MP Poliice Thana Mandir Update: एमपी के पुलिस थानों में बने अवैध मंदिरों के मामले में अब हाईकोर्ट में नया मोड़ आने वाला है, क्योंकि बार एसोसिएशन के हस्तक्षेप के बाद इस मामले में बदलाव की संभावना है। बार एसोसिएशन द्वारा प्रस्तुत किए गए तर्कों के आधार पर यह याचिका खारिज होती हुई नजर आ रही है। अब यह तय किया जाएगा कि पुलिस थानों से मंदिर हटाए जाएंगे या यह याचिका खारिज होगी, और यह निर्णय इस पर निर्भर करेगा कि क्या यह याचिका जनहित याचिका के रूप में सुनवाई योग्य है या नहीं।
थाने में बने अवैध मंदिरों के लिए लगी है याचिका
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की मुख्य पीठ जबलपुर में पुलिस थानों में बने मंदिरों के विरोध में दायर याचिका में अब मध्य प्रदेश हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने हस्तक्षेप किया है। बार के अधिवक्ताओं ने इन मंदिरों को आस्था का विषय बताते हुए कहा कि इन मंदिरों पर किसी भी धर्म के लोगों को आपत्ति नहीं है। साथ ही, संगठन 12 दिसंबर को होने वाली अगली सुनवाई में इस पर आगे कोई कार्रवाई रोके जाने के लिए हाईकोर्ट में अपना पक्ष रखेगा।
थानों में मंदिर निर्माण पर लगी रोक
बीते दिनों सरकारी कर्मचारी और अधिवक्ता ओम प्रकाश यादव ने कोर्ट में याचिका दायर कर सभी थाना परिसरों में बन रहे मंदिरों पर रोक लगाने की मांग की थी। इसके बाद, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 5 नवंबर को सभी थाना परिसरों में मंदिरों के निर्माण पर रोक लगा दी थी। अब मध्य प्रदेश हाईकोर्ट बार एसोसिएशन इस मामले में हस्तक्षेप कर 12 दिसंबर को होने वाली सुनवाई में अपना पक्ष प्रस्तुत करेगा।
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बार एसोसिएशन पक्ष में उतरा
हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने इस याचिका को खारिज करने के लिए कोर्ट के समक्ष कई तथ्यों को प्रस्तुत किया है। हस्तक्षेप आवेदन के अनुसार, याचिकाकर्ता ने इसे PIL (जनहित याचिका) के तहत दायर किया है, लेकिन PIL के नियमों के अनुसार जरूरी जानकारी नहीं दी है। इसके अलावा, बार एसोसिएशन ने यह भी आरोप लगाया है कि PIL का उद्देश्य जनहित होता है, लेकिन इस याचिका के जरिए एक बड़े वर्ग का अहित हो सकता है और उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंच सकती है। आवेदन में यह भी आरोप लगाया गया है कि यह याचिका स्पॉन्सर्ड है, और याचिकाकर्ता का उद्देश्य जनहित नहीं बल्कि धार्मिक सौहार्द को बिगाड़ना है।
समाजिक सौहार्द बिगड़ सकता है- बार एसोसिएशन
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने बताया कि अधिवक्ता समाज का आईना होते हैं और समाज की चिंताओं का प्रतिनिधित्व करने के साथ हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम समाज में होने वाले किसी भी अहित के खिलाफ खड़े हों। उपाध्याय ने कहा कि इस याचिका में सुप्रीम कोर्ट के जिस आदेश का संदर्भ लिया गया है, वह इस मामले से संबंधित नहीं है, क्योंकि वह आदेश उन धार्मिक स्थलों के लिए था, जो अतिक्रमण की श्रेणी में आते हैं। जबकि जबलपुर हाईकोर्ट परिसर में बने मंदिर और पुलिस थानों में बने मंदिरों को पुलिस ने खुद स्थापित किया है, न कि अतिक्रमणकारियों ने। बार एसोसिएशन का यह भी कहना है कि यदि मंदिरों को हटाने का कोई आदेश जारी होता है, तो इससे सामाजिक सौहार्द बिगड़ सकता है।
12 दिसंबर को इस मामले में सुनवाई
गुरुवार 12 दिसंबर को इस मामले की सुनवाई जबलपुर हाईकोर्ट में तय की गई है। इस सुनवाई में बार एसोसिएशन अपना पक्ष रखेगा। याचिका का आधार यह था कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही सार्वजनिक स्थलों पर मंदिरों के निर्माण पर रोक लगा चुका है, फिर भी कई पुलिस थानों में मंदिरों का निर्माण हो रहा है। याचिका में उन सभी थानों की तस्वीरें भी शामिल की गई हैं, जहां मंदिरों का निर्माण वर्तमान में हो रहा है। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता सतीश वर्मा, अमित पटेल और ग्रीष्म जैन ने अपना पक्ष रखा था, लेकिन अब बार एसोसिएशन द्वारा जो तथ्य प्रस्तुत किए जा रहे हैं, उनके अनुसार सुप्रीम कोर्ट का आदेश इस मामले में लागू नहीं होता।
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