नई दिल्ली। आपने असम और मिरोरम सीमा विवाद के बारे में तो सुना ही होगा। यह विवाद करीब 49 साल से चल रहा है। सोमवार को इसने उग्र रूप ले लिया। दोनों राज्यों की सीमा पर सुरक्षाबलों और नागरिकों के बीच जमकर भिडंत हुई। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के अनुसार सोमवार को हुए झड़प और गोलीबारी में असम पुलिस के छह जवानों की मौत हो गई है। वहीं कछार के एसपी निंबालकर बैभव चंद्रकांत समेत कम से कम 50 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं। वहीं दूसरी तरफ इस मुद्दे पर मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथंगा और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा एक-दूसरे से ट्विटर पर भिड़ गए। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर इस सीमा विवाद की वजह क्या है और यह कब से चल रहा है।
क्या है पूरा विवाद
गौरतलब है कि वर्ष 1972 में केंद्र शासित प्रदेश और फिर वर्ष 1987 में मिजोरम एक राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। फरवरी, 1987 को यह भारत का 23वां राज्य बना। 1972 में केंद्रशासित प्रदेश बनने से पहले तक यह असम का एक जिला था। तब से ही मिजोरम और असम में सीमा विवाद चलता आ रहा है। बतादें कि पहले असम के कछार जिले में जिस इलाके को लुशाई हिल्स के नाम से जाना जाता था, उसे मिजोरम को दे दिया गया। वर्ष 1933 की अधिसूचना के माध्यम से लुशाई हिल्स और मणिपुर का सीमांकन किया गया था। लेकिन मिजोरम का ऐसा मानना है कि यह सीमांकन गलत है। इसे वर्ष 1875 की अधिसूचना पर आधारित होना चाहिए था। वहीं इस सीमांकन को लेकर मिजो नेताओं का कहना है कि वर्ष 1933 में मिजो समाज से सलाह नहीं ली गई थी और सीमांकन कर दिया गया था। इसलिए वे इस अधिसूचना को नहीं मानते हैं। वहीं दूसरी तरफ, असम सरकार 1933 की अधिसूचना का पालन करती है।
दोनों राज्य एक साथ लगभग 165 किमी की सीमा साझा करते हैं।
मालूम हो कि लगभग 165 किलोमीटर लंबी अंतर्राज्यीय सीमा मिजोरम और असम को अलग करती है। मिजोरम के तीन जिले आइजल, ममित और कोलासिब वहीं असम के तीन जिले करीमगंज, कछार और हैलाकांडी एक-दूसरे के साथ अपनी सीमा साझा करते हैं। लेकिन मिजोरम का दावा है कि उसके लगभग 509 वर्गमील इलाके पर असम ने कब्जा कर रखा है।
फिर से ऐसे शुरू हुआ विवाद
वहीं पिछले 10 जुलाई को यह सीमा विवाद एक बार फिर से तब भड़क गया जब असम पुलिस ने अपनी जमीन पर कथित तौर पर अतिक्रमण हटाने के लिए अभियान शुरू किया। इस दौरान असम सरकार की टीम पर अज्ञात लोगों ने IED से हमला कर दिया। इसके साथ ही सीमा पर किसानों की आठ झोपड़ियां जला दी गईं। यही से तनाव पैदा हो गया। जो सोमवार को हिंसा में बदल गया। हालांकि इस विवाद को लेकर हमेशा छिटपुट घटनाएं होती रहती हैं। लेकिन इस बार यह थोड़ा बढ़ गया है।
विशेषज्ञ इस मुद्द पर क्या कहते हैं?
विशेषज्ञ मूल रूप से इस झगड़े को बढ़ती आबादी के कारण जमीन का झगड़ा मानते हैं। उनके अनुसार लोगों को घर, स्कूल और अस्पताल चाहिए। जाहिर है इसके लिए जमीन की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में दोनों राज्य एक-दूसरे पर जमीन अतिक्रमण का आरोप लगाते हैं। दोनों राज्यों के अपने-अपने दावे हैं। लेकिन फिर भी जानकार कहते हैं कि यह विवाद उन्हीं इलाकों में है जहां लोगों की बसावट ज्यादा है। सभी इलाकों में ऐसा तनाव नहीं है। पहले ये इलाके जंगलों से भरा हुआ था। तब इसे नो मैन्स लैंड कहा जाता था। उस समय यह विवाद केवल कागजों पर था। लेकिन, अब स्थिति अलग है, लोग यहां बस गए हैं और इस वजह से आपसी कलह भी बढ़ गई है।