Batenge To Katenge Controversy: देशभर में बटेंगे तो कटेंगे नारे पर कंट्रोवर्सी जारी है। जहां इस नारे का कहीं समर्थन किया जा रहा है तो कहीं इस नारे का विरोध भी हो रहा है। इन सभी प्रतिक्रियाओं के बीच जैन धर्मगुरु मुनिश्री सुधाकर ने इस नारे पर अपनी आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि यह उग्रवाद पैदा करने वाला नारा है। यह नारा सांप्रदायिक आग लगाने वाला है। नारा ऐसा हो हो जो सकारात्मक प्रेरणा दें। लोगों को एक दूसरे से जोड़ने का काम करें।
जैन धर्मगुरु मुनिश्री सुधाकर ने जानकारी दी कि नारा ऐसा होना हो जो कहे कि हम जुड़कर (Batenge To Katenge Controversy) रहेंगे, हम एक दूसरे को जोड़ते रहेंगे, हम साथ रहेंगे। ऐसे नारों से सकारात्मक ऊर्जा पैदा होगी और सोचा-विचार भी अच्छे होंगे। हमको सबके विकास की चिंता करना चाहिए। हमें हमारे संस्कार और संस्कृति पर ध्यान देना होगा।
जबलपुर की ओर बढ़ रहे मुनिश्री
आगे उन्होंने कहा कि इस तरह के स्लोगन (Batenge To Katenge Controversy) लाना चाहिए जो समाज के लिए प्रेरणादायी हो। उन स्लोगन को सुनकर सद्भावना का भाव आए और खुशी का संचार हो। आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनिश्री सुधाकर एवं सहवर्ती मुनिश्री नरेश कुमार रायपुर में सतुर्मास सम्पन्न कर चुके हैं। यहां से वे अब पद यात्रा करते हुए जबलपुर की ओर आगे बढ़ रहे हैं। कवर्धा में मुनिश्री का स्वागत किया गया।
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जैन धर्म के झंडे में पांच रंग क्यों?
धर्मगुरु ने बताया कि जैन धर्म के झंडे, जिसमें पांच रंग हैं। उन्होंने कहा कि जैन धर्म (Batenge To Katenge Controversy) में नमस्कार महामंत्र है, यह मूल महामंत्र जहै। इस महामंत्र में 5 पद आते निहीत हैं। इसमें अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु। इन पांच रंगों में उन पांच महान आत्माओं का मिश्रण अनुभति छिपी हुई है।
ध्वज किसी भी संस्था के लिए किसी भी संघ के लिए अपने आपमें सिरमौर का काम करता है। ध्वज भी ये प्रेरणा देता है कि हम पांच आत्माओं के गुणों का निरंतर स्मरण करते रहना चाहिए।
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