(गौरव सैनी)
नयी दिल्ली, 30 दिसंबर (भाषा) कोरोना वायरस संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए मार्च में देशभर में लागू किए गए लॉकडाउन से सामान्य जीवन और आर्थिक गतिविधियां थमने के कारण राष्ट्रीय राजधानी में कुछ दिनों के लिए लोगों को साफ नीला आसमान, रात को सितारे देखने और कम प्रदूषित हवा में सांस लेने का मौका मिला था। लेकिन यह फायदा ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाया।
सामान्य दिनों में हमारी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली वायु प्रदूषण के लिहाज से दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है।
हालांकि, कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान स्वच्छ हुई हवा ज्यादा समय तक नहीं टिकी और जैसी ही सामान्य जीवन और औद्योगिक गतिविधियां पटरी पर लौटीं, शहर में वायु प्रदूषण का स्तर फिर से पुरानी स्थिति में पहुंच गया।
लॉकडाउन के दौरान 25 मार्च से 18 मई के बीच दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बिना किसी प्रयास के काफी सुधर गया और उस दौरान वायु गुणवत्ता ‘‘संतोषजनक’’ श्रेणी में रहा।
सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट ने एक रिपोर्ट में कहा, ‘‘दिल्ली-एनसीआर में लॉकडाउन से पहले दिसंबर-जनवरी के महीने की तुलना में प्रदूषण का स्तर कम होने के सबसे बड़े कारकों में से एक है यातायात में करीब 97 प्रतिशत और अप्रैल में व्यावसायिक ट्रकों के संचालन में 91 प्रतिशत की कमी आना।’’
दिल्ली-एनसीआर में 18 मई से पांच जून तक एक्यूआई ‘सामान्य’ श्रेणी में रहा। जुलाई से सितंबर तक मानसून के दौरान बारिश के कारण प्रदूषण पर लगाम लगी रही।
सामान्य एक्यूआई 63.8 रहने के साथ वायु गुणवत्ता के लिहाज से अगस्त इस साल का सबसे स्वच्छ महीना रहा। अगस्त में चार दिन ऐसा रहा जब एक्यूआई ‘अच्छे’ की श्रेणी में रहा। 2015 में केन्द्रीय प्रदूषण ब्यूरो द्वारा एक्यूआई की निगरानी शुरू किए जाने के बाद से यह पहला मौका था जब दिल्ली में हवा इतनी स्वच्छ थी।
अक्टूबर के अंत तक वायु गुणवत्ता फिर से ‘गंभीर’ की श्रेणी में पहुंच गई और कोरोना वायरस महामारी के दौरान वायु प्रदूषण के प्रभावों को लेकर विशेषज्ञों के माथे पर चिंता की लकीरें खिंचने लगी।
हालात को देखते हुए दिल्ली सरकार ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पर्यावरण मंत्री गोपाल राय के नेतृत्व में वायु प्रदूषण को लेकर ‘युद्ध प्रदूषण के विरूद्ध’ अभियान शुरू किया।
शहर में वायु प्रदूषण को कम करने के लक्ष्य से केजरीवाल सरकार ने दिवापली पर पटाखों पर प्रतिबंध लगा दिया और शहर के अस्पतालों में सुविधाओं को बेहतर बनाने पर जोर दिया।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने नवंबर में कहा था कि ‘‘कोविड-19 के 13 प्रतिशत मामले संभवत: वायु प्रदूषण से जुड़े हैं।’’
महीने में दूसरी बार प्रदूषण का स्तर आपात श्रेणी में पहुंचने के बाद कई दिनों तक दिल्ली काले-घने स्मॉग से घिरा रही और लोगों को धूप के दर्शन नहीं हुए।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, नवंबर में 10 दिन वायु गुणवत्ता ‘गंभीर’ की श्रेणी में रही। पिछले चार साल में पहली बार किसी महीने में वायु गुणवत्ता इतनी खराब रही है।
पटाखों पर प्रतिबंध के बावजूद इस साल दीवाली पर और उसके अगले दिन प्रदूषण का स्तर पिछले चार साल के मुकाबले सबसे ज्यादा रहा।
मौसम विज्ञान विभाग के क्षेत्रीय पूर्वानुमान केन्द्र के प्रमुख कुलदीप श्रीवास्तव ने बताया कि इस साल नवंबर में वायु गुणवत्ता इसलिए भी खराब रही क्योंकि पिछले साल के मकाबले इस बार बारिश कम हुई है।
उन्होंने कहा कि इसके अलावा भारी मात्रा में पराली जलाया जाना भी इसकी वजह रही है। किसानों ने इस साल फसल जल्दी कटने के कारण पराली भी जल्दी जलानी शुरू कर दी थी।
पंजाब में इस साल पराली जलाने के 76,590 मामले दर्ज हुए जो कि पिछले चार साल में सबसे ज्यादा हैं। पिछले साल इनकी संख्या 55,210 थी।
भारतीय कृषि अनुसंधान केन्द्र (आईएआरआई) के एक अधिकारी ने बताया कि चार से सात नवंबर के बीच पराली जलाने की सबसे ज्यादा घटनाएं हुई हैं।
वायु गुणवत्ता की निगरानी करने वाली भूविज्ञान मंत्रालय की संस्था ‘सफर’ के अनुसार, दिल्ली-एनसीआर के प्रदूषण में पराली जलने का हिस्सा पांच नवंबर को 42 प्रतिशत था और उस दिन ऐसी 4,135 घटनाएं हुई थीं।
आईएआरआई अधिकारी ने कहा, ‘‘इस साल बंपर फसल होने के कारण पराली की मात्रा भी ज्यादा है। साथ ही पिछले साल के मुकाबले इस साल बारिश भी कम हुई है। ऐसे में पराली सूखी हुई थी और आसानी से जली।’’
भाषा अर्पणा नरेश
नरेश