हाइलाइट्स
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जिसके विशेषज्ञ नहीं उसके बना दिए सर्टिफिकेट
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लोक संचालनालय भेजी जांच रिपोर्ट
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पहले भी 205 शिक्षकों को किया जा चुका है बर्खास्त
Bhind MP News: मध्यप्रदेश में फर्जीवाड़े के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। ताजा मामला भिंड जिले से आया है, जहां दिव्यांग कोटे से शिक्षकों की भर्ती के मामले में डॉक्टरों ने गजब फर्जीवाड़ा किया है।
आपको बता दें कि आंखों के डॉक्टर ने पैर, हड्डी के डॉक्टर ने कान और ENT के डॉक्टर ने आंखों के दिव्यांग फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट बना दिए। इन्हीं फर्जी सर्टिफिकेट के आधार पर 2 साल पहले भिंड के 157 लोगों ने टीचरों की नौकरी हासिल कर ली थी।
दिव्यांगता की खुली पोल: फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट देकर 157 ने ली थी शिक्षक की नौकरी, अब सभी होंगे बर्खास्तhttps://t.co/EMaVHgxu6O#bhind #fakemedicalcertificate #teachers #dismissed #certificates #disability #hindinews pic.twitter.com/HmwvRRRZhG
— Bansal News (@BansalNewsMPCG) June 24, 2024
जिसके विशेषज्ञ नहीं उसके बना दिए सर्टिफिकेट
मामले की जांच 3 सदस्यीय कमेटी ने की तो इन सभी शिक्षकों के मेडिकल सर्टिफिकेट फर्जी पाए गए। इनमें दो गड़बड़ियां सामने निकलकर आईं।
पहली- डॉक्टर ने उस बीमारी का सर्टिफिकेट बनाया, जिसका वो विशेषज्ञ ही नहीं है।
दूसरी- सर्टिफिकेट मेडिकल बोर्ड के बजाए एकल डॉक्टर से जारी किए गए।
लोक संचालनालय भेजी जांच रिपोर्ट
अगर नियम के मुताबिक देखा जाए तो किसी भी भर्ती के सरकारी डॉक्टरों का मेडिकल बोर्ड सर्टिफिकेट ही जारी करता है।
बता दें कि साल 2022 में इन शिक्षकों को भर्ती किया गया था। इन शिक्षकों की बर्खास्तगी के लिए विभाग ने जांच रिपोर्ट लोक संचालनालय भेजी है।
डेढ़ साल पहले पकड़ में आ गया था मामला, दबा रखा
मामले में सबसे बड़ी बात तो ये है कि ये मामला डेढ़ साल पहले ही पकड़ में आ गया था, लेकिेन इन शिक्षकों को बचाने के लिए जांच को दबाए रखा।
जबकि ऐसेा ही मामला पहले भी आया था, जिसमें मुरैना, ग्वालियर, छतरपुर और टीकमगढ़ समते कई जिलों में 205 शिक्षकों को बर्खास्त किया जा चुका है।
मामले में जिला कलेक्टर ने दिया ये जवाब
वहीं इस ममाले में जिला कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव से जवाब मांगा तो कलेक्टर बोले कि विधानसभा चुनाव के टाइम मेरी पोस्टिंग हुई थी।
जब मुझे इस मामले की जानकारी मिली तो मैंने तत्काल जांच कमेटी बनाकर जांच करवाई। कमेटी ने जांच रिपोर्ट भेज दी है।
अब आगे का फैसला शिक्षण संचालनालय के हाथ में है। मुझसे पहले इसकी जांच क्यों नहीं कराई, इस बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता।
जांच रिपोर्ट देख हैरान रह जाएंगे आप
जांच रिपोर्ट जब सामने आई तो देखा गया कि जिन लोगों को पात्रता नहीं है, उन्हें भी मेडिकल सर्टिफिकेट दे दिया गया।
– डॉ. आरसी श्रीवास्तव: ये डॉक्टर साहब आंख, कान, नाक और गले के विशेषज्ञ हैं।
इन्होंने हड्डी रोग के तीन, नेत्र रोग का एक, मेंटल हेल्थ के दो और मल्टी डिस्ट्रॉफी का एक फर्जी सर्टिफिकेट बनाया। जिनका शिक्षकों की नौकरी में इस्तेमाल हुआ है।
– डॉ. जेपीएस कुशवाह: ये डॉक्टर हड्डी रोग विशेषज्ञ हैं। इन्होंने पूजा सिंह और कमलेश कुमार पुत्र रघुवीर का मेंटल हेल्थ का दिव्यांगता प्रमाण पत्र बनाया। जिसके माध्यम से दोनों को नौकरी मिल गई।
– डॉ. यूपीएस कुशवाह: ये डॉक्टर हड्डी रोग विशेषज्ञ हैं। इन्होंने 2014 में अमित सिंह तोमर का मल्टी डिस्ट्रॉफी और संजय कुमार का मेंटल हेल्थ दिव्यांगता का प्रमाण पत्र बनाया था। जिसके जरिए दोनों शिक्षक बने।
– डॉ. आरके अग्रवाल: ये डॉक्टर हड्डी रोग विशेषज्ञ हैं। इन्होंने मेंटल हेल्थ के तीन, लर्निंग डिसेबिलिटी के दो, विजुअल हेंडीकेप्ड का एक और हियरिंग हेंडीकेप्ड के दो सर्टिफिकेट बनाए थे।
– डॉ. रवींद्र चौधरी और डॉ. आरएन राजौरिया: ये डॉक्टर ईएनटी विशेषज्ञ हैं। इन्होंने अपनी विशेषज्ञता के बजाए दूसरे मर्ज की विकलांगता के सर्टिफिकेट बनाए थे।
– डॉ. आरके गांधी: ये नेत्र रोग विशेषज्ञ हैं। इन्होंने 10 में से 1 अस्थि रोग का सर्टिफिकेट बनाया।
– डॉ जेएस यादव: ये अस्थि रोग विशेषज्ञ हैं। इन्होंने एक लर्निंग डिसेबिलिटी की दिव्यांगता प्रमाण पत्र बनाया।
आपको बता दें कि जांच रिपोर्ट में इनके फर्जीवाड़े का विस्तृत विवरण है। ये सभी डॉक्टर भिंड जिला अस्पताल में पदस्थ हैं।
मामले में डॉक्टरों ने दिए ये तर्क
मामले में जिन डॉक्टरों ने फर्जीवाड़ा किया है, उनसे पूछा गया तो उन्होंने कहा- हम दूसरी विधा में दिव्यंगता सर्टिफिकेट क्यों बनाएंगे।
हां कई बार ऐसा होता है कि पैनल में सीनियर डॉक्टर होने के नाते हमने साइन कर दिए होंगे। अब तो UDID बन गई। इसलिए पुराने सर्टिफिकेट तो अमान्य ही माने जाएंगे।
पहले सिंगल डॉक्टर दिव्यांग सर्टिफिकेट बनाते थे। कोई भी डॉक्टर ऐसा दिव्यांग सर्टीफिकेट क्यों बनाएगा, जिसका वो विशेषज्ञ ही नहीं है। क्लर्क ने गलत नाम दर्ज कर दिया होगा।
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