हाइलाइट्स
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दादा साहेब फाल्के की पुण्यतिथि आज
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16 फरवरी 1944 को हुआ था निधन
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1913 में बनाई थी ‘राजा हरिशचंद्र’ फिल्म
Aaj Ka Itihas: आज बात भारतीय सिनेमा के पितामह दादा साहेब फाल्के की कर रहे हैं. हिंदी सिनेमा में दिलचस्पी रखने वाला शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने दादा साहेब फाल्के (Dadasaheb Phalke) का नाम नहीं सुना होगा. आज दादा साहेब फाल्के की पुण्यतिथि है. वैसै तो 16 फरवरी 1944 को उन्होंने फिल्म जगत को अकेला छोड़ दिया था, लेकिन उनकी जलाई लौ आज भी कई लोगों के सीने में धधक रही है.
आज भी फिल्म निर्देशक उनसे प्रेरणा लेकर फिल्म बनाते हैं. फिल्मी इंडस्ट्री में उनका नाम बड़े ही अदब के साथ लिया जाता है. दादा साहेब फाल्के ने भारतीय सिनेमा की नींव रखी थी.
दांव पर लगाए अपनी पत्नी के गहने
सिनेमा को लेकर उनकी दीवानगी इस कदर थी कि उन्होंने फिल्म बनाने के लिए अपनी पत्नी की गहने तक दांव पर लगा दिए थे. अपनी फिल्म की नायिका की तलाश में रेड लाइट एयिया तक भी पहुंच गए थे. दादा साहेब फाल्के लाख मुसीबतों के बावजूद फिल्म बनाकर ही माने. उन्होंने पहली मूक फ़िल्म ‘राजा हरिश्चंन्द्र’ के बाद दो और पौराणिक फ़िल्में ‘भस्मासुर मोहिनी’ और ‘सावित्री’ बनाई.
‘द लाइफ ऑफ क्राइस्ट’ फिल्म ने डाला गहरा असर
दादा साहेब फाल्के को फिल्म बनाने का आइडिया द लाइफ ऑफ क्राइस्ट देखने के बाद आया था. इस फिल्म ने उन पर इतना गहरा असर किया कि उन्होंने भी फिल्म बनाने की ठान ली. यह काम इतना आसान नहीं था, इसलिए वह फिल्म मेकिंग की बारीकियां सीखने के लिए एक दिन में चार-पांच घंटे सिनेमा देखा करते थे. उनकी पहली फिल्म का बजट 15 हजार रुपये था. जिसके लिए उन्होंने अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया था.
फिल्म के लिए जिंदगी की सारी जमा-पूंजी लगाई
जिस समय उन्होंने फिल्म बनाने की सोची उस दौरान फिल्म बनाने के जरूरी उपकरण सिर्फ इंग्लैंड में मिलते थे. दादा साहेब फाल्के ने इंग्लैंड जाने के लिए अपनी सारी जमा-पूंजी लगा दी. पहली फिल्म बनाने में उन्हें लगभग 6 महीने का समय लगा था. दादा साहेब की आखिरी मूक फिल्म ‘सेतुबंधन’ थी.
साल 1969 में दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड की शुरुआत
भारत में उनके सम्मान में दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड (Dadasaheb Phalke Award) दिया जाता है. साल 1969 में इस अवार्ड को देने की शुरुआत हुई थी। देविका रानी को पहली बार इस अवॉर्ड से नवाजा गया था. दादा साहेब का असली नाम धुंडिराज गोविंद फाल्के था. उनका जन्म 30 अप्रैल 1870 में त्रयंबकेश्वर, नासिक में एक मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ था.
उनके पिता गोविंद सदाशिव फाल्के संस्कृत के विद्धान और मंदिर में पुजारी थे. साल 1913 में उन्होंने ‘राजा हरिशचंद्र’ नाम की पहली फुल लेंथ फीचर फिल्म बनाई थी. दादा साहेब केवल एक निर्देशक ही नहीं बल्कि एक जाने माने निर्माता और स्क्रीन राइटर भी थे. दादा साहेब ने 16 फरवरी 1944 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया था.