हाइलाइट्स
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हाईकोर्ट का एबॉर्सन केस में बड़ा आदेश
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नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता केस में सुनाया फैसला
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गर्भपात के लिए गर्भवती की सहमति आवश्यक
High Court Order Abortion Consent Minor Case: जबलपुर हाईकोर्ट (High Court) ने एक एबॉर्सन (Abortion) मामले में बड़ा आदेश सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि गर्भपात के लिए गर्भवती की सहमति आवश्यक है।
हाईकोर्ट जस्टिस विशाल मिश्रा की एकलपीठ ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि गर्भपात के लिए गर्भवती की सहमति आवश्यक है। नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता और उसकी मां ने गर्भपात की अनुमति प्रदान करने से इनकार कर दिया है। उनका कहना है कि पीड़िता ने अभियुक्त के साथ विवाह कर लिया है और वह चाहती है कि अभियुक्त को जेल से रिहा कर दिया जाए। एकलपीठ ने याचिका का निराकरण करते हुए पीड़िता की सहमति के बिना गर्भपात की अनुमति देने से साफ इनकार कर दिया।
मेडिकल रिपोर्ट में गर्भपात नियम विरुद्ध
मैहर जिला न्यायालय के द्वारा 17 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता के गर्भवती ( Pregnant) होने के संबंध में हाईकोर्ट को पत्र के माध्यम से अवगत कराया गया था। हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिए थे। हाईकोर्ट में पेश की गई मेडिकल रिपोर्ट में बताया गया था कि पीड़िता की प्रसव पूर्व अवस्था 28 सप्ताह की है और उसे हल्का एनीमिया है। गर्भावधि 28 सप्ताह से अधिक होने के कारण भ्रूण व्यवहार्यता की आयु पार कर चुका है। पीड़िता और अभिभावकों की सहमति के अनुसार गर्भावस्था को समाप्त या जारी रखा जा सकता है।
पीड़िता ने यह भी कहा
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान बताया गया कि पीड़िता तथा उसकी मां गर्भावस्था जारी रखना चाहती है। पीड़िता का कहना है कि उसने अभियुक्त के साथ विवाह कर लिया है और वह चाहती है कि अभियुक्त को जेल से रिहा कर दिया जाए। एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि एमटीपी अधिनियम के तहत गर्भपात के लिए गर्भवती की सहमति सर्वोपरि है। गर्भवती महिला की सहमति के बिना किसी भी गर्भावस्था को समाप्त नहीं किया जाएगा।
एमटीपी अधिनियम क्या कहता है ?
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि न्यायालय के समक्ष विचारार्थ प्रस्तुत प्रकरण में एमटीपी अधिनियम के अंतर्गत अपेक्षित पूर्ण जानकारी मेडिकल बोर्ड प्रदान नहीं कर रहा है। एमटीपी अधिनियम की धारा-3 के अंतर्गत आवश्यकताओं के अनुसार विशिष्ट अवलोकन और स्पष्ट राय होनी चाहिए, जैसे कि राय सद्भावनापूर्ण है, गर्भावस्था जारी रहने से गर्भवती महिला के जीवन को खतरा हो सकता है या उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर क्षति पहुंच सकती है और इस बात का पर्याप्त जोखिम है कि यदि बच्चा पैदा होता है, तो उसे कोई गंभीर शारीरिक या मानसिक असामान्यता हो सकती है।
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हाईकोर्ट ने यह भी दिए निर्देश
सामान्यतः न्यायालय को अवलोकनार्थ भेजी जाने वाली रिपोर्ट उपरोक्त के बारे उल्लेख नहीं रहता है। एमटीपी अधिनियम की धारा-तीन के अनुसार विधिवत गठित मेडिकल बोर्ड को एमटीपी अधिनियम-1971 के अंतर्गत आने वाले मामलों के संबंध में पूर्ण, ठोस और स्पष्ट राय प्रदान करने का निर्देश दिया जाता है। साथ ही रजिस्ट्रार जनरल को निर्देशित किया जाता है कि आदेश की प्रति राज्य के सभी प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीशों और राज्य मेडिकल बोर्ड को आवश्यक कार्यवाही करने के लिए प्रसारित करें।
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