भोपाल। देश के लगभग सभी मंदिरों से कोई न कोई किंवदंतियां जुड़ी होती है या पौराणिक मान्यताएं होती है। इसी कड़ी में आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका निर्माण एक श्राप के चलते अधूरा रह गया। जिसे आज तक कोई पूरा नहीं कर सका। इतना ही नहीं कहा तो यहां तक जाता है कि इसे बनाने वाले कारीगर भी पत्थर की मूर्तियों में बदल गए थे।
प्राचीन सिद्धेश्वरनाथ महादेव मंदिर
दरअसल, जिस मंदिर के बारे में हम बात कर रहे हैं वो मंदिर है बैतूल जिले के भैंसदेगी में पूर्णा नदी के किनारे स्थित सिद्धेश्वरनाथ महादेव मंदिर। इस मंदिर के बारे में कम ही लोग जानते हैं। मंदिर के बारे में कहा जाता है कि 11वीं और 12वीं सदी के मध्य भैंसदेही रघुवंशी राजा गय की राजधानी महिष्मति हुआ करती थी। कहा जाता है कि राजा गय भगवान शिव के भक्त थे। उन्होंने उस वक्त के प्रसिद्ध वास्तुशिल्पी भाई नागर-भोगर को महिष्मति में शिव मंदिर बनाने का आदेश दिया।
दोनों भाई इस अवस्था में करते थे मंदिर का निर्माण
नागर भोगर के बारे में बताया जाता है कि दोनों भाई नग्न अवस्था में मंदिर निर्माण कार्य करते थे। साथ ही दोनों एक ही रात में बड़े से बड़े मंदिर का निर्माण कर लेते थे। लेकिन दोनों भाइयों को एक श्राप मिला हुआ था कि अगर किसी ने इन्हें नग्न अवस्था में निर्माण करते हुए देख लिया तो वो इंसान से पत्थर के बन जाएंगे।
बहन ने देख लिया था
नागर-भोगर जब महिष्मति के इस शिव मंदिर का निर्माण कर रहे थे, तब एक रात उनकी बहन खाना लेकर अचानक से निर्माण कक्ष में आ गई और उसने भाईयों को नग्न अवस्था में देख लिया। फिर क्या था श्राप के अनुसार दोनों भाई पत्थर के बन गए और मंदिर का निर्माण कार्य अधूरा रह गया। इस घटना के बाद मंदिर का गुंबद फिर कभी नहीं बन सका।
मंदिर का एक-एक पत्थर स्थापत्य कला का नमूना है
बतादें कि इस प्राचीन शिव मंदिर को पौराणिक अभिलेखों में उप ज्योतिर्लिंग माना गया है। माना जाता है कि इस मंदिर का एक-एक पत्थर स्थापत्य कला का नमूना है। मंदिर में सबसे खास है गर्भगृह के सामने स्थापित नंदी की प्रतिमा। इस प्रतिमा को अगर किसी पत्थर से ठोंका जाता है तो उसमें से खनक या घंटी की तरह आवाज आती है। स्थानीय लोग मानते हैं कि इस मंदिर को इस तरह से बनाया गया है कि सूर्य की पहली किरण और पूर्णिमा के चांद की पहली किरण सीधे मंदिर के गर्भगृह को छूती है।