हाइलाइट्स
- मर्जी से शादी करने वाले जोड़े के पुलिस सुरक्षा का अधिकार नहीं।
- पुलिस सुरक्षा तब मिलेगी जब जीवन को वास्तविक खतरा।
- कोर्ट ने ‘लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य’ मामले का हवाला दिया।
Allahabad High Court: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि यदि कोई युवक-युवती अपने माता-पिता की मर्जी के खिलाफ जाकर शादी करते हैं, तो वे स्वाभाविक रूप से या अधिकार के रूप में पुलिस सुरक्षा की मांग नहीं कर सकते, जब तक कि उनके जीवन या स्वतंत्रता को कोई वास्तविक खतरा न हो।
यह टिप्पणी हाईकोर्ट के जस्टिस सौरभ श्रीवास्तव की एकल पीठ ने श्रेया केसरवानी और उनके पति द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए दी। याचिकाकर्ताओं ने पुलिस सुरक्षा और उनके वैवाहिक जीवन में निजी प्रतिवादियों द्वारा हस्तक्षेप न करने की मांग की थी।
याचिका में कोई ठोस खतरा नहीं दर्शाया गया
न्यायालय ने याचिका में किए गए कथनों का अवलोकन करने के बाद कहा कि ऐसा कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है जिससे यह कहा जा सके कि याचिकाकर्ताओं के जीवन या स्वतंत्रता को कोई खतरा है। कोर्ट ने यह भी कहा कि निजी प्रतिवादी, जो याचिकाकर्ताओं के रिश्तेदार हैं, उनके द्वारा किसी तरह के शारीरिक या मानसिक हमले का कोई सबूत भी नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला
कोर्ट ने ‘लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य’ मामले (AIR 2006 SC 2522) का जिक्र करते हुए कहा कि:
“सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया है कि अदालतें उन युवाओं को सुरक्षा देने के लिए नहीं हैं, जो अपनी मर्जी से विवाह कर लेते हैं और फिर भाग जाते हैं।”
FIR या पुलिस को विशेष शिकायत नहीं दी गई
न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि याचिकाकर्ताओं ने न तो कोई FIR दर्ज करवाई और न ही पुलिस को उनके रिश्तेदारों के कथित अवैध आचरण के विरुद्ध कोई विशेष शिकायत या आवेदन दिया।
इसके अलावा, याचिका में यह भी नहीं दर्शाया गया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 175(3) के तहत कोई कदम उठाया गया हो या पुलिस ने उनकी शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया।
पुलिस को मिली स्वतंत्रता
हालांकि, कोर्ट ने यह माना कि याचिकाकर्ताओं ने पहले ही चित्रकूट के पुलिस अधीक्षक को एक अभ्यावेदन सौंपा है, और इस पर कहा:
“यदि पुलिस को वास्तविक खतरे का आभास होता है, तो वह कानून के अनुसार उचित कार्रवाई करेगी।”
कोर्ट की सलाह: “समाज का सामना करना सीखें”
अंत में, कोर्ट ने कहा कि यदि याचिकाकर्ताओं को किसी से दुर्व्यवहार या हिंसा का सामना करना पड़ता है, तो न्यायालय और पुलिस उनकी सहायता के लिए मौजूद रहेंगे। लेकिन केवल विवाह करने भर से वे अधिकार के रूप में सुरक्षा की मांग नहीं कर सकते।
जस्टिस श्रीवास्तव ने टिप्पणी की
“किसी वास्तविक खतरे के बिना, ऐसे जोड़ों को एक-दूसरे का साथ देना और समाज का सामना करना सीखना चाहिए।”
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