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Teachers Day 2025: शिक्षक दिवस पर एक शिक्षक का समाज के नाम पत्र

देव तुल्य शिक्षक क्यों हो गया बेचारा, शिक्षक को क्यों नहीं मिल पाता कोई सहारा, आखिर शिक्षक का क्या है दोष, टीचर्स डे पर पढ़ें एक शिक्षक का समाज के नाम पत्र।

Rahul Garhwal by Rahul Garhwal
September 5, 2025
in टॉप न्यूज, विचार मंथन
Teachers Day 2025 letter to the society Former member of NCERT Doctor Damodar Jain
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मुझे यह समझ नहीं आ रहा है कि मैं किसे संबोधित करूं। जिस देश, संस्कृति और समाज में हमेशा से चली आ रही परम्परा के अनुसार गुरु को ईश्वर से भी ऊंचा दर्जा प्राप्त रहा है। उस देश में आखिर मुझे इतना निरीह, कायर और दया का पात्र क्यों होना पड़ रहा है ?

जिसे देव तुल्य मानकर गुरु पूर्णिमा जैसे पर्व मनाए जाते हैं उसे डर के कारण अब कोई सहारा नहीं मिल पाता है ? क्यों, आखिर क्यों….?

‘अब हर कोई गुरु से बड़ा’

मुझे ऐसा लगता है कि अंग्रेजी शासन के दौरान लगभग 200 साल पहले बच्चों के ज्ञान संचयन के लिए चलाए जा रहे गुरुकुल इसलिए समाप्त कर दिए गए थे कि उनमें गुरु की महत्ता ज्यादा थी, वहां पर गुरु की आज्ञा ही सर्वोपरि मानी जाती थी।1835 के बाद से लेकर अब तक (आजादी के 78 सालों के बाद भी ) देश में गुरुजनों की अधिकारिता का हनन ही हो रहा है। अब तो हर कोई गुरु यानि कि शिक्षक से बड़ा मान लिया गया है। अब सब मेरे गुरु बन गए हैं। वे लोग ज्यादा ज्ञानी , योग्य और कर्मठ मान लिए गए हैं जिन्होंने कभी शिक्षा के क्षेत्र में कोई काम नहीं किया। अब शिक्षक (पुराने गुरु) का कहना कोई नहीं मानता। आखिर शिक्षकों के बारे में निर्णय कौन ले सकता है..?

अब किसी शिक्षक को नहीं पता कि बच्चों की शिक्षा की गुणवत्ता को उन्नत करने में सक्षम कौन है ? किसी को यह भी नहीं पता कि बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा, जिसे सब गुणवत्तायुक्त कहते हैं, कैसे उपलब्ध हो सकती है ?

यह भी कोई नहीं जानता है कि देश में आजादी के बाद अधिकांश पढ़े लिखे लोग गुणवत्तायुक्त क्यों नहीं हैं ? अब भारत देश की प्रगति में शिक्षक और शिक्षा की गुणवत्ता का क्या योगदान है ?

शिक्षकों की नियुक्ति से लेकर सेवा निवृत्त होने तक शिक्षकों की दशा और दिशा को कोई नहीं जानता है, खुद शिक्षक भी नहीं।

teachers day hindi news 2025

मुझे 44 साल पहले 1982 में शिक्षक के रूप में काम करने का अवसर मिला था। उस समय शिक्षक का काम थोड़ा-सा सम्माननीय माना जाता था, लेकिन अब तो लगता है कि जैसे सारी स्थिति हाथ से निकल गई है। क्या सरकार और क्या घर-परिवार , सब जगह, हर समय, हर व्यक्ति शिक्षकों की आलोचना करते हुए उनके साथ दोयम दर्जे का बर्ताव करने लगे हैं। आखिर क्या दोष है हमारा ?

आज के सफल स्कूल की स्थापना करने वाले कौन हैं, कैसे हैं और वे अपने स्कूल में शिक्षकों के साथ कैसा बर्ताव करते हैं, इसे कौन जानता है ?

राष्ट्रीय शिक्षा नीतियों का अध्ययन करने से तो पता चलता है कि शिक्षकों के लिए बहुत सम्मानजनक दर्जा देने के लिए खूब सारे प्रावधान किए गए हैं। यह नीतियां कभी शिक्षकों को पढ़ने के लिए नहीं दी जाती हैं तो शिक्षक खुद का महत्व भूल जाते हैं। सारे काम करने के लिए शिक्षकों को नतमस्तक किया जाता है। अब शिक्षकों के लिए सबकुछ ऊपर से तय किया जाता है कि वे क्या पढ़ाएं, कैसे पढ़ाएंगे और बच्चों का मूल्यांकन कैसे करें ? शिक्षकों को इस बात की कोई अधिकारिता नहीं है कि वे अपने विद्यालय का संचालन कैसे करें।

‘शिक्षक तंत्र की गुलामी करने के लिए मजबूर’

विद्यालय के खुलने और बंद करने का निर्णय ऊंचे सरकारी अधिकारियों के अनुसार लिया जाता है। ऊंचे स्तर पर पहुंच गए लोग शिक्षकों पर अनुशासन के नाम पर शासन करते हैं और हर तरह से डराते-धमकाते हैं। उनको प्रताड़ित करने वाले लोगों को शाबासी दी जाती है। शिक्षा प्रशासन का विषय बन गया है। राष्ट्रीय स्तर से लेकर स्थानीय स्तर तक शिक्षक तंत्र की गुलामी करने के लिए मजबूर हैं। जिन्हें समर्थ और सशक्त बनाया जाना चाहिए था उन्हें कदम-कदम पर अहसास कराया जाता है कि उनकी कोई हैसियत ही नहीं है। मैंने तो अपना शोध कार्य शिक्षकों की स्थिति को लेकर किया था और उसे बहुत उत्साह के साथ शिक्षा सचिव जी के हाथ में दिया था कि इसके निष्कर्षों को लेकर कोई ठोस कदम उठाए जाएंगे किन्तु वह किसी काम के लायक नहीं माना गया।

मेरे अनुभव में आया है कि जब शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया होती है तो बहुत सारे लोग इस प्रक्रिया में शामिल होकर शिक्षकों का चयन करते हैं। चयन के बाद जब शिक्षक की नियुक्ति की जाती है तो पद स्थापना से लेकर वेतन आहरण के लिए उसे बहुत लोगों को साधना होता है। उसे अपनी वेतन पाने के लिए न केवल कई महीने इंतजार करना होता है बल्कि कुछ भेंट चढ़ाने के लिए भी मजबूर होना पड़ता है। यहीं से उसके जीवन मूल्य बदल दिए जाने के बाद वे भीरु हो जाते हैं। यदि कोई निडर होकर बात कहता है तो उसे विद्रोही घोषित कर दिया जाता है।

teacher in class

शिक्षकों को नहीं माना जाता समर्थ

शिक्षकों को प्रशिक्षित करने के लिए अनेक प्रकार के काम किए जा रहे हैं फिर भी उन्हें कभी समर्थ नहीं माना जाता है। जो कहीं पढ़ाते नहीं हैं, वे लोग शिक्षकों को सिखाते हैं कि कैसे पढ़ाया जाता है। वे फिर देख-देखकर, पीपीटी के माध्यम से बोलते हैं। पीपीटी पर लिखा गया पढ़ने के बाद उन्हें कुछ नहीं आता। वे हमारे प्रश्नों के उत्तर नहीं दे पाते हैं। कोई बात कहो तो फिर वही बात। शांति से प्रशिक्षण लो नहीं तो अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। जो कभी, सभी को अनुशासित किया करते थे, वे अब बात-बात पर अनुशासन के पात्र हैं।

शिक्षकों के अनेक नाम

अनेक नाम रखे गए हैं शिक्षकों के। नियमित संवर्ग के शिक्षक, अध्यापक संवर्ग के शिक्षक, अतिथि शिक्षक और भी बहुत सारे नाम। पता नहीं किसने कब क्या परिवर्तन कर दिया। सरकार जब जो चाहे नाम रख दे। काम सभी को एक ही स्थान पर करना है। अब तो विद्यालयों के भी नाम बदले जा रहे हैं। तरह तरह के नाम। पहले छोटे छोटे विद्यालय खोले गए थे गारंटी स्कूल। अब बड़े-बड़े विद्यालय खोले जा रहे हैं। सीएम राइज, सांदीपनि स्कूल। शिक्षकों को वर्ग भेद का शिकार बनाया जा रहा है। छोटे स्कूल में बच्चों को पढ़ाने वाले कमजोर हो गए हैं या मान लिए गए हैं और बड़े स्कूल में काम करने वाले बड़े।

shikshak diwas

कोई भी शिक्षक बनने के लिए मन से तैयार नहीं

जिसे जो समझ आ रहा है, किए जा रहा है। अब कोई भी शिक्षक बनने के लिए मन से तैयार नहीं हैं। जिसे अपने मन का काम नहीं मिलता वह अंत में शिक्षक बन जाता है। हालात यह है कि पूरा शिक्षक समुदाय असहाय हो गया है। शिक्षकों को सरकारी नौकरी के रूप में कार्य करने के लिए विवश करने के बाद उन्हें प्रतीकात्मक रूप में श्रेष्ठ कार्य के लिए 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के अवसर पर सम्मानित किया जाता है। वाह रे शिक्षक दिवस ! एक दिन का राष्ट्रीय पुरस्कार और उसके बाद की व्यथा वे ही बताते हैं जिन्हें पुरस्कार मिला है। कितने शिक्षक पुरस्कृत किए गए हैं और उनकी विशेषता का क्या उपयोग किया जा रहा है, किसी को भी नहीं पता। हां, वे अपने आर्थिक लाभ और पदोन्नति के लिए शिक्षा कार्यालयों के चक्कर लगाने के बाद भी जब कुछ नहीं होता है तो न्यायालय के फैसले कराते हैं।

‘अब शिक्षक निरीह तानाशाह’

बहुत पहले NCERT के निदेशक रहे प्रो. कृष्ण कुमार जी ने कहा था कि अब शिक्षक निरीह तानाशाह हैं। एक साथ दो विरोधी बातें लिखी हैं उन्होंने। शिक्षक बच्चों के सामने तानाशाह और तंत्र के सामने निरीह हो गए हैं। कितनी विचित्र किन्तु सत्य बात कही है कृष्ण कुमार जी ने। उन्होंने अपनी पुस्तक राज, समाज और शिक्षा के परिशिष्ट में लिखा है कि शिक्षा को राजनीति से अलग नहीं किया जा सकता। उनकी दोनों बातें सही हैं और देश के सभी शिक्षक सहने के लिए मजबूर हैं। कोठारी आयोग के सदस्य सचिव रहे। जेपी नायक जी ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 के 20 साल के अनुभवों में लिखा है कि शिक्षा के निर्णय शैक्षिक नहीं राजनैतिक होते हैं।
हमारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 कहती है कि शिक्षक को प्रकाश पुंज के रूप में कार्य करना चाहिए। काश! ऐसा हो जाए।

शिक्षक दिवस के अवसर पर सभी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाओं के साथ…

( लेखक NCERT के पूर्व सदस्य और शिक्षक संदर्भ समूह के संस्थापक हैं )

Rahul Garhwal

Rahul Garhwal

करीब 5 साल से पत्रकारिता जगत में सक्रिय। नवभारत से शुरुआत की, स्वराज एक्सप्रेस, न्यूज वर्ल्ड और द सूत्र में भी काम किया। खबर को बेहतर से बेहतर तरीके से पाठकों तक पहुंचाने की कोशिश रहती है। खेल की खबरों में विशेष रुचि है। जो सीखा है उसे निखारना और कुछ नया सीखने का क्रम जारी है।

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