टोक्यो। पैरालम्पिक खेलों के फाइनल में पहुंचने वाली भारत की पहली टेबल टेनिस खिलाड़ी भाविनाबेन पटेल Bhavina Patel ने शनिवार को कहा कि वह खुद को दिव्यांग नहीं मानती और टोक्यो खेलों में उनके प्रदर्शन ने साबित कर दिया कि कुछ भी असंभव नहीं है।
बारह महीने की उम्र में पोलियो की शिकार हुई पटेल ने कहा, ‘‘मैं खुद को दिव्यांग नहीं मानती। मुझे हमेशा से यकीन था कि मैं कुछ भी कर सकती हूं और मैने साबित कर दिया कि हम किसी से कम नहीं है और Bhavina Patel पैरा टेबल टेनिस भी दूसरे खेलों से पीछे नहीं है।’’
उन्होंने Bhavina Patel कहा, ‘‘ मैने चीन के खिलाफ खेला है और यह हमेशा कहा जाता है कि चीन को हराना आसान नहीं होता है। मैने आज साबित कर दिया कि कुछ भी असंभव नहीं है। हम कुछ भी कर सकते हैं।’’ पटेल ने कहा कि खेल के मानसिक पहलू पर फोकस करने से उन्हें मैच के दौरान मदद मिली।
उन्होंने कहा, ‘‘मेरा दिन सुबह चार बजे Bhavina Patel शुरू हो जाता है और मैं ध्यान तथा योग के जरिये मानसिक एकाग्रता लाने का प्रयास करती हूं। मैचों के दौरान कई बार हम जल्दबाजी में गलतियां करते हैं और अंक गंवा देते हैं लेकिन मैने अपने विचारों पर नियंत्रण रखा।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मैं अपने कोचों को धन्यवाद देना चाहता हूं जिन्होंने मुझे तकनीक सिखाई। उनकी वजह से ही मैं यहां तक पहुंच सकी। भारतीय खेल प्राधिकरण, टॉप्स, पीसीआई, सरकार, Bhavina Patel ओजीक्यू, नेत्रहीन जन संघ, मेरे परिवार को भी मै धन्यवाद देती हूं।’’