कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी का छत्तीसगढ़ दौरा खत्म हो गया। उस दौरे से छत्तीसगढ़ कांग्रेस को क्या मिला? इसका जवाब तो ढूंढा जाएगा लेकिन दौरे से पहले और दौरे के समय कांग्रेस के नेताओं की आपसी गुटबाजी जरुर खुलकर सामने आ गई।
जो नेता राहुल के दौरे के पहले ही खेमे में बंटे थे वो दौरे के समय भी खेमेबाजी करते दिखाई दिए। बड़े नेताओं ने कोशिश तो बहुत की ये बताने की कोई गुटबाजी नहीं है। मगर गुटबाजी तो दिखाई दे ही गई। 15 जून को मदनपुर में मंच पर चढ़ने से लेकर तो मंच पर बैठने तक में गुटबाजी हावी रही। भूपेश बघेल और जोगी के बीच तनातनी की खबरों ने भी विपक्ष को मौका दिया बहुत कुछ कहने का।
जोगी खेमे और संगठन खेमे के बीच खींचतान का सिलसिला तो राहुल के दौरे से पहले ही शुरू हो गया था। संगठन ने अजीत जोगी और उनके गुट को पूरी तरह से अलग कर दिया था, न कोई जिम्मेदारी न ही कोई सूचनाएं। जोगी ने अपनी तैयारियां भी अलग की। खुद जोगी कहते भी नजर आए कि उन्हें कोई तवज्जो नहीं मिल रही।
हालांकि दौरे को लेकर कई मौके पर तैयारियों का जायजा लेने आए नेता कहते नहीं थके कि कोई गुटबाजी नहीं है। दौरे के दूसरे दिन डभरा की आम सभा में राहुल के मंच पर पहुंचने से पहले चरणदास महंत और जोगी के बीच कहासुनी हो गई। बीच बचाव मोतीलाल वोरा, मोहसिना किदवई और रेणु जोगी करती नजर आई। मगर जोगी के हाव भाव तो बता रहे थे कि वो खासे नाराज है। राहुल गांधी इससे अनजान रहे हो ये कहना भी ठीक नहीं होगा। आने वाले दिनों में कांग्रेस की इस खेमेबाजी का कुछ ना कुछ असर तो जरूर देखने को मिलेगा।