Unique School: प्राचीन काल से भारत में गुरुकुल की परंपरा रही है। हालांकि आधुनिक युग में गुरुकुल शिक्षा पद्धति कम होती चली गई। लेकिन आज भी बिहार में गुरुकुल की तर्ज पर घने जंगलों में स्कूल संचालित किया जा रहा है। इस गुरुकुल में बच्चों को अक्षर ज्ञान के साथ-साथ कृषि, पशुपालन, प्रकृति से जुड़ी शिक्षाएं कम उम्र में ही मिल जाती है। लाखों का पैकेज छोड़कर पति पत्नी बिहार में इस अनोखे स्कूल का संचालन कर रहे है। आईये जानते है इसके बारे में।
जंगलों में बच्चों को गुरुकुल की तर्ज पर शिक्षा
दरअसल बिहार के गया जिले में एक दंपती इस गुरुकुल को संचालित कर रहा है। गया के जिस इलाके में यह गुरुकुल है वहां आए दिन नक्सली घटनाएं होती रहती हैं। आलम ये है की अभी तक पूरे गांव से सिर्फ एक युवक ने मैट्रिक की परीक्षा पास की है।
बिहार के गया जिले के घने जंगलों में पति पत्नी चला रहे गुरुकुल
गया के बाराचट्टी प्रखंड की काहुदाग पंचायत के कोहबरी गांव में घने जंगलों में बच्चों को गुरुकुल की तर्ज पर शिक्षा दी जा रही है। पढ़ाई के अलावा प्रकृति से प्रेम, खाना बनाना, खेतों में काम करना और चटाई बनाने का भी प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।
वहीँ इस इलाके से सरकारी स्कूल भी है पांच किलोमीटर की दूरी पर है। 2017 से यह गुरुकुल चल रहा है। अब इस गुरुकुल के बच्चे भी मैट्रिक की परीक्षा देंगे।
गांव के बच्चों को शिक्षित करने का नेक कार्य
गया के कोहवारी जंगल में सहोदय ट्रस्ट का संचालन अनिल कुमार और उनकी पत्नी रेखा देवी करते हैं। इस ट्रस्ट के द्वारा पिछले कई वर्षों से गुरुकुल की तर्ज पर शिक्षा का संचालन कर रहा है। दिल्ली से एमफिल और पीजी की डिग्री के बाद पति–पत्नी अनिल और रेखा अब गांव के बच्चों को शिक्षित करने के नेक कार्य में लगे हुए हैं। दिल्ली में किसी शैक्षणिक रिसर्च कंपनी में काम को छोड़कर 1000 किलोमीटर दूर गया के जंगलों में गुरुकुल चला रहे हैं।
सहोदय आश्रम के संचालक अनिल कुमार बताते हैं कि वह पटना जिले के बिहटा के रहने वाले हैं। अनिल ने बताया कि – “उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली गए। एमफिल और पीजी की डिग्री लेकर किसी शैक्षणिक रिसर्च कंपनी में रिसर्चर के रूप में अच्छे वेतन पर कार्य रहा था। जहां उनकी मुलाकात रेखा से हुई। इसी क्रम में दोनों ने शादी कर ली।”
स्कूल फीस मात्र 1 किलो चावल
इस दंपती ने शिक्षा की रोशनी फैलाने की ठान ली है। यही कारण है कि अब जंगल में रहने वाले बच्चे अक्षर की शिक्षा के साथ-साथ अन्य शिक्षा का भी ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। बच्चों का आत्मविश्वास देख कर समझा जा सकता है कि उनमें किसी प्रकार की झिझक भी नहीं है।
बच्चों में काफी संस्कार भी है। किसी के प्रवेश होते ही बच्चे उन्हें हाथ जोड़कर प्रणाम करते हैं और उनका स्वागत करते हैं। आपको यहां की फीस जानकर भी आश्चर्य होगा। बच्चे आवासीय तौर पर यहां रहकर पढाई करते हैं, लेकिन उनकी महीने की स्कूल फीस मात्र 1 किलो चावल होती है।
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