Uniform Civil Code: देश में इन दिनों समान नागरिक संहिता को लेकर राजनीतिक बयानबाजी ज़ोरों पर है। आगामी लोकसभा चुनाव 2024 अब ज्यादा दूर नहीं है।
ऐसे में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टीयां चुनाव की तैयारी में भी लगी हैं।
आइए जानते हैं कि क्या है समान नागरिक संहिता, जिसे लेकर पूरे देश में चर्चाएं हो रही हैं।
क्या है समान नागरिक संहिता?
समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) की अवधारणा कानूनों के एक समूह के रूप में की गई है, जो सभी नागरिकों के लिए उनके धर्म की परवाह किए बिना विवाह, तलाक, गोद लेने, विरासत और उत्तराधिकार सहित व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करता है।
इसका उद्देश्य मौजूदा विविध व्यक्तिगत कानूनों को प्रतिस्थापित करना है, जो धार्मिक संबद्धता के आधार पर भिन्न होते हैं।
भारत में व्यक्तिगत कानूनों में अंतर का एक उदाहरण
भारत में महिलाओं के विरासत संबंधी अधिकार उनके धर्म के आधार पर भिन्न-भिन्न हैं।
1956 के हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत, (जो हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और सिखों के अधिकारों को नियंत्रित करता है) हिंदू महिलाओं को अपने माता-पिता से संपत्ति प्राप्त करने का समान अधिकार है और हिंदू पुरुषों के समान ही अधिकार है।
विवाहित और अविवाहित बेटियों के अधिकार समान हैं। महिलाओं को पैतृक संपत्ति विभाजन के लिए संयुक्त कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में मान्यता दी गई है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ द्वारा शासित मुस्लिम महिलाएं अपने पति की संपत्ति में हिस्सा पाने की हकदार हैं, जो बच्चों की उपस्थिति के आधार पर 1/8 या 1/4 है। हालाँकि, बेटियों की हिस्सेदारी बेटों की तुलना में आधी है।
ईसाइयों, पारसियों और यहूदियों के लिए, 1925 का भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम लागू होता है।
ईसाई महिलाओं को बच्चों या अन्य रिश्तेदारों की उपस्थिति के आधार पर पूर्व निर्धारित हिस्सा मिलता है।
पारसी विधवाओं को उनके बच्चों के समान हिस्सा मिलता है, यदि मृतक के माता-पिता जीवित हैं तो बच्चे का आधा हिस्सा उनके माता-पिता को दिया जाता है।
भारतीय संविधान में समान नागरिक संहिता का प्रावधान
संविधान के अनुच्छेद 44, जो राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में से एक है, में कहा गया है कि राज्य को पूरे भारत के क्षेत्र में लोगों के लिए एक समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिए।
हालाँकि, जैसा कि अनुच्छेद 37 में कहा गया है, निर्देशक सिद्धांत सरकारी नीतियों के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत हैं और अदालतों द्वारा लागू नहीं किए जा सकते हैं।
वर्तमान की केंद्र में बैठी बीजेपी सरकार इसे हर हाल में लागू करना चाहती है। हालांकि विपक्ष इसे लेकर कड़ा विरोध जाता रहा है।
समान नागरिक संहिता को लेकर बीजेपी की राह काफी मुश्किलों भरी दिखाई दे रही है। गौरतलब है की यूसीसी हमेशा से ही भारतीय जनता पार्टी के मैनिफेस्टो का हिस्सा रहा है।
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