामा के मैले पैरों को धोया। उन्हें अपने ही सिंहासन पर बैठाया। श्रीकृष्ण की पत्नियां भी उन दोनों के आदर-सत्कार में लगी रहीं।
चावलों को बड़े चाव से खाने लगे
देवकीनंदन ठाकुर महाराज ने कहा दोनों मित्रों ने एक साथ भोजन किया तथा आश्रम में बिताए अपने बचपन के दिनों को याद किया। भोजन करते समय जब श्रीकृष्ण ने सुदामा से अपने लिए लाए गए उपहार के बारे में पूछा तो सुदामा लज्जित हो गया तथा अपनी मैली-सी पोटली में रखे चावलों को निकालने में संकोच करने लगा। परंतु श्रीकृष्ण ने वह पोटली सुदामा के हाथों से छीन ली तथा उन चावलों को बड़े चाव से खाने लगे। भोजन के उपरांत श्रीकृष्ण ने सुदामा को अपने ही मुलायम बिस्तर पर सुलाया तथा खुद वहां बैठकर सुदामा के पैर तब तक दबाते रहे जब तक कि उसे नींद नहीं आ गई।
बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे
कुछ दिन वहीं ठहर कर सुदामा ने कृष्ण से विदा होने की आज्ञा ली। श्रीकृष्ण ने अपने परिवारजनों के साथ सुदामा को प्रेममय विदाई दी। इस दौरान सुदामा अपने मित्र को द्वारका आने का सही कारण न बता सका तथा वह बिना अपनी समस्या निवारण के ही वापस अपने घर को लौट गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह अपनी पत्नी तथा बच्चों को क्या जवाब देगा, जो उसका बड़ी ही बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे।
स्वागत के लिए खड़े थे
सुदामा के सामने अपने परिवारीजनों के उदास चेहरे बार-बार आ रहे थे। परंतु इस बीच श्रीकृष्ण अपना कर्तव्य पूरा कर चुके थे। सुदामा की टूटी झोंपड़ी एक सुंदर एवं विशाल महल में बदल गई थी। उसकी पत्नी तथा बच्चे सुंदर वस्त्र तथा आभूषण धारण किए हुए उसके स्वागत के लिए खड़े थे।
गरीब सुदामा की बुरे वक्त में सहायता की
श्रीकृष्ण की कृपा से ही वे धनवान बन गए थे। सुदामा को श्रीकृष्ण से किसी प्रकार की सहायता न ले पाने का मलाल भी नहीं रहा। वास्तव में श्रीकृष्ण सुदामा के एक सच्चे मित्र साबित हुए थे, जिन्होंने गरीब सुदामा की बुरे वक्त में सहायता की।