हाइलाइट्स
- वाराणसी की ‘पहलवान लस्सी’ और ‘चाची कचौड़ी’ ढही
- सिक्सलेन सड़क परियोजना में टूटी सौ साल पुरानी विरासत
- स्थानीय लोगों में नाराज़गी, सांस्कृतिक नुकसान पर सवाल
Varanasi Pahalwan Lassi Demolished: बीएचयू से रवीन्द्रपुरी तक सिक्सलेन सड़क निर्माण परियोजना के चलते बुधवार को वाराणसी की दो ऐतिहासिक दुकानें—‘पहलवान लस्सी’ और ‘चाची कचौड़ी’—का अस्तित्व मिट गया। प्रशासन ने देर रात पुलिस बल की मौजूदगी में बुलडोजर चलवाकर इन दुकानों समेत करीब दो दर्जन व्यापारिक प्रतिष्ठानों को ध्वस्त कर दिया।
सड़क चौड़ीकरण के नाम पर टूटी सौ साल पुरानी विरासत
पीडब्ल्यूडी द्वारा 350 करोड़ रुपये की लागत से बनाई जा रही 9.5 किलोमीटर लंबी फोरलेन व सिक्सलेन सड़क परियोजना के तहत लहरतारा से बीएचयू होते हुए रवीन्द्रपुरी तक सड़क चौड़ी की जा रही है। इस परियोजना के दायरे में आने वाली दुकानों को हटाने के लिए प्रशासन ने पहले ही नोटिस जारी कर दिया था। मंगलवार देर रात से दुकानदारों ने दुकानें खाली करनी शुरू कर दी थीं, और बुधवार को बुलडोजर ने सौ साल पुरानी दुकानों का नामो-निशान मिटा दिया।
सीएम योगी-अमित शाह ने भी लिए स्वाद
वाराणसी के लंका चौराहे के पास स्थित ‘पहलवान लस्सी’ की दुकान न सिर्फ बनारसियों के लिए खास थी, बल्कि देशभर से आने वाले लोग यहां कुल्हड़ में मलाई-रबड़ी युक्त लस्सी का स्वाद लेने आते थे। इस दुकान पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, स्मृति ईरानी और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तक लस्सी पी चुके हैं।
108 साल पुरानी थी चाची-कचौड़ी दुकान
वहीं, ‘चाची कचौड़ी’ की दुकान पर सुबह-सुबह लंबी लाइनें लगती थीं। 108 साल पुरानी इस दुकान की हींग-दार दाल वाली डबल लेयर कचौड़ी, सीताफल की सब्जी और मटका जलेबी ने इसे वाराणसी की पहचान बना दिया था। चाची की तीखी जुबान और बेबाक गालियों का अपना ही अंदाज था।
कार्रवाई के बाद सड़क पर पसरा सन्नाटा
मंगलवार रात 11 बजे एडीएम सिटी आलोक कुमार वर्मा के निर्देश पर पीडब्ल्यूडी के अभियंताओं और पुलिस बल ने मिलकर रवीन्द्रपुरी और दुर्गाकुंड की ओर स्थित दुकानों को तोड़ने की कार्रवाई शुरू की। इस दौरान रवींद्रपुरी चौराहे से लेकर रविदास गेट तक की कई दुकानें प्रभावित हुईं। ट्रैफिक सुचारु बनाए रखने के लिए पुलिसकर्मियों को मौके पर तैनात किया गया था।
स्थानीय लोगों में नाराज़गी
इस कार्रवाई से स्थानीय लोगों और दुकानदारों में नाराजगी है। उनका कहना है कि प्रशासन ने शहर की पहचान बन चुकी ऐतिहासिक दुकानों को बिना किसी वैकल्पिक व्यवस्था के तोड़ दिया। यह केवल दुकानों का नुकसान नहीं, बल्कि बनारसी संस्कृति और स्वाद की एक अमूल्य विरासत का अंत है।
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