MP Elections 2023: श्योपुर को भगवान परशुराम की भूमि कहा जाता है और पौराणिक कथाओं में माना जाता है कि उन्होंने यहां तपस्या की थी।
श्योपुर मध्य प्रदेश का एक छोटा सा जिला है। श्योपुर विधानसभा सीट मध्य प्रदेश विधानसभा की 230 सीटों में से एक है।
श्योपुर जिले में 2 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से एक श्योपुर विधानसभा सीट है।
2018 के चुनाव में आदिवासी बहुल सीट पर कांग्रेस के बाबू जंडेल ने जीत हासिल की थी. आज इस खबर में हम आपको बाबू जंडेल के राजनीतिक सफर के बारे में बताने जा रहे हैं।
2018 के चुनाव में बाबू जंडेल कैसी थी स्थिति
2018 के चुनाव में श्योपुर में कुल 2,19,889 मतदाता थे, जिनमें 1,16,826 पुरुष और 1,03,063 महिलाएं थीं।
2 लाख मतदाताओं में से 25 फीसदी से ज्यादा मीना समुदाय से हैं. उस चुनाव में 1,76,896 यानी 81.3% मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था.
इसमें 1,794 मतदाताओं ने नोटा के पक्ष में वोट किया. वैसे तो मैदान में 11 उम्मीदवार थे, लेकिन मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच था.
बीजेपी की ओर से तत्कालीन विधायक दुर्गालाल विजय और कांग्रेस की ओर से बाबू जंडेल मैदान में थे. दुर्गालाल को 56,870 वोट मिले यानी कुल वोटों का 32.2%, जबकि कांग्रेस के बाबू को 98,580 वोट मिले जो कुल वोटों का 55.7% था।
एकतरफा मुकाबले में बाबू जंडेल ने 41,710 (23.6%) वोटों के अंतर से जीत हासिल की. बसपा के तुलसी नारायण मीना को 14 हजार से ज्यादा वोट मिले.
चुनाव में सिर्फ 3 उम्मीदवार ही 10 हजार से ज्यादा वोट हासिल कर सके.
बाबू जंडेल का राजनीतिक सफर
श्योपुर विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास काफी पुराना है, लेकिन 1990 के बाद की राजनीति पर नजर डालें तो यह सीट बीजेपी के कब्जे वाली सीट मानी जाती रही है.
हालांकि, 2018 के चुनाव में कांग्रेस के बाबू जंडेल ने यह सीट बीजेपी से छीन ली थी.
बीजेपी के दुर्गालाल विजय यहां दो बार विधायक रहे, लेकिन 2018 में वह हैट्रिक से चूक गए.
1990 के बाद से यहां 7 बार विधानसभा चुनाव हुए हैं, जिनमें 4 बार इस सीट पर बीजेपी का कब्जा रहा
, जबकि 3 बार कांग्रेस विजयी रही. 1990 और 1993 में बीजेपी के अलग-अलग उम्मीदवार जीते, लेकिन उसके बाद से किसी भी पार्टी का कोई भी उम्मीदवार लगातार दो बार इस सीट से नहीं जीत सका. 1998 के चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी बृजराज सिंह ने चुनाव जीता था.
इसके बाद 2003 के चुनाव में बीजेपी के दुर्गापाल विजय ने जीत हासिल की. लेकिन 2008 के चुनाव में वह हार गये और कांग्रेस के बृजराज सिंह विजयी रहे.
हालांकि, 2013 के चुनाव में बीजेपी के टिकट पर दुर्गालाल विजय ने एक बार फिर अपनी पिछली हार का बदला लिया और बहुजन समाज पार्टी के बाबूलाल जंडेल को 16 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया.
फिर 2018 के चुनाव में जंडेल ने पार्टी छोड़ दी और कांग्रेस में शामिल हो गए.
नई पार्टी के दम पर जंडेल ने पिछली हार का बदला लिया और बीजेपी के दुर्गालाल को हरा दिया.
ऐसे में देखना होगा कि क्या जीत-हार का सिलसिला पिछले 30 सालों से जारी रहता है या फिर कांग्रेस लगातार दूसरी बार जीत का स्वाद चखने में कामयाब होती है.
बाबू जंडेल की संपत्ती का ब्योरा
चुनावी हलफनामे में दी गई जानकारी के मुताबिक साल 2018 में बाबू जंडेल की अचल संपत्ति की कीमत 6,94,568 रुपये है. उनके पास 33 बीघे जमीन है.
उनके पास 4,40,000 रुपये से अधिक की सोने की सामग्री है जिसमें 2 तोला सोने की चेन और 2 तोला गौड़ अंगूठी शामिल है।
Note:- संपत्ति की जानकारी उनके द्वारा चुनाव के समय दी गई है।
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