जगदलपुर। छत्तीसगढ़ के बस्तर में मनाए जाने वाले विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व की एक और महत्वपूर्ण मावली परघाव की रस्म नवरात्रि के नवमी के दिन सोमवार को देर रात अदा की गई।
मावली माता और दंतेश्वरी देवी के मिलन की इस रस्म को जगदलपुर दंतेश्वरी मंदिर परिसर के कुटरूबाढ़ा में सम्पन्न किया गया। इस दौरान बड़ी संख्या में भक्तों का सैलाब उमड़ा।
माता मावली की डोली पहुंची जगदलपुर
रियासत कालीन परंपरानुसार मां दंतेश्वरी शक्तिपीठ दंतेवाड़ा से महाष्टमी तिथि पर पूजा अनुष्ठान के बाद 22 अक्टूबर को मां दंतेश्वरी के छत्र एवं माता मावली की डोली सुसज्जित वाहन से रवाना हुई।
जिसका देतेवाड़ा से जगदलपुर तक जगह-जगह भव्य स्वागत श्रृद्धालुओं ने किया।
विधि-विधान के साथ छत्र को स्थापित किया
माता मावली की डोली एवं दंतेश्वरी के छत्र को आज 23 अक्टूबर की सुबह 03 बजे निर्धारित जिया डेरा में विधि-विधान के साथ स्थापित किया है, जहां बड़ी संख्या में श्रृद्धालु दर्शनार्थ पंहुच रहे हैं।
31 दिसंबर तक स्थापित रहेगा दंतेश्वरी का छत्र
आज देर शाम मावली परघाव पूजा विधान में माता मावली की डोली एवं दंतेश्वरी का छत्र शामिल होगी और स्वागत सत्कार के साथ मां दंतेश्वरी मंदिर में स्थापित किया जायेगा।
माता की विदाई पूजा विधान 31 दिसंबर तक मां दंतेश्वरी मंदिर में माता मावली की डोली एवं दंतेश्वरी का छत्र दशनार्थ स्थापित रहेंगे।
राजपरिवार के लोग भी होते है शामिल
परंपरा अनुसार इस रस्म में दंतेवाड़ा से मावली देवी की छत्र और डोली को जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर लाया जाता है।
जिसका स्वागत बस्तर के राजपरिवार और बस्तरवासियों के द्वारा किया जाता है।
बता दें कि धार्मिक सहिष्णुता और सभी धर्मों के प्रति समादर का भाव रखने वाली सदियों पुरानी रस्म का नाम मावली परघाव है।
मावली देवी हैं के स्वागत को परघाव कहते हैं। सोमवार की रात जगदलपुर शहर में देवी के स्वागत में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ा था।
गीदम रोड स्थित जिया डेरा से नवमीं की शाम मांई की डोली निकलती है और सिंहड्योढ़ी तक आती है।
जगह-जगह लोग इसका स्वागत करते हैं। इस दौरान जमकर आतिशबाजी हुई और उत्साह का माहौल दिखा।
हजारों की संख्या में हर साल होते हैं शामिल
मंगलवार देर रात दंतेवाड़ा से पहुंची मावली माता की डोली और छत्र का बस्तर के राजकुमार ने भारी आतिशबाजी और फूलों से भव्य स्वागत किया। दंतेश्वरी मंदिर के परिसर में मनाए जाने वाली इस रस्म को देखने हजारों की संख्या में हर साल लोग पहुंचते हैं।
600 सालों से मनाई जा रही यह रस्म
मान्यता के अनुसार 600 सालों से इस रस्म को धूमधाम से मनाया जाता है. बस्तर के महाराजा रुद्र प्रताप सिंह डोली का भव्य स्वागत करते थे, यह परंपरा आज भी बस्तर में बखूबी निभाई जाती है और अब बस्तर के राजकुमार कमलचंद भंजदेव इस रस्म की अदायगी करते हैं।
ऐसे शुरू हुई मालवी परघाव रस्म
मावली देवी का बस्तर दशहरा पर्व में यथोचित सम्मान और स्वागत करने के लिए मावली परघाव रस्म शुरू की गई।
बस्तर के जानकार हेमंत कश्यप के मुताबिक नवरात्रि के नवमी के दिन दंतेवाड़ा से आई मावली देवी की डोली का स्वागत करने बस्तर राजपरिवार सदस्य, राजगुरु और पुजारी के अलावा स्थानीय जनप्रतिनिधि राजमहल से मंदिर के परिसर कुटरुबाड़ा तक आते हैं।
उनकी अगवानी और पूजा-अर्चना के बाद देवी की डोली को बस्तर के राजकुमार कंधों पर उठाकर राजमहल स्थित देवी दंतेश्वरी के मंदिर में लाकर रखते हैं. जिसके बाद इसे दशहरा पर्व समापन होने तक मंदिर के अंदर रखा जाता है।
बुधवार को होगी भीतर रेनी पूजा
बस्तर दशहरा की बुधवार को भीतर रेनी पूजा होगी। इस रस्म में बुधवार शाम को शहर परिक्रमा के लिए निकलेगा विजय रथ। बस्तर दशहरा में इस तरह की 75 रस्में अदा की जाती हैं। जिसमें बेल की विदाई, निशा यात्रा आदि शामिल हैं। दुमंजिला कष्ठ रथ की नगर की परिक्रमा करता है जो कि पर्व का आकर्षण केंद्र होता है।
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