Asthma in Monsoon: बारिश का मौसम जहां पर चल रहा है वहीं पर इस मौसम में कई नई बीमारियां पनपती है तो कई पुरानी बीमारियां और बढ़ जाती है। ऐसे बारिश के मौसम में आप अस्थमा की समस्या से परेशान है और अधिक बढ़ रहा है तो आपको इसमें ध्यान देने की जरूरत होती है।
इस मौसम में सांस से जुड़ी समस्या और अस्थमा के ट्रिगर्स को समझने और नियंत्रण में लाने के लिए आप उनके उपायों पर कार्य कर सकते है।
मौसम बढ़ाते है अस्थमा के लक्षण
बारिश के मौसम में ठंडा वातावरण होने से कई एलर्जी की समस्या बढ़ जाती है इसमें अस्थमा की समस्या होने पर इसके लक्षण बढ़ जाते है, जैसे-
1- ठंडी हवा चलने से शरीर के तापमान में कमी आती है, और सांस की नलियों में हिस्टेमाईन निकलता है, जो खराश और अस्थमा के लक्षणों को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है।
2-बारिश के मौसम में लगातार पानी गिरने में वातावरण में नमी आ जाती है इसके लिए धूप नहीं निकलने से अस्थमा की समस्या और बढ़ जाती है। नमी फंगस और एल्गी को बढ़ने के लिए अनुकूल माहौल देती है।
3- बारिश के मौसम में अक्सर हवा में पोलन की मौजूदगी बढ़ जाती है।
अस्थमा को नियंत्रण में लाने के लिए ये करें
यहां पर बारिश के मौसम में अस्थमा के लक्षण को लेकर पुणे के कंसल्टिंग चेस्ट फिजिशियन डॉ. पराग खटावकर ने कहा कि, बारिश के मौसम में अस्थमा को कंट्रोल करन के लिए कुछ उपायों पर ध्यान देना जरूरी है।
1-अस्थमा की समस्या के लिए धूल भी परेशानी बढ़ाती है इसके लिए माईट्स से बचे रहने के लिए नियमित तौर से वैक्यूम क्लीनर से सफाई करें।
2- बारिश के मौसम में वायरल बुखार तेजी से फैलते हैं। इसके लिए हाथ धोते रहें, बीमार व्यक्ति के संपर्क में आने से बचें।
3- घर के आंतरिक हिस्से को हमेशा खुला और हवादार बनाए रखें, बारिश में अक्सर घर में धूप का कोई ऑप्शन नहीं होने से मोल्ड और फफूंद का खतरा बढ़ जाता है। इसका ख्याल रखना जरूरी है।
4- ऐसी एक्टिविटीज करें, जिससे श्वसन प्रणाली मजबूत बने। एक्सपर्ट से बात करके योग और व्यायाम को अपने रूटीन का हिस्सा बनाएं। इसके साथ ही डाइट पर भी ध्यान दें।
डॉक्टर से लेते रहे सलाह
बारिश के मौसम में आप अस्थमा की समस्या बढ़ने पर इन सावधानियों का पालन करने के अलावा डॉक्टर से सलाह लेते रहे। इस अस्थमा के बीमारी में अक्सर डॉक्टर आपको इन्हेलेशन थेरेपी का सुझाव दे सकते हैं, जो अस्थमा के इलाज में एक कारगर थेरेपी है और इस बीमारी को नियंत्रित करने के लिए जरूरी भी है।
यहां पर इस थेरेपी की बात की जाए तो, इन्हेलेशन थेरेपी द्वारा दवाइयां सीधे फेफड़ों में पहुंचती हैं। इसकी खुराक ओरल दवाइयों के मुकाबले काफी कम होती है। इसलिए इसके साइड इफेक्ट भी काफी कम होते हैं और मरीज को जल्द आराम मिलता है।यह डिवाइस अपने पास रखें। इससे पता चलता है कि फेफड़े कितने मजबूत हैं और हवा की नली कितनी खुली है।
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