Bageshwar Dham Exclusive Interview श्री राम दरबार लगाकर भक्तों के दुख दूर करने के लिए पहचाने जाने वाले पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री शुक्रवार को टीकमगढ़ में रहे। यहां दिव्य दरबार में श्री राम नाम और राम कथा का सार उन्होंने बताया। मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले की जेल में चल रही इस रामकथा में पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री से बंसल न्यूज के न्यूज़ हेड शरद द्विवेदी ने खास बातचीत की। यहां पढ़िए इस एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में क्या कहा पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने।
न्यूज़ हेड शरद द्विवेदी : सभी लोगों को लगता है संत पीड़ा से मुक्त होता है?
पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री : साधु परंपरा और साधु होना, यह होता ही दूसरों के लिए है। साधु का कोई निज परिवार नहीं होता। साधु की तो दुनिया ही निज परिवार होती है। साधु की कोई निज कामना नहीं होती, साधु से जो लोग जुड़े हैं उनकी अपेक्षाओं की कामना ही साधु की कामना होती है। रही बात कष्ट या पीड़ा की। तो हमें लगता है, साधु जितना दुख दूसरों के लिए झेलता है उतना साधु के लिए कोई नहीं झेलता। इसीलिए साधु पूज्यनीय है।
न्यूज़ हेड शरद द्विवेदी : आपके लिए कहा जाता है कि आप फलां पार्टी से जुड़ रहे हैं, फलां पार्टी की विचारधारा से संबंधित हो रहे हैं। दो-चार दिन पहले ऐसी खबर निकल पड़ी कि आप एक पार्टी की यात्रा से जुड़ रहे हैं। ये सब चीजें जब आप देखते हैं तो क्या भाव आता है आपके मन में?
पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री : कुछ भी नहीं ये कई बार वक्त पर्यंत लोग हमें याद आ जाते हैं। कि अपने बागेश्वर बालाजी के नाम से, सनातन के नाम से अपनी महिमा का मंडन करवा रहे हैं। परंतु, बागेश्वर पीठ और हमारी परंपरा सदैव से एक ही पार्टी की सपोर्टर है। वो है सनातन। और सनातन के आलावा हमारी कोई दूसरी पार्टी नहीं और हमने तो ये मंच से कहा है और आपकी मीडिया से भी कह दें कि कोई भी पार्टी के लोग हमसे मिलने आवें पर वोट की विचारधारा या उनकी विचारधारा में हम सम्मिलित हों इस विचार से कभी मत आना। आशीर्वाद लेने चाहे जब चले आना।
न्यूज़ हेड शरद द्विवेदी : आप किस तरह से देखते हैं, सनातन की यह धारा… क्योंकि पहले आपके वक्तव्य को लेकर बहुत सारी बातें कहीं गईं, सनातन आपकी बात को शायद ठीक से समझा नहीं गया।
पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री : यूं कह सकते हैं कि ठीक से समझा नहीं, हमने कभी भी एक पंत के लिए बात नहीं की। हमारी हमेशा विचारधारा स्पष्ट रही है। सनातन का मतलब है, वसुधैव कुटुंबकम… पूरे विश्व की मंगल। सनातन का मतलब, जहां के मंदिरों में आरती के बाद ही ज्य जयकार होती है- विश्व का कल्याण हो, विश्व में शांति हो, विश्व का मंगल हो और विश्व की उन्नती हो। सनातन का मतलब ही है, जो समूचे विश्व के मंगल की कामना करता है। सनातन का मतलब ही है जो सब का जनक है। सनातन का है, जो पुरातन है। सनातन का मतलब है जो प्राचीन है। सनातन का मतलब है, जिससे ही अन्य मजहब और पंत प्रगट हुए हैं, तो हमारा सनातन कभी भी खंड विखंड सिखाता ही नहीं। हमने भारत को सनातन या हिंदू राष्ट्र की बात क्यों कही? सिर्फ इसीलिए ही कही है कि एक यही फार्मूला और उपाय है, जिससे भारत जो खंड-खंड हो रहा है, जो खंड-खंड होने की कगार पर पुन: जा रहा है, इससे बचा जा सकता है। इस फार्मूले से।
न्यूज़ हेड शरद द्विवेदी : संतों में भी प्रतिस्पर्धा होती है?
पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री : ऐसा तो नहीं है। अगर प्रतिस्पर्धा है तो संत नहीं है। प्रतिस्पर्धा तो लौकिक व्यवहार में होती है और साधु का लक्ष्य तो अलौकिक होता है और अलौकिक में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है। इससे इसमें वर्तमान में कोई काम्पटीशन नहीं है।
न्यूज़ हेड शरद द्विवेदी : हम सब दरअसल बंदी ही हैं, ऐसा प्रतीत होता है। कोई चिंता का बंदी है। कोई बीमारी का बंदी है। कोई धर्म के प्रति आसक्ति का बंदी है, तो कोई काम, क्रोध, लोभ, मद का बंदी है। इससे मुक्त कैसे हुआ जाए?
पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री : हम-आप, सब यहां पूर्णत: कैद में हैं। आज हम-आप इस टीकमगढ़ के कारगृह में बैठे हैं। और सच ये है कि हम लोग पहले से ही कारागृह में हैं संसार के। उसमें भी हम लोग जी रहे हैं और बैठे हैं। इस बंधन से मुक्त होने का सदगुरु ही एक उपाए हैं। और सदगुरु वैद्य वचन विश्वासा। सदगुरु के वचन, सदगुरु मतलब वेद, रामचरित मानस, गीता, ये हमारे सदगुरु हैं। इनको जब आप पढ़ेंगे, तब इन्होंने एक ही चीज सिखाई है। संसार में रहो बाहर से, परमात्मा में जीयो अंदर से। ये एक ऐसा उपय है, एक ऐसा फार्मूला है, जिससे आप जीते जी मुक्त हो सकते हैं। हम तो कई बार बोलते भी हैं अपनी कथा के माध्यम से कि मौज मत खोजो, मोक्ष खोजो। मौज को खोजोगे, मजा को खोजोगे तो सजा पाओगे। मोक्ष को खोजोगे तो जीते जी मुक्त हो जाओगे। और मरने के बाद मोक्ष या मुक्ति की हम कभी कल्पना मानते ही नहीं। और मरने के बाद अगर कोई कल्पना करता भी है, तो झूठी है मरने के बाद किसने मोक्ष देखा है। जीते जी मुक्त होकर दिखाओ तब बहादुर मानें।
न्यूज़ हेड शरद द्विवेदी : कब समय मिलता है पढ़ने का? पूरे समय लोगों का हुजूम, मुझे पता लगा आज सुबह आप 9 बजे सोए हैं। 2 घंटे की नींद, 3 घंटे की नींद, उसके बाद फिर भीड़ का हुजूम और कभी न नहीं, तो कब पढ़ने का समय मिलता है और क्या पढ़ते हैं, कुछ दार्शनिकों को भी पढ़ते हैं आप?
पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री : हमने दार्शनिकों को बहुत माना है और दार्शनिकता पर हमारा भरोसा बहुत ज्यादा है, लेकिन हमारी पढ़ाई आने वाले लोग ही हैं। जो आते हैं हम उनसे ही कुछ पढ़ते हैं। वो जब अपनी व्यथा बताते हैं, हम उनसे ही पढ़ते हैं। और हमारे पास जो हमारी चेतना है उस चेतना के माध्यम से जब हम उनके मस्तिष्क में प्रवेश करते हैं, वहीं हमारी पढ़ाई प्रारंभ हो जाती है। जिसे आज जगदगुरु शंकराचार्य ने परकाया प्रवेश का नाम दिया है। हमारे पास कोई परकाया प्रवेश की शक्ति नहीं है। न हम ये दावा करते हैं, लेकिन हमें अनुभव है कि हमारे गुरुजी सद्गुरु सन्यासी बाबा परकाया प्रवेश के मालिक हैं। और उनकी छोटी सी किंचित माति कृपा इस दास पर है। और हमारी पढ़ाई तो आप लोग हैं, जब आप आते हैं, तो आपको सुनते हैं और सुनना ही हमारी पढ़ाई है। कोई ऐसी कोई खास पढ़ाई नहीं, कभी पुस्तकों पर उतना ज्यादा ध्यान नहीं जाता। पढ़ते हैं कभी याद करते हैं। देखते भी हैं कभी कि भई ये बात जो हम बोल रहे हैं वह सिद्ध है कि नहीं, उसको थोड़ा सा देख लेते हैं। बाकी हमारी पढ़ाई अनुभव है, अनुभव से बड़ी कोई पढ़ाई भी नहीं है, क्योंकि तू कहता है कागज लेखी मैं कहता हूं आंखों देखी। तो हमें लगता है कि पढ़ाई तो ठीक है, राम चरित मानस तो सबने पढ़ी, उतार कर के जियो तब मजा है। और हमे जो भी बोलना होता है, तो थोड़ा-मोड़ा ही सही उसका या तो अनुभव खोजते हैं या अनुभव लेते हैं। फिर बोलते हैं।
न्यूज़ हेड शरद द्विवेदी : मनुष्य के मस्तिष्क को जब आप बढ़ते हैं, बहुत सारा कुछ ऐसा भी वहां कूड़ा-करकट भी मिलता है। कह कुछ रहा है वो, स्वांग कुछ रख कर आया है। भीतर कुछ और गुंताड़ा घूम रहा है उसके। मैं देखता हूं कि कई बार क्षणिक क्रोध भी आता है आपको, कि दिख कुछ रहे हो ऊपर से कुछ और बाहर से कुछ और नजर आते हो, लेकिन ये सब देखने के बाद आप बड़ी जल्दी संभाल लेते हैं अपने को और फिर प्रेम से बात करते हैं।
पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री : आवेश हमको आता है। जोश है, जुनून है, लेकिन आवेश हमको सत्य पर आता है। कोई अगर झूठा स्वांग रचाता है। हमें ये लगता है कि जो आप हाथ जोड़कर बैठे हो ये सत्य नहीं है भीतर तो कुछ और बोल रहे हो। व्यक्ति दो मुंह से बोलता है, (उन्होंने इशारों में बताया-मुंह से और दिल से) एक यहां से एक यहां से जो चेतना है वो यहां (मुंह) की कम सुनता है, यहां (दिल) की ज्यादा सुनता है। तब हमे आवेश आता है कि जो आप भीतर से हो वो बाहर से बनो ना। क्या बिगड़ेगा। तो उसको सुधारने के लिए, हमें लगता है किसी के सुधार के लिए क्रोध किया जाए तो वो क्रोध भी दोष मुक्त है।
न्यूज़ हेड शरद द्विवेदी : एक संत कहते थे कई बार समाज भी दोहरा आचरण करता है। गुरु के पास आशीर्वाद तो लेता है, लेकिन समाज को लौटाने के लिए जिस तरह की यथा शक्ति मदद की आवश्यकता होती है वो नहीं करता?
पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री : ये तो बात बिल्कुल सही है। इसमें पूर्णत:सहमत हैं। क्योंकि कोई भी वर्तमान की व्यवस्था बिना अर्थ के नहीं चल सकती और समाज इसके लिए अग्रसर नहीं है कि कोई भी कार्य करने का हमारा जो दृण संकल्प है या ये जो संकल्प चल रहे हैं। इन संकल्पों में जो समृद्ध समाज है, उनको एक दिशा देने का ही कार्य उद्देश्य है कि आप अगर जीवन में आए हो और आप पर ईश्वर ने लक्ष्मी कृपा की है तो आप ऐसे भी अपनी लक्ष्मी/धन का सदुपयोग कर सकते हैं।
न्यूज़ हेड शरद द्विवेदी : तमाम बड़े चैनल्स में आप रहे, चौथा स्तंभ अपना ठीक रास्ते पर चल रहा है कि कई बार आपको लगता भी है कि ब्रेकिंग न्यूज में कुछ गड़बड़ भी होती है।
पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री : हां, ठीक है, अच्छा है।
न्यूज़ हेड शरद द्विवेदी : क्या कहेंगे लोगों से कि धर्म को किस तरह से समझें और किस तरह से चमत्कार, धर्म इनको लेकर बहस अनादि काल से रही है। इसमें न उलझे, अपने ऊपर ध्यान दें। अपनी सद्गति और मोक्ष की तरफ बढ़ें।
पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री : चमत्कार की जो बहस है। अंधविश्वस और विश्वास में एक बारीक लाइन है, बहुत बारीक लाइन। उसको बहुत बारीकता से ही समझ सकते हो और उसके लिए बुद्धि का बहुत प्रयोग करना पड़ेता है पर हम हवा से प्रयोग करते हैं। जो हवा चल रही होती है हम वही नारे लगाना प्रारंभ कर देते हैं, तो हम चमत्कार की बहस पर बस यही कहना चाहेंगे, जो आपसे परे है वहीं चमत्कार है।
Bageshwar Dham