धर्मांतरण रोधी कानून महिलाओं के सम्मान की रक्षा करने वाला :पूर्व न्यायाधीशों व नौकरशाहों ने कहा

नयी दिल्ली, चार जनवरी (भाषा) उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा लागू धर्मांतरण रोधी कानून का बचाव करते हुए पूर्व न्यायाधीशों, नौकरशाहों और पूर्व सैनिकों के एक समूह ने सोमवार को कानून के आलोचकों पर निशाना साधते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि उन्होंने हर कानून को ‘अपनी कसौटी पर परखने’ के लिए न्यायिक समीक्षा के संवैधानिक अधिकार हड़प लिये हैं।
समूह ने एक बयान जारी कर यह बात कही। बयान पर शिक्षाविदों समेत 224 लोगों के हस्ताक्षर हैं। उन्होंने दावा किया कि उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश सभी पर लागू होता है और महिलाओं का सम्मान करने वाला है। कुछ हिंदूवादी संगठन इसे ‘लव जिहाद’ कानून भी कह रहे हैं।
कानून को अवैध और मुस्लिम विरोधी कहने पर इसके आलोचकों पर निशाना साधते हुए बयान में आरोप लगाया गया है, ‘‘यह धार्मिक अल्पसंख्यकों को उकसाकर सांप्रदायिक आग भड़काने की इस पक्षपातपूर्ण समूह की खराब ‘सनक’ है।’’
बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव योगेंद्र नारायण, पंजाब के पूर्व मुख्य सचिव सर्वेश कौशल, हरियाणा के पूर्व मुख्य सचिव धरमवीर, दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन, पूर्व राजदूत लक्ष्मी पुरी और महाराष्ट्र के पूर्व डीजीपी प्रवीण दीक्षित आदि शामिल हैं।
इससे कुछ दिन पहले 104 सेवानिवृत्त नौकरशाहों ने आरोप लगाया था कि उत्तर प्रदेश ‘नफरत, विभाजन और कट्टरता की राजनीति का केंद्र’ बन गया है और शासन के संस्थान ‘सांप्रदायिक विष’ में डूब गये हैं।
उन्होंने धर्मांतरण रोधी अध्यादेश को वापस लेने की मांग करते हुए कहा था कि मुस्लिम पुरुषों को प्रताड़ित करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा रहा है।
उनके इस दावे को नकारते हुए सोमवार के बयान में कहा गया कि गंगा-जमुनी तहजीब आपराधिक मंशा से कराये गये गैरकानूनी धर्मांतरण से मेल नहीं खाती जिसमें हत्याएं, उत्पीड़न और खासतौर पर महिलाओं के साथ धोखाधड़ी होती है।
भाषा वैभव अविनाश
अविनाश