नई दिल्ली। भक्ति धाम मनगढ़ मंदिर, इस मंदिर को वास्तुकला का अनोखा उदाहरण माना जाता है। प्रतापगढ़ के सबसे लोकप्रिय धार्मिक स्थलों में से एक इस आधुनिक मंदिर को जगतगुरू कृपालु महाराज ने बनवाया था। कुंडा तहसील मुख्यालय से महज 6 किलोमीटर की दूरी पर मनगढ़ में स्थित भगवान राधा-कृष्ण के इस मंदिर में रोजाना हजारों श्रद्धालु दर्शन को आते हैं।
मंदिर की मनमोहक बनावट और इसकी सुंदरता दूर से ही देखते बनती है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन तो यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। राधे-राधे की गूंज से पूरा वातावरण भक्तिमय बना रहता है। इस दिन पूरे मंदिर को झालरों से सजाया जाता है। देश के अलग-अलग हिस्सों से श्रद्धालु यहां मन की शांती के लिए आते हैं।
इस मंदिर का निर्माण कृपालु महाराज ने करवाया था। जिनका जन्म प्रतापगढ़ जिले की कुंड़ा तहसील के मनगढ़ गांव में अक्टूबर, 1922 में हुआ था। उन्होंने अपने गांव में ही भक्ति धाम मंदिर को बनवाया था। कृपालु महाराज वर्तमान काल में मूल जगदगुरू थे। इनसे पहले भारत के लगभग तीन हजार साल के इतिहास में चार मौलिक जगदगुरू हुए। लेकिन कृपालु महाराज के जगदगुरू बनने की एक अनूठी विशेषता थी। क्यों कि उन्हें ‘जगदगुरूत्तम’ यानी समस्त जगदगुरूओं में उत्तम की उपाधि दी गई थी। उन्हें ये उपाधि महज 35 साल की उम्र में साल 1957 में दी गई थी।
वे पहले जगदगुरू थे, जिनका कोई गुरू नहीं था और न ही उन्होंने किसी को अपना शिष्य बनाया। हालांकि अभी भी उनके लाखों अनुयायी हैं। कृपालु महाराज के नाम कई रिकॉर्ड हैं उसमें से एक रिकॉर्ड है विदेशों में जाकर धर्म प्रचार करना। वे पहले ऐसे गुरू थे जन्होंने समुद्र पार कर धर्म प्रचार किया था। 15 नवंबर 2013 को उनका निधन हो गया। जिसके बाद मनगढ़ धाम की सारी व्यवस्थाओं को उनकी तीनों बेटियां देखती हैं।
वहीं मंदिर की खासियत की बात करें तो यहां भ्रमण के लिए मुख्य रूप से तीन चीजें हैं। पहला है, भक्ति मंदिर, जिसमें कृपालु महराज की प्रतिमा के साथ-साथ उनके माता-पिता एवं राधा-कृष्ण की अनेक मुद्राओं में कई सारी प्रतिमाएं हैं।
दूसरा है- भक्ति भवन, जो साधना का मुख्य केंद्र है। इसमें लगभग 50,000 श्रद्धालु एक साथ बैठकर प्रवचन का आनंद ले सकते हैं। भक्ति भवन की खासियत ये है कि पूरे हॉल के बीच में एक भी पिलर नहीं दिया गया है। आप यहां किसी भी हिस्से में बैठें आपको हर तरफ से एक जैसी ही आवाज सुनाई देती है।
तीसरा है एक वाटिका। जिसे प्राकृतिक रूप से बहुत ही सुंदर बनाया गया है। इसमें गाय, बछड़े, हिरण, मोर आदि की पत्थरों से बनी हुई कई प्रतिमायें हैं। इन्हें पास से भी देखने पर लगता है जैसे कि ये वास्तविक हो। यदि आपने मनगढ़ का भ्रमण नहीं किया है तो कम से कम एक बार जरूर होकर आइये। मनगढ़ आप दो रास्तों से जा सकते हैं एक उप्र की राजधानी लखनऊ से और दूसरा प्रयागराज से। लखनऊ से इस मंदिर की दूरी 150 किलोमीटर है, जबकि प्रयागराज से महज 60 किलोमीटर।
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