हाइलाइट्स
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सैयारा मूवी का युवाओं में क्रेज
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सैयारा देखकर लोगों को पैनिक अटैक
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पैनिक अटैक के पीछे मनोविज्ञान
Saiyaara: सैयारा फिल्म रोज कमाई के नए-नए रिकॉर्ड बना रही है। जितनी इस फिल्म की चर्चा है, उससे ज्यादा सुर्खियां फिल्म देखने जा रहे लोग बटोर रहे हैं। फिल्म देखते हुए लोग फूट-फूटकर रो रहे हैं।
भोपाल में एक लड़के की हालत बिगड़ी
भोपाल के एक मल्टीप्लेक्स में Saiyaara मूवी देखते हुए 24 साल के लड़के को अचानक घबराहट होने लगी, उसकी सांस फूलने लगी और हाथ-पैर कांपने लगे। उसकी तबीयत इतनी बिगड़ गई कि एंबुलेंस बुलानी पड़ी। दिल्ली में एक 21 साल की लड़की फिल्म के आखिरी 15 मिनट के दौरान इतना रोई कि उसे चुप कराना मुश्किल हो गया।
क्या है सैयारा फिल्म की कहानी
सैयारा फिल्म की कहानी एक उभरते सिंगर कृष (अहान पांडे) और एक गीतकार वाणी (अनीत पड्डा) के प्यार और त्याग के आसपास घूमती है। सोशल मीडिया पर Saiyaara Movie की सिर्फ तारीफ ही नहीं कर रहे हैं बल्कि अपने इमोशनल ब्रेकडाउन और Mental Triggers की कहानियां भी शेयर कर रहे हैं।
Mental Trigger क्या है ?
Mental Trigger मेंटल ट्रिगर का मतलब होता है कि ऐसी मानसिक चीज या स्थिति, जो इंसान के दिमाग में तुरंत कोई भावना, सोच या फैसला लेने की प्रोसेस को एक्टिव कर देती है। जब भी कोई खास शब्द, इमोशन, तस्वीर, अनुभव या फिल्म हमारे सामने आती है और वह हमें कुछ सोचने, महसूस करने या करने पर मजबूर करता है तो वह Mental Trigger कहलाता है। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि कोई सैड सॉन्ग या फिल्म देखकर आपकी आंखें भर आती हैं क्योंकि उसने आपको किसी पुराने अनुभव की याद दिला दी। ये एक Mental Trigger है।
पुराने जख्म हरे कर रही Saiyaara
Saiyaara मूवी रिलेशनशिप ब्रेकडाउन, अकेलापन, जिंदगी में अधूरापन और खुद से जूझते किरदारों की कहानी है। जो युवा पहले से ही एंजाइटी, खुद को कम आंकना या ब्रेकअप से जूझ रहे हैं, उनके लिए ये फिल्म किसी पुराने जख्म को दोबारा कुरेदने का काम कर रही है।
Saiyaara Movie देखकर रोते-बिलखते युवाओं को लेकर एक्सपर्ट्स की राय
ट्रिगरिंग एक्सपीरियंस
भोपाल के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी ने कहा कि ऐसी फिल्मों में दिखाए गए Intense Emotional Pain दिखाया गया है। किसी व्यक्ति के लिए ये एक सिनेमैटिक अनुभव हो सकता है, लेकिन जिन लोगों की खुद की जिंदगी में अन-रिजॉल्व्ड ट्रॉमा है, उनके लिए ये ट्रिगरिंग एक्सपीरियंस बन सकता है। ब्रेकअप, किसी के द्वारा ठुकराया जाना, नकार दिया जाना जैसी भावनात्मक चीजों से जुड़े लोग बिना तैयारी के इन फिल्मों को देखते हैं तो फिल्म देखते वक्त उनका नर्वस सिस्टम रिएक्ट करता है। इसके बाद रोना, घबराहट, सांस फूलना जैसी चीजें उनके साथ होती हैं।
ऐसी फिल्में खतरे की घंटी
फिल्मों को मनोरंजन के लिए बनाया जाता है, लेकिन अगर ये दिमाग और शरीर को हिलाकर रख देती हैं। जैसे किसी का बेहोश होना, दौरा पड़ना, पैनिक अटैक आना तो ये भावनात्मक असंतुलन के लक्षण हैं। साइकैट्रिस्ट डॉ. अनिल सिंह शेखावत का कहना है कि कोई फिल्म देखकर दिमाग भावनाओं को संभाल न पाए तो ये खतरे की घंटी है। जो व्यक्ति मानसिक रूप से अस्थिर है उसके लिए ऐसी फिल्में ट्रॉमा ट्रिगर का काम कर सकती हैं।
फिल्म के पहले Trigger Warning जरूरी ?
OTT प्लेटफॉर्म्स के आने के बाद Trigger Warning का कल्चर बढ़ा है, लेकिन सिनेमाघरों में फिल्म से पहले Trigger Warning नहीं दी जाती है। कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि ऐसी फिल्मों से पहले भी Trigger Warning दी जानी चाहिए।
ऐसी होती है Trigger Warning
इस फिल्म में कुछ ऐसे दृश्य, संवाद या घटनाएं प्रस्तुत की गई हैं, जो मानसिक, भावनात्मक या शारीरिक शोषण, हिंसा, दु:खद घटनाओं या ट्रॉमा से संबंधित हो सकती हैं। यह सामग्री कुछ दर्शकों के लिए भावनात्मक रूप से असहज या ट्रिगर कर सकती है। कृपया अपने विवेक और संवेदनशीलता के अनुसार आगे देखें।
Trigger Warning सेंसरशिप नहीं
काउंसलिंग साइकोलॉजिस्ट डॉ. विधि M पिलनिया का कहना है कि Trigger Warning देना कोई सेंसरशिप नहीं है। ये संवेदनशीलता की बात है। अगर कोई Emotionally Vulnerable व्यक्ति फिल्म देखने जाए तो उसे पहले से पता होना चाहिए कि क्या आने वाला है ताकि वो फैसला कर सके कि वो मानसिक रूप से इसके लिए तैयार है या नहीं है।