Bastar Dussehra 2023: बस्तर का दशहरा पर्व देश भर में प्रशिद्ध है। 75 दिनों तक चलने वाले इस पर्व की शुरूआत हरेली आमवस्या से हो जाती है। जिसे सभी वर्ग,समुदाय और जाति-जनजातियों के लोग धूमधाम के साथ मनाते हैं।
बस्तर का दशहरा में भगवान राम-रावण के युद्ध की नहीं बल्कि मां दंतेश्वरी माता के प्रति अपार श्रद्धा होती है। इस पर्व का शुभारंभ पाटजात्रा रस्म के साथ होता है।
600 साल पहले शुरु हुआ बस्तर दशहरा
बस्तर दशहरा की शुरूआत चालुक्य वंश के चौथे राजा पुरूषोत्तम देव आज से लगभग 600 साल पहले यानी 1408 ई. में हुई थी।
कहा जाता है कि पुरूषोत्तम देव एक बार जगन्नाथ पुरी की यात्रा पर गए थे। तब जगन्नाथ स्वामी ने पुरी के राजा को स्वप्न कहा था कि बस्तर नरेश की अगवानी और उनका भव्य सम्मान करें, वे भक्ति, मित्रता के भाव पुरी आ रहे हैं।
बस्तर नरेश ने अर्पित किए बेशकीमती हीरे
इसके बाद पुरी के राजा ने बस्तर के राजा का स्वागत किया। वहीं बस्तर नरेश ने पुरी के मंदिरों में एक लाख स्वर्ण मुद्राएं, रत्न आभूषण और बेशकीमती हीरे-जवाहरात जगन्नाथ स्वामी को अर्पित किए थे।
इससे प्रसन्न होकर जगन्नाथ स्वामी ने सोलह चक्कों का रथ राजा को प्रदान करने की बात पुजारी से कही थी। जिसपर चड़कर बस्तर नरेश और उनके वंशज दशहरा पर्व मनाएंगे। साथ ही राजा पुरूषोत्तमदेव को ‘लहुरी रथपति’ की उपाधि से सम्मानित किया।
मैत्री संधि के बाद वापन लौटे पुरूषोत्तम
पुरी के राजा से मैत्री संधि होने के बाद राजा पुरूषोत्तमदेव बस्तर वापस लौटे और स्वामी जगन्नाथ, बलभद्र सुभद्रा की काष्ठ प्रतिमा समेत पूजा अर्चना के लिए कुछ ब्राह्मण परिवारों को लेकर आए थे।
बस्तर नरेश ने सोलह चक्कों के रथ का विभाजन कर इसके चार चक्कों को भगवान जगन्नाथ को समर्पित कर दिया। वहीं शेष 12 पहियों का एक विशाल रथ मां दन्तेश्वरी को अर्पित कर दिया था।
1610 में बनाया गया था आठ पहियों का रथ
वहीं बस्तर के मधोता ग्राम में पहली बार 1468 में दशहरा रथ यात्रा निकाली गई थी। कई साल बीत जाने के बाद जब 12 चक्कों के रथ संचालन में असुविधा हुई तो आठवें राजा वीरसिंह ने 1610 में इसे आठ पहियों का विजय रथ व चार पहियों का फूल रथ बनवाया था, जो आज भी बनाया जाता है।