High Court Judge Shekhar Yadav Controversy: इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस शेखर कुमार यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव राज्यसभा के महासचिव को सौंपा दिया गया है।
महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए 50 सांसदों के हस्ताक्षर जरुरी होते हैं, वहीं जस्टिस शेखर यादव के मामले में 55 राज्यसभा सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं।
कांग्रेस नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल ने महाभियोग प्रस्ताव पेश किया। प्रतिनिधिमंडल में सांसद विवेक तन्खा, दिग्विजय सिंह, पी. विल्सन, जॉन ब्रिटास और केटीएस तुलसी शामिल है।
महाभियोग प्रस्ताव में आरोप लगाया गया कि जस्टिस यादव ने 8 दिसंबर, रविवार को प्रयागराज में विश्व हिंदू परिषद (VHP) द्वारा आयोजित कार्यक्रम में भड़काऊ, पूर्वाग्रही और सीधे तौर पर अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बनाने वाला भाषण दिया।
जिसमें कठमुल्ले घातक जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। बता दें कि स्वतंत्र भारत में अब तक 6 जजों के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया, हालांकि कार्रवाई किसी पर भी नहीं हुई है।
महाभियोग के प्रस्ताव में क्या कहा गया
महाभियोग के प्रस्ताव में जस्टिस यादव के उस कथन पर कड़ा एतराज जताया, जिसमें उन्होंने कहा कि देश को बहुसंख्यकों की इच्छा के अनुसार चलाया जाएगा।
उनके भाषण में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ उनकी टिप्पणियों और “कठमुल्ला” जैसे अपशब्दों के इस्तेमाल किया गया। महाभियोग प्रस्ताव में कहा गया कि उन्होंने जज के रूप में पद की शपथ का उल्लंघन किया और संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का उल्लंघन किया।
उनके इस कथन पर भी आपत्ति जताई गई कि मुस्लिम बच्चों से दयालुता की उम्मीद नहीं की जा सकती, क्योंकि वे छोटी उम्र में ही जानवरों के वध के संपर्क में आ जाते हैं।
प्रस्ताव में आरोप लगाया गया कि विभाजनकारी और पूर्वाग्रही बयान देकर जस्टिस यादव ने न्यायपालिका में जनता का विश्वास खत्म कर दिया। राम जन्मभूमि आंदोलन के बारे में जज के बयान राजनीतिक प्रकृति के हैं। न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्रभावित करते हैं।
क्या महाभियोग से जज को हटाया जा सकता है?
बिल्कुल, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज को महाभियोग के जरिए हटाया जा सकता है। संविधान के अनुच्छेद 124(4) और अनुच्छेद 217 में इसका जिक्र है। यह प्रक्रिया बहुत कठोर है। केवल जज के दुराचार या कर्म-अक्षमता के आधार पर ही इसे शुरू कर सकते हैं।
हालांकि, भाषण इस श्रेणी में नहीं आते। लेकिन उनको ख्याल रखना होता है कि बातों पर सार्वजनिक तौर पर टिप्पणी करनी चाहिए या नहीं।
मामले में सीजेआई संजीव खन्ना के समक्ष दायर कई शिकायतों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस यादव के भाषण के संबंध में इलाहाबाद हाईकोर्ट से रिपोर्ट मांगी।
जजों के खिलाफ कब-कब लाया गया महाभियोग प्रस्ताव
वर्ष 1993: सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वी रामास्वामी
आरोप: आजाद भारत के इतिहास में महाभियोग प्रस्ताव का सामना करने वाले पहले न्यायाधीश जस्टिस वी रामास्वामी ही थे। मई 1993 में लोकसभा में एक प्रस्ताव पेश किया गया था। उन पर आरोप लगाया गया था कि जब वह पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे तब उन्होंने अपने आधिकारिक आवास पर भारी खर्च किया था। इस प्रस्ताव पर लोकसभा में चर्चा हुई, जिसमें कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने एक वकील के रूप में रामास्वामी का प्रतिनिधित्व किया।
कार्रवाई: यह प्रस्ताव लोकसभा में पास नहीं हो सका।
वर्ष 2009: कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पीडी दिनाकरन
आरोप: राज्यसभा के 75 सांसदों ने तत्कालीन कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पीडी दिनाकरन के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति रखने समेत अन्य आरोपों के लिए महाभियोग प्रस्ताव पेश किया था। एक जांच समिति ने आरोपों की जांच जारी रखी।
कार्रवाई: 2011 में न्यायमूर्ति दिनाकरन ने जांच में विश्वास की कमी व्यक्त करते हुए इस्तीफा दे दिया।
वर्ष 2011: कोलकाता हाईकोर्ट के जज सौमित्र सेन
आरोप: कलकत्ता हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति सौमित्र सेन को एक मामले में अदालत द्वारा नियुक्त रिसीवर के रूप में कथित तौर पर 32 लाख रुपये लेने के मामले में महाभियोग का सामना करना पड़ा था। अगस्त 2011 में राज्यसभा द्वारा उन्हें हटाने का प्रस्ताव पारित होने के बाद लोकसभा में सितंबर में प्रस्ताव पर चर्चा होनी थी।
कार्रवाई: लोकसभा में चर्चा होने से पहले न्यायमूर्ति सेन ने इस्तीफा दे दिया।
वर्ष 2015: एमपी हाईकोर्ट के जज एसके गंगेले
आरोप: राज्यसभा के 58 सांसदों ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के जज जस्टिस एसके गंगेले को हटाने के प्रस्ताव के लिए सभापति को नोटिस दिया था। मामला ग्वालियर की एक महिला अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश के कथित यौन उत्पीड़न से जुड़ा था।
कार्रवाई: आरोपों की जांच के लिए गठित समिति ने न्यायमूर्ति गंगेले को बरी कर दिया था।
वर्ष 2015: गुजरात हाईकोर्ट के जज जेबी पारदीवाला
आरोप: राज्यसभा के 58 सांसदों ने गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया था। हार्दिक पटेल से संबंधित एक मामले में आरक्षण के मुद्दे पर आपत्तिजनक टिप्पणी पर जस्टिस पारदीवाला के खिलाफ प्रस्ताव लाया गया था।
कार्रवाई: जानकारी उपलब्ध नहीं है।
वर्ष 2018: सुप्रीम कोर्ट सीजेआई दीपक मिश्रा
आरोप: कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने दुर्व्यवहार और अपने अधिकार का दुरुपयोग करने के लिए तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा पर महाभियोग चलाने के लिए एक नोटिस लाया गया था। पार्टियों ने 64 सांसदों के हस्ताक्षर के साथ अपना नोटिस तत्कालीन राज्यसभा सभापति एम वेंकैया नायडू को सौंपा था।
कार्रवाई: राज्यसभा सभापति नायडू ने प्रस्ताव को खारिज कर दिया था।
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अब महाभियोग की पूरी प्रक्रिया समझिए
1. संसद के किसी एक सदन में महाभियोग प्रस्ताव पेश किया जा सकता है। प्रस्ताव को राज्यसभा के सभापति या लोकसभा स्पीकर के सामने पेश किया जाता है।
2. प्रस्ताव को पेश करने के लिए लोकसभा में कम से कम 100 सांसद और राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों का समर्थन जरूरी है।
3. सभापति या स्पीकर प्रस्ताव की प्रारंभिक जांच के लिए जांच समिति का गठन करते हैं। समिति में सुप्रीम कोर्ट के एक जज, हाईकोर्ट के एक चीफ जस्टिस और एक विशिष्ट विधि विशेषज्ञ शामिल होते हैं।
4. समिति जज के खिलाफ लगाए गए आरोपों की जांच करती है और अपनी रिपोर्ट देती है। अगर समिति की रिपोर्ट में आरोप सही पाए जाते हैं तो संसद में महाभियोग प्रस्ताव पेश किया जाता है।
5. प्रस्ताव को पारित करने के लिए सदन के दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है। अगर एक सदन में प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो इसे दूसरे सदन में भेजा जाता है।
6. दोनों सदनों में प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद संबंधित जज को उनके पद से हटा दिया जाता है।
जस्टिस शेखर यादव के बयान पहले भी चर्चा में रहे
ये पहला मौका नहीं है जब जस्टिस शेखर यादव अपने बयानों के कारण सुर्खियों में आए हैं। इससे पहले भी कई मौकों पर जस्टिस यादव अपने बयानों के लिए चर्चा में रहे हैं।
1 सितंबर 2021 को जस्टिस शेखर यादव ने कहा था कि वैज्ञानिकों का मानना है कि गाय ही एकमात्र जानवर है जो ऑक्सीजन छोड़ती है। उन्होंने संसद से गाय को राष्ट्रीय पशु बनाने और गोरक्षा को “हिंदुओं का मौलिक अधिकार” घोषित करने का भी आह्वान किया था।
अक्टूबर 2021 में जस्टिस शेखर यादव ने एक फैसले में विवादित सुझाव दिया था। सरकार से राम, कृष्ण, रामायण, गीता, महर्षि वाल्मीकि और वेद व्यास को राष्ट्रीय सम्मान और विरासत का दर्जा देने के लिए एक कानून लाने पर विचार करने के लिए कहा था।
जून 2021 में वह धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत एक आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। जस्टिस यादव ने कहा था कि अगर बहुसंख्यक समुदाय का कोई व्यक्ति अपमान के बाद अपने धर्म से धर्मांतरण करता है, तो देश कमजोर हो जाता है। अकबर और जोधाबाई को अंतर धार्मिक विवाह के अच्छे उदाहरण के रूप में बताया था।