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Aaj ka Itihas: कैसे हुआ था भारत में जम्मू-कश्मीर के विलय पत्र पर हस्ताक्षर, जानें पूरी पृष्ठभूमि

1947 में भारतीय उपमहाद्वीप दो नवगठित राष्ट्रों, भारत और पाकिस्तान में विभाजित हो गया था। इन दो प्रभुत्वों के साथ 580 रियासतें थी।

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Bansal News
Aaj ka Itihas: कैसे हुआ था भारत में जम्मू-कश्मीर के विलय पत्र पर हस्ताक्षर, जानें पूरी पृष्ठभूमि

Aaj ka Itihas: सन् 1947 में भारतीय उपमहाद्वीप दो नवगठित राष्ट्रों, भारत और पाकिस्तान में विभाजित हो गया था। इन दो प्रभुत्वों के साथ भारतीय उपमहाद्वीप में 580 रियासतें थी। जिसने पूर्व में सहायक गठबंधनों के माध्यम से ब्रिटिश क्राउन की सर्वोपरिता को स्वीकार कर लिया।

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1947 के भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के मुताबिक, इन रियासतों को स्वतंत्र रहने और भारत या फिर पाकिस्तान में शामिल होने का विकल्प भी दिया गया था।

जिसके बाद कई रियासतें इन दोनों नवगठित राष्ट्रों में शामिल हो गई, तो वहीं कुछ रियासतों ने स्वतंत्र रहने का फैसला किया। इन्‍हीं में एक रियासत जम्मू-कश्मीर थी।

बता दें कि विलय की प्रक्रिया में विलय पत्र (आईओए) पर हस्ताक्षर करना शामिल था जिसमें विलय की शर्तों को रेखांकित किया गया था।

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महाराजा हरि सिंह की दुविधा

जम्मू-कश्मीर के अंतिम डोगरा सम्राट महाराजा हरि सिंह ने शुरू में अपने राज्य की स्वतंत्रता को बनाए रखने का फैसला किया।

उन्होंने मौजूदा स्थिति को बनाए रखने के लिए भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ स्टैंडस्टिल समझौते पर हस्ताक्षर किए।

हालाँकि, जब इस क्षेत्र में पठान आदिवासी मिलिशिया और पाकिस्तानी सैन्य कर्मियों ने घुसपैठ की, तो राजा हरि सिंह की मुश्किलें बड़ा गई।

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इस गंभीर स्थिति का सामना करते हुए, महाराजा हरि सिंह ने आक्रमणकारियों को पीछे हटाने के लिए भारत से सहायता मांगी ।

भातर ने की मदद की पेशकश

भारत ने जम्मू-कश्मीर की मदद की पेशकश करते हुए विलय पत्र पर महाराजा हरि सिंह के हस्ताक्षर करने की शर्त रखी।

26 अक्टूबर, 1947 को हस्ताक्षरित यह समझौता जम्मू-कश्मीर रियासत और भारत के बीच एक समझौते के रूप में कार्य करता था।

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भारत के तत्कालीन गवर्नर-जनरल लॉर्ड माउंटबेटन ने एक दिन बाद औपचारिक रूप से दस्तावेज़ को स्वीकार कर लिया।

इस महत्वपूर्ण समझौते ने भारतीय संसद को जम्मू-कश्मीर से संबंधित रक्षा, विदेश मामलों और संचार के मामलों पर कानून बनाने का अधिकार प्रदान कर दिया।

26 अक्टूबर को सार्वजनिक छूट्टी

बता दें कि 2020 से, पूर्ववर्ती राज्य जम्मू और कश्मीर, जिसे अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद 2019 में केंद्र शासित प्रदेश में बदल दिया गय।

साथ ही इस ऐतिहासिक घटना का सम्‍मान करते हुए 26 अक्टूबर सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया, जो भारत के एकीकरण और जम्मू-कश्मीर की नियति को आकार देने में विलय पत्र के महत्व की याद दिलाता है।

धारा 370 हटने के बाद क्या बदला?

बता दे कि 2019 में धारा 370 हटने से पहले जम्मू कश्मीर को विशेषाधिकार, यहां निवास करने वाले लोगों को दोहरी नागरिकता समेत यहां का अलग झंडा हुआ करता था।

इसके अलावा यहां आर्टिकल 356 (राष्ट्रपति शासन), आर्टिकल 360 (आर्थिक आपातकाल) भी लागू नहीं किया जा सकता था।

जम्मू कश्मीर में निकास कर रहे अल्पसंख्यकों को कोई आरक्षण नहीं दिया जाता था, साथ ही अन्‍य राज्यों के लोग यहां जमीन या प्रापर्टी नहीं खरीद सकते थे।

भारत के हर राज्य की विधानसभा का कार्यकाल 5 साल का होता है, जबकि यहां 6 साल का कार्यकाल होता था। इसके साथ यहां राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट का भी कोई आदेश मान्‍य नहीं होता था।

जम्मू-कश्मीर की सबसे बड़ी बात थी की यहां पंचायतों को उनके अधिकार प्राप्‍त नहीं थे। जिससे विकास की दर बहुत धीमी थी।

धारा 370 को हटने के बाद साल 2019 से यहां की तस्‍वीर पूरी तरह से बदल गई और अब भारतीय संसद ने जम्‍मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया।

भारत अब जम्‍मू–कश्मीर के संबंध में पूरी तरह से कानून बने में स्‍वतंत्र है और यहां निवास करने बाले लोगों भारत के सामन हीं अधिकार मिल गए हैं।

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