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Ganesh Pratham Pujniya Kyon: अगर ये नहीं किया होता तो भगवान गणेश नहीं होते प्रथम पूजनीय, जानें पूरी कथा

हिन्दू धर्म में किसी भी काम का शुभाराम्भ करने से पहले श्री गणेशाय नमः लिखा जाता है। श्री गणेश को सभी देवी-देवताओं में प्रथम पूज्य माना गया है।

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Ganesh Pratham Pujniya Kyon: अगर ये नहीं किया होता तो भगवान गणेश नहीं होते प्रथम पूजनीय, जानें पूरी कथा

Ganesh Pratham Pujniya Kyon: सनातन धर्म में किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले भगवान श्री गणेश कि पूजा की जाती है। हिन्दू धर्म में किसी भी काम का शुभाराम्भ करने से पहले श्री गणेशाय नमः लिखा जाता है। इसके अलावा भगवान श्री गणेश को सभी देवी-देवताओं में प्रथम पूज्य माना गया है।

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ग्रंथों और पुराणों में इसके पीछे भिन्न-भिन्न कारण बताये गए हैं। हालांकि, सभी में उन्हें सबसे पहले पूजा जाने वाला देवता ही कहा गया है। इसकी जानकारी ज्यादातर लोगों को है, लेकिन ये बहुत कम लोग जानते होंगे कि त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश से भी पहले भगवान् गणेश की ही पूजा क्यों होती है? आइए जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कथा के बारे में...

गणपति की पूजा से मिलती है सद्बुद्धि

दरअसल, भगवान् श्री गणेश बुद्धि के देवता माने जाते है और इनकी पूजा करने से सभी प्रकार की विघ्न और बाधाएं दूर होती है। ऐसा माना जाता है कि किसी भी मांगलिक अनुष्ठान या शुभ काम में गणपति की पूजा से सद्बुद्धि मिलती है, जिससे काम में सफलता प्राप्त होती है।

बता दें कि पौराणिक कथा के अनुसार एक बार सभी देवताओं में विवाद उत्पन्न हो गया कि धरती पर सबसे पहले पूजा किसकी होनी चाहिए। सभी देवता अपने आपको एक दुसरे से सर्वश्रेष्ठ बताने लगे। इसको देखते हुए नारद जी ने सभी को भगवान् शंकर के पास जाकर उनसे इस इस समस्या का हल पूछने को कहा।

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भगवान शिव के पास पहुंचे सभी देवता

सभी देवता इस समस्या को लेकर भगवान शिव के पास पहुंचे और उनको पूरी स्थिति के बारे में बताया। भगवान शिव ने देवताओं के इस विवाद को देखते हुए इसे सुलझाने के लिए एक योजना बनाई। उन्होंने इसके लिए एक प्रतियोगिता आयोजित की।

प्रतियोगिता के अनुसार सभी देवगणों को अपने-अपने वाहन पर बैठकर पूरे ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाने के लिए कहा गया। जो भी देवता ब्रह्माण्ड कि परिक्रमा करके सबसे पहले वापस आएगा, उसे ही धरती पर प्रथम पूजनीय देवता माना जाएगा।

गणेश जी ने किया ये काम

भगवान शिव की बात सुनकर सभी देवता अपने-अपने वाहन लेकर ब्रह्माण्ड की परिक्रमा के लिए निकल गए। इस प्रतियोगिता में गणेश जी भी शामिल थे और उनकी सवारी चूहा है। चूहे की गति बहुत धीमी होती है और ऐसे में गणेश जी सोच में पड़ गए।

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इसके बाद उन्होंने ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाने की बजाय अपने माता-पिता भगवान शिव और माता पार्वती की सात बार परिक्रमा की और हाथ जोड़कर उनके सामने खड़े हो गए।

माता-पिता को दिया सर्वोच्च स्थान

जब सभी देवता ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाकर वापस लौटे तब वहां गणेश जी पहले से मौजूद थे और भगवान शिव ने गणेश जी को विजयी घोषित कर दिया। जिसे सुनकर सभी देवता अचंभित हो गए कि चूहे की सवारी से पूरे ब्रह्माण्ड का चक्कर इतनी जल्दी कैसे लगाया जा सकता है।

तब भगवान शिव ने बताया कि माता-पिता को सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में सर्वोच्च स्थान दिया गया है और उन्हें धरती पर देवताओं के समान माना जाता है। गणेश जी ने ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाने की बजाय माता-पिता की परिक्रमा की है। भगवान शिव की बात सुनकर सभी देवता उनके निर्णय से सहमत हो गए और तभी से गणेश जी को प्रथम पूजनीय देवता माना गया है।

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