हाइलाइट्स
- 2065 मेगावाट की उत्पादन इकाइयां
- दावे और हकीकत में 8 घंटे का अंतर
- कम मांग के बावजूद उत्पादन इकाइयों का ठप
UP Power Supply Cut: उत्तर प्रदेश में बिजली व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सख्त चेतावनी और ऊर्जा मंत्री एके शर्मा की नाराजगी भी फिलहाल बेअसर साबित हो रही है। कागजों में बिजली की उपलब्धता भरपूर दिखाई जा रही है, और कम मांग व तकनीकी कारणों से 2065 मेगावाट की उत्पादन इकाइयां बंद कर दी गई हैं, लेकिन जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर है। प्रदेशभर के उपभोक्ता भयंकर बिजली कटौती झेलने को मजबूर हैं, खासकर ग्रामीण इलाकों में स्थिति बेहद खराब है, जहां बमुश्किल 10 घंटे ही बिजली मिल पा रही है। इस गंभीर स्थिति से निपटने के लिए अब ऊर्जा विभाग ने फीडरवार निगरानी (Feeder-wise monitoring) की एक नई रणनीति बनाई है।
दावे और हकीकत में 8 घंटे का अंतर
उत्तर प्रदेश में लगभग 3.50 करोड़ बिजली उपभोक्ता हैं। 10 जून की रात को प्रदेश में 32 हजार मेगावाट बिजली आपूर्ति का रिकॉर्ड भी बन चुका है। इन दिनों बिजली की मांग लगभग 23,566 मेगावाट है। कागजों पर, शहरी इलाकों में 24 घंटे और गांवों में 18.50 घंटे बिजली आपूर्ति का दावा किया जा रहा है, लेकिन वास्तविकता बिल्कुल अलग है। शहरों में भी लोग लगातार ट्रिपिंग (बिजली के बार-बार कटने) से परेशान हैं। राजधानी लखनऊ में ही 24 घंटे में 8 से 10 बार ट्रिपिंग एक आम बात हो गई है, जिससे लोगों को भारी असुविधा हो रही है। ग्रामीण इलाकों का तो और भी बुरा हाल है, जहां बिजली आपूर्ति के दावों और हकीकत में करीब 8 घंटे का बड़ा अंतर है। इस अंतर को अक्सर ‘लोकल फाल्ट’ (Local Fault) का नाम दिया जाता है, लेकिन किसी भी स्थान पर फाल्ट होने पर उसे ठीक करने में घंटों लग रहे हैं, जिससे उपभोक्ता बेहाल हैं। ऊर्जा क्षेत्र के जानकारों का मानना है कि यह स्थिति पूरी तरह से प्रबंधकीय असफलता (Managerial Failure) का परिणाम है।
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कम मांग के बावजूद उत्पादन इकाइयों का ठप होना
वर्तमान में प्रदेश में कुल 2065 मेगावाट बिजली का उत्पादन ठप पड़ा है। सरकारी क्षेत्र की बात करें तो ओबरा की यूनिट दो (660 मेगावाट) बॉयलर लीकेज के कारण और यूनिट नौ (200 मेगावाट) अन्य तकनीकी गड़बड़ी के चलते बंद हैं। इसी तरह, हरदुआगंज की 105 मेगावाट और पनकी की 660 मेगावाट की इकाइयां बिजली की कम मांग के कारण 5 अगस्त तक बंद कर दी गई हैं। निजी क्षेत्र की टांडा की 440 मेगावाट की चार यूनिटें भी 31 जुलाई तक कम मांग के चलते बंद की गई हैं। यह स्थिति तब है जब उपभोक्ता बिजली कटौती से जूझ रहे हैं, जो प्रबंधन पर सवाल खड़े करती है।
दावे और हकीकत में अंतर की मुख्य वजहें
- जर्जर और लंबी लाइनें: प्रदेश में बिजली की लाइनें 20 से 30 किलोमीटर लंबी और बेहद जर्जर हालत में हैं, जिससे फाल्ट की संभावना बढ़ जाती है।
- कर्मचारियों की कमी: ग्रामीण इलाकों में बिजली विभाग के कर्मचारियों की भारी कमी है, जिससे फाल्ट ढूंढने और उन्हें ठीक करने में काफी वक्त लगता है। यदि कहीं इंसुलेटर फट जाता है, तो पोल-टू-पोल चेक करने में लंबा समय लगता है।
- दूर-दराज के बिजलीघर: ग्रामीण क्षेत्रों में 132 केवी के बिजलीघर काफी दूर-दूर हैं, जिससे आपूर्ति में बाधा आती है। ऊर्जा विशेषज्ञों का सुझाव है कि यदि दिल्ली की तरह तीन से पांच किलोमीटर पर डीपीएम (जॉइंट बॉक्स) बन जाएं, तो ट्रिपिंग की जानकारी जल्दी मिल सकेगी और मरम्मत में कम समय लगेगा।
- एक जेई पर कई उपकेंद्रों का भार: एक जूनियर इंजीनियर (JE) के भरोसे दो से तीन उपकेंद्रों का कार्यभार है, जिससे निगरानी और त्वरित कार्रवाई प्रभावित होती है।
प्रबंधन और मैनपावर की कमी
विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा है कि बारिश के मौसम में ब्रेक डाउन होना स्वाभाविक है, लेकिन इससे निपटने के लिए पहले से रणनीति बनानी चाहिए और निगरानी तंत्र को मजबूत करना चाहिए। उन्होंने निगमों से रोस्टर खत्म करके 24 घंटे आपूर्ति करने की मांग की है, ताकि लोकल फाल्ट होने पर भी कम से कम 15 से 18 घंटे बिजली मिल सके। ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन के अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे ने बताया कि बिजली होने के बाद भी उपभोक्ताओं को नहीं मिलने का मतलब है कि प्रबंधन पूरी तरह से फेल है। उनके अनुसार, ऊर्जा निगमों में मैटेरियल और मशीन तो है, लेकिन मैनपावर (Manpower) की भारी कमी है। ब्रेक डाउन की निगरानी करने वाले पेट्रोलमैन के पद खत्म हो गए हैं और लाइनमैन नाम मात्र के बचे हैं। करीब 20 हजार संविदाकर्मियों की छंटनी कर दी गई है, जिसके कारण निगरानी तंत्र पूरी तरह से फेल हो गया है।
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फीडर स्तर पर रणनीति और सुधार के प्रयास
पॉवर कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष डॉ. आशीष कुमार गोयल ने बताया कि लोकल फाल्ट दूर करने के लिए अब फीडर स्तर (Feeder Level) पर रणनीति बनाई गई है। तारों से लेकर ट्रांसफार्मर तक में सुधार के कार्य हो रहे हैं, और आरडीएसएस योजना (RDSS Scheme) के तहत भी सुधार के कार्य जारी हैं। उन्होंने विश्वास जताया कि जल्द ही इसका असर दिखेगा। डॉ. गोयल ने उपभोक्ताओं से भी अपील की है कि वे जितनी बिजली लें, उसका बिल अनिवार्य रूप से अदा करें, क्योंकि इससे बिजली सुधार के कार्य तेज होंगे और सभी को निर्बाध आपूर्ति में राहत मिलेगी।
Poorvaanchal Vidyut Vitaran Nigam: ऊर्जा मंत्री के एक्शन के बाद, SE बस्ती का निलंबन, गलत भाषा ने दिया दिक्कत
Purvanchal Electricity Corporation Suspension: पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के अधीक्षण अभियंता (SE) प्रशांत सिंह को अमर्यादित भाषा के प्रयोग के आरोप में निलंबित कर दिया गया है। यह कार्रवाई ऊर्जा मंत्री एके शर्मा द्वारा सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक ऑडियो पर संज्ञान लेने के बाद हुई है। प्रबंध निदेशक, पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम ने उनके निलंबन के साथ-साथ विभागीय जांच के भी निर्देश दिए हैं और उन्हें मुख्यालय से अटैच कर दिया गया है। पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें