हाइलाइट्स
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सिकलसेल बीमारी जेनेटिक
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माता-पिता से बच्चों में आती है
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सिकलसेल ट्राइब्स में ज्यादा
World Sickle Cell Day: सिकलसेल बीमारी एक अनुवांशिक बीमारी के रूप में मानी जाती है। इस बीमारी को जेनेटिक होती है। इसकी जागरूकता को लेकर विश्व स्तर पर कार्यक्रम आयोजित किए जाते रहे हैं।
इसके बाद भी हमारे देश में इस जेनेटिक बीमारी के बारे में आम लोगों को ज्यादा पता नहीं है। वहीं इस सिकलसेल बीमारी के लक्षण और इसका इलाज कैसे संभव है, इस बारे में आज हम इस समाचार में विस्तार से जानेंगे-
छत्तीसगढ़ में सिकलसेल के मरीज
सिकलसेल को छत्तीसगढ़ में अनुवांशिक बीमारी (World Sickle Cell Day) के रूप में देखा जाता है। प्रदेश में यह जेनेटिक बीमारी साहू और कुर्मी समाज के लोगों में होने की बात सामने आई है।
इसके अलावा लगभग सात साल पहले एक रिसर्च छत्तीसगढ़ की आदिवासी जनजाति में भी की गई थी। इसमें प्रदेश की गोंड जाति सबसे ज्यादा इस बीमारी से पीड़ित मिली थी।
छत्तीसगढ़ हेल्थ विभाग की माने तो लगभग औसतन 12 से 18 प्रतिशत लोग इन समाजों में सिकलसेल बीमारी से ग्रसित हैं।
गर्भवती की जांच जरूर हो
छत्तीसगढ़ में हर साल लगभग 6 लाख महिलाएं गर्भवती होती हैं। इन गर्भवती की सिकलसेल (World Sickle Cell Day) जांच कराई जाए तो निश्चित ही उनके आने वाले बच्चे को सिकलसेल बीमारी के खतरे से बचाया जा सकता है।
क्योंकि जन्म के समय यदि बच्चे को सिकलसेल न हो तो उसे बाद में भी सिकलसेल बीमारी (World Sickle Cell Day) की संभावना कम होती है।
इसका इलाज बचपन से ही शुरू करने पर इसे बेहतर तरीके से रोका जा सकता है।
सिकलसेल के ऐसे हैं लक्षण
सिकलसेल बीमारी (World Sickle Cell Day) होने के बाद इसके लक्षण दिखने लगते हैं। सिकलसेल के लक्षण संक्रमण, दर्द और थकान, लाल खून कोशिका रोग के लक्षण हैं।
जोड़ या हड्डी में दर्द, चक्कर आना, थकान, निर्जलीकरण, बुखार या शरीर में कम ऑक्सीजन, पेशाब में खून या तनु पेशाब बनने की असमर्थता, अंग अपक्रिया, दृष्टि विकार, पीलिया, रक्तलाई अरक्तता, श्वास कष्ट, संक्रमण, सूजन, या सॉसेज डिजिट इस बीमारी के लक्षण हैं। इस बीमारी के और भी लक्षण हैं।
क्या है सिकलसेल बीमारी?
विशेषज्ञ डॉक्टरों का कहना है कि सिकल सेल (World Sickle Cell Day) एक जेनेटिक रोग है। यह माता-पिता से बच्चे में आता है।
इसमें लाल रक्त कोशिकाओं में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और सेल का आकार गोल नहीं बनता है। इसलिए यह सेल आधे चांद या फिर हंसिए की तरह दिखने लगता है।
इसलिए सिकल (हंसिया) सेल कहते हैं। इसका असर बच्चे की ग्रोथ पर पड़ता है। इससे उसका शारीरिक विकास बहुत कम गति से होगा है।
बाकी बच्चों की तुलना में थोड़ा कमजोर होता है। उसकी इम्युनिटी भी कमजोर हो जाती है। उसके संक्रमित होने की आशंका भी बढ़ जाती है।
सिकल सेल का बॉडी पर असर
सिकलसेल (World Sickle Cell Day) एक जेनेटिक ब्लड डिसऑर्डर हैं, जो रेड ब्लड सेल्स को प्रभावित करते हैं।
स्वस्थ रेड ब्लड सेल्स गोल और लचीली होती है, जो ऑक्सीजन को शरीर के सभी हिस्सों में पहुंचाने में सहायक होती है। सिकल सेल रोग में रेड ब्लड सेल्स क्रिसेंट शेप (सिकल) की और कठोर हो जाती हैं, ये डिफॉम्ड सेल्स ब्लड वेसल्स को रोक सकती है।
इससे दर्द, थकान, संक्रमण और कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं व्यक्ति को हो सकती हैं।
इस रोग से इस तरह बचें
सिकल सेल (World Sickle Cell Day) रोग एक जेनेटिक बीमारी है, इसलिए इसे पूरी तरह से रोकना संभव नहीं है। यदि आपके परिवार में सिकल सेल रोग की हिस्ट्री है तो आप जेनेटिक टेस्ट जरूर कराएं।
इससे आप अपने बच्चों में इस बीमारी का जोखिम कम कर सकते हैं। इसके लिए आप डॉक्टरों की भी सलाह ले सकते हैं।
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जानलेवा हो सकती है ये बीमारी
सिकल सेल (World Sickle Cell Day) एक गंभीर बीमारी मानी जाती है। यदि समय पर इसका इलाज नहीं कराया जाता है तो यह जानलेवा भी हो सकती है।
सिकल सेल के खतरे से लोगों को जागरुक करने 19 जून को जागरुकता कार्यक्रम पूरे देश में आयोजित किए जाएंगे। यह आयोजन विशेषकर आदिवासी इलाकों समेत सभी स्वास्थ्य केंद्रों में होंगे।
इस दौरान इन मरीजों की भी पहचान की जाएगी।
नोट: यह लेख व समाचार सामान्य जानकारी के लिए है। इसे केवल सुझाव के रूप में पढ़ा जा सकता है। इसमें दी गई जानकारी में अमल करने के लिए डॉक्टर की सलाह लेकर ही उपचार कराएं।